सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को राफेल विमान डील मामले में दायर पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि इन याचिकाओं में मेरिट की कमी है यानी दम नहीं है। इसे मोदी सरकार के लिए राहत के तौर पर देखा जा रहा है। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एसके कौल और जस्टिस केएम जोसेफ की बेंच ने 14 दिसंबर 2018 कोे सुनाए गए फैसले को बरकरार रखा। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि हमें इस मामले में एफआईआर दर्ज करने का आदेश देने या जांच बैठाने की जरूरत महसूस नहीं हुई।
कोर्ट ने पिछले साल (2018) के फैसले में राफेल डील को तय प्रक्रिया के तहत बताया था और सरकार को क्लीन चिट दी थी। कोर्ट ने पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई के बाद 10 मई को फैसला सुरक्षित रख लिया था। शीर्ष अदालत के 2018 के आदेश पर वकील प्रशांत भूषण, पूर्व मंत्री यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी समेत अन्य ने राफेल डील मामले में जांच की मांग करते हुए याचिका दायर थी।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने 14 दिसंबर 2018 के फैसले को बरकरार रखा
तीन जजों की बेंच ने राफेल मामले में पुनर्विचार याचिका खारिज करते हुए कहा कि इस याचिका में कोई योग्यता नहीं है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 14 दिसंबर 2018 के अपने फैसले को बरकरार रखा है। इसके अलावा राफेल डील के सीबीआई जांच से भी सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया है।
इस मामले पर क्या था सुप्रीम कोर्ट का 14 दिसंबर, 2018 का फैसला
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति के. एम. जोसफ की पीठ ने राजनीतिक रूप से संवेदनशील इस मामले पर 10 मई को सुनवाई पूरी की थी। पीठ ने कहा था कि इस पर फैसला बाद में सुनाया जाएगा। बता दें कि 14 दिसम्बर 2018 को शीर्ष अदालत ने 58,000 करोड़ के इस समझौते में कथित अनियमितताओं के खिलाफ जांच की मांग कर रही याचिकाओं को खारिज कर दिया था।
कोर्ट में दायर याचिका में लगाए गए थे ये आरोप
सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में डील में भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए थे। साथ ही, 'लीक' दस्तावेजों के हवाले से आरोप लगाया गया था कि डील में पीएमओ ने रक्षा मंत्रालय को बगैर भरोसे में लिए अपनी ओर से बातचीत की है। कोर्ट में विमान डील की कीमत को लेकर भी याचिका डाली गई थी। हालांकि कोर्ट साफ कर चुका है कि बिना ठोस सबूतों के वह रक्षा सौदे में कोई भी दखल नहीं देगा। ऐसे में अब आज कोर्ट ने इन सभी याचिकाओं को लेकर अपना फैसला सुनाया।
लंबे समय से विवाद में राफेल
राफेल मामले पर लंबे समय से विवाद चल रहा है। हालांकि भारत को इसकी खेप मिलनी भी शुरू हो गई है इसके बाद भी विवाद जारी है। इस पर आने वाले फैसले पर राजनीतिक पार्टियों समेत कई लोगों की निगाहें गड़ी हुई हैं। बता दें कि बीते लगभग सभी चुनावों में विपक्ष ने इस मुद्दे को बड़े जोर-शोर के साथ उठाया था। हालांकि कोर्ट पहले ही 36 राफेल विमानों की खरीद के सौदे की निगरानी में जांच कराने की मांग खारिज कर चुका है। इसको अरुण शौरी और भाजपा के पूर्व नेता यशवंत सिन्हा समेत अन्य याचिकाकर्ताओं ने पुनर्विचार याचिका दाखिल कर चुनौती दी है।
लड़ाकू विमानों की खरीद के लिए कवायद
वायुसेना में शामिल मिग और जगुआर विमानों की खराब हालत और लड़ाकू विमानों की कमी को देखते हुए लड़ाकू विमानों की खरीद के लिए कवायद शुरू की गई थी। पहले भारतीय वायु सेना की क्षमता को बढ़ाए रखने के लिए 42 लड़ाकू स्क्वाड्रन की जरूरत थी जिसको बाद में 34 कर दिया गया था। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में भारतीय वायु सेना की मांग के बाद 126 राफेल विमान खरीदने का पहली बार प्रस्ताव रखा था। लेकिन वाजपेयी सरकार के जाने के बाद इसको कांग्रेस ने आगे बढ़ाया और 2007 में इसकी खरीद को मंजूरी प्रदान की थी। इसके बाद बोली प्रक्रिया शुरू हुई और 126 विमानों की खरीद का आरएफपी जारी कर दिया गया। आपको बता दें कि यह सौदा उस एमएमआरसीए प्रोग्राम (मीडियम मल्टी-रोल कॉम्बेट एयरक्राफ्ट) का हिस्सा है जिसको एलसीए और सुखोई के बीच के अंतर को खत्म करने के लिए शुरू किया गया था।
छह विमानों में से राफेल को किया गया फाइनल
इस प्रक्रिया में शामिल छह विमानों में से राफेल को फाइनल किया गया। इसकी कई वजहों में से एक यह भी थी कि यह एक बार में तीन हजार से अधिक की दूरी तय कर सकता था। इसके अलावा इसकी कीमत अन्य फाइटर जेट से कम थी और रख-रखाव सस्ता था। राफेल के अलावा इस प्रक्रिया में अमेरिका का बोइंग एफ/ए-18ई/एफ सुपर हॉरनेट, अमेरिका का लॉकहीड मार्टिन एफ-16 फाल्कन, रूस का मिखोयान मिग-35, फ्रांस का डसॉल्ट राफेल, ब्रिटेन का यूरोफाइटर और स्वीडन के साब जैस 39 ग्रिपेन जैसे लड़ाकू विमान शामिल थे। वर्ष 2011 में भारतीय वायुसेना ने राफेल और यूरोफाइटर टाइफून के मानदंड पर खरा उतरने की घोषणा की। वर्ष 2012 में राफेल को लेकर डसाल्ट एविएशन से सौदे की बातचीत शुरू हुई। हालांकि इसकी कीमत को लेकर यह बातचीत 2014 तक भी अधूरी रही।
ऐसे शुरू हुआ था विवाद
फ्रांस से राफेल पर सौदे के बाद यूपीए ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि उसने कहीं अधिक कीमत पर यह सौदा किया है। यूपीए का कहना था कि उनकी सरकार के मुकाबले एनडीए ने यह सौदा करीब साढ़े बारह सौ करोड़ रुपये अधिक में किया है। वहीं सरकार की तरफ से कहा गया है पहले सौदे में राफेल के टेक्नोलॉजी ट्रांसफर की बात कहीं नहीं थी जबकि महज मैन्युफैक्चरिंग लाइसेंस दिए जाने की बात कही गई थी। सरकार का दावा था कि सौदे के बाद फ्रांस की कपंनी मेक इन इंडिया को बढ़ावा देने में सहायक साबित होगी।