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फौजा सिंह: द रनिंग सिख

पंद्रह जुलाई की सुबह एक खबर ने उन्हें भी दुखी किया, जो फौजा सिंह से कभी मिले नहीं थे, उन्हें भी दुखी किया...
फौजा सिंह: द रनिंग सिख

पंद्रह जुलाई की सुबह एक खबर ने उन्हें भी दुखी किया, जो फौजा सिंह से कभी मिले नहीं थे, उन्हें भी दुखी किया जो कई बार 114 साल के इस धावक से मिल चुके थे। 14 जुलाई की शाम को पंजाब के ब्यास पिंड गांव के पास जालंधर-पठानकोट राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे सड़क पार करते समय बुजुर्ग सरदार तेज रफ्तार कार की चपेट में आ गए। जैसा कि भारत में होता है, ड्राइवर टक्कर मार कर भाग गया। घायल फौजा सिंह को अस्पताल ले जाया गया, जहां इलाज के दौरान उनका निधन हो गया। ड्राइवर को भी खबरों से पता चला कि वह 92 साल में अपने जीवन की दूसरी पारी शुरू करने वाले विश्व प्रसिद्ध सबसे बुजुर्ग मैराथन धावक को मार आया है।

पुलिस ने टक्कर मारने वाली की कुछ ही घंटों में पहचान कर ली। फौजा सिंह को उनके घर से महज 120 मीटर की दूरी पर हाइवे पर जिस फॉर्च्यूनर से टक्कर लगी, उसे एक एनआरआइ अमृतपाल सिंह ढिल्लों चला रहा था। अमृतपाल सिंह को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया गया और फिर जेल भेज दिया गया। दुनियाभर में ‘रनिंग सिख’ के नाम से मशहूर फौजा सिंह का जीवन संघर्ष में उम्मीद की कहानी है।

पंजाब के जालंधर में ब्यास गांव में 1 अप्रैल 1911 को जन्मे फौजा का परिवार खेती करता था। चार बच्चों में सबसे छोटे फौजा के बचपन में पैरों में दिक्कत थी। पांच साल के होने तक वे ठीक से चल नहीं पाते थे। शरीर से कमजोर फौजा के प्रति परिवार में अलग तरह की सहानुभूति थी। धीरे-धीरे उन्होंने भी घर के काम किसानी में ही सहयोग देना शुरू कर दिया। फौजा सिंह को शौकिया दौड़ना पसंद था। लेकिन देश के विभाजन के समय यह शौक भी जाता रहा। फौजा सिंह का विवाह ज्ञान कौर के साथ हुआ। विवाह के बाद उनकी तीन बेटियां और तीन बेटे हुए। फौजा सिंह घर-गृहस्थी में ऐसे व्यस्त हुए कि फिर उनके दिल और दिमाग से दौड़ने का ख्याल जाता रहा।

1992 में फौजा सिंह की पत्नी की मृत्यु हो गई। उसके बाद वे पूर्वी लंदन में अपने बेटे के साथ रहने चले गए। उसी दौरान उनके बेटे और बेटी की भी मौत हो गई। कुछ ही समय के अंतराल में हुई दो बच्चों और बीवी की मौत ने फौजा सिंह पर गहरा असर डाला। उन्हें भीतर से बेचैनी महसूस होने लगी। इस बेचैनी से उबरने के लिए वे दौड़ने लगे।

1999 में फौजा सिंह ने पहली बार सेवा और धर्मार्थ के लिए एक मैराथन में दौड़ने का निर्णय लिया। उन्होंने लंदन, टोरंटो और न्यूयॉर्क में 26 मील की फुल मैराथन नौ बार पूरी की। उन्होंने सबसे बेहतरीन समय टोरंटो में निकाला था। यहां उन्होंने पांच घंटे 40 मिनट में अपनी रेस खत्म की थी।

16 अक्टूबर, 2011 को फौजा सिंह ने टोरंटो मैराथन 8 घंटे, 11 मिनट और 6 सेकंड में पूरी की और दुनिया के पहले ऐसे धावक बने, जिसकी उम्र 100 साल थी। हालांकि जन्म प्रमाणपत्र न होने के कारण उनका यह रिकॉर्ड गिनीज बुक में दर्ज नहीं हो सका।

जुलाई 2012 में हुए ओलंपिक में फौजा सिंह ने ओलंपिक मशाल लेकर दौड़ लगाई। साल 2015 में उन्हें ब्रिटिश एम्पायर मेडल से नवाजा गया। फौजा सिंह पर दुनिया की तब नजर पड़ी, जब स्पोर्ट्स एसेसरीज बनाने वाली नामी कंपनी एडिडास ने उनके साथ फोटो शूट किया। इस शूट में फौजा सिंह के साथ डेविड बैकहम जैसे प्रसिद्ध फुटबॉलर भी शामिल हुए थे। मशहूर लेखक खुशवंत सिंह उनसे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने फौजा सिंह पर एक किताब लिखी। किताब का शीर्षक था, ‘टर्बन्ड टोर्नाडो’ यानी पगड़ीधारी बवंडर। उसके बाद तो जैसे यह उनका दूसरा नाम हो गया। बाद में कई लोगों ने उन्हें रनिंग बाबा, सिख सुपरमैन जैसे नाम भी दिए।

101 साल की उम्र में दुनिया के सबसे उम्रदराज धावक फौजा सिंह ने अंतरराष्ट्रीय मैराथन प्रतिस्पर्धा से संन्यास की घोषणा कर दी। फौजा सिंह का पूरा जीवन सेवा, सद्भावना की मिसाल रहा। मैराथन और विज्ञापन से उन्होंने जो कुछ कमाया, उसे सेवा के कामों और गुरुद्वारों में दान कर दिया। फिटनेस के बारे में वे कहते थे, मैं हमेशा खुश रहता हूं। यही मेरी लंबी जिंदगी और सेहत का राज है। खाने के शौकीन रहे फौजा सिंह को पंजाबी पिन्नियां और दही बहुत पसंद था।

114 वर्ष के समृद्ध, सेहतमंद और सफल जीवन जीने वाले फौजा सिंह दुनिया में हमेशा उन सभी को प्रेरित करते रहेंगे, जो उम्र के नाम पर अक्सर अपने पैशन को आगे बढ़ाने से पीछे हट जाते हैं।

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