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ग्रामीण भारत में महिलाओं के अधिकारों और जैविक खेती की अग्रदूत बनी सरकार की ये योजना, जाने क्या है मकसद

मध्य प्रदेश के बालाघाट ज़िले के बुढ़िया गांव की निवासी सरिता राऊत भोपाल में आयोजित महिला किसान मंच पर...
ग्रामीण भारत में महिलाओं के अधिकारों और जैविक खेती की अग्रदूत बनी सरकार की ये योजना, जाने क्या है मकसद

मध्य प्रदेश के बालाघाट ज़िले के बुढ़िया गांव की निवासी सरिता राऊत भोपाल में आयोजित महिला किसान मंच पर अपने जीवन की कहानी साझा करते हुए भावुक हो उठती हैं। वे याद करती हैं कि कैसे उन्होंने खेतों की थकाने वाली ज़िम्मेदारियों के साथ-साथ अपने गांव की महिलाओं के अधिकारों की आवाज़ उठाई — एक ऐसा सफर जिसने उनके जीवन की दिशा ही बदल दी।

सरिता राउत ने बताया, "मेरी शादी 2005 में हुई थी, और 17 साल तक मैं सुबह 3 बजे 2 किलोमीटर दूर कुएं से पानी भरने जाती थी। अगर ज़रा भी देर हो जाती, तो गर्मी के कारण कुआं सूख जाता और हमें खाली हाथ लौटना पड़ता।" उन्होंने कहा, "अब मेरे घर में एक नल के घुमाव से पानी मिल जाता है, और इससे मेरे जीवन में बड़ा बदलाव आया है।" वे बताती हैं "अब मुझे समय मिलता है कि मैं ज़्यादा सार्थक काम कर सकूं।"

2022 में शुरू हुई जल जीवन मिशन उनके और उनके गांव की कई अन्य महिलाओं के लिए एक वरदान बन गई है। इस योजना का उद्देश्य 2024 तक हर ग्रामीण घर तक नल के माध्यम से स्वच्छ और पर्याप्त पानी पहुंचाना है।

दो बेटियों और एक बेटे की मां सरिता बचपन से ही खेती से जुड़ी रही हैं। वे धानी (धान) की जैविक खेती करती हैं और प्रदान नामक गैर-लाभकारी संस्था के साथ कम्युनिटी रिसोर्स पर्सन (CRP) के रूप में सक्रिय भूमिका निभाती हैं, जो ग्रामीण महिलाओं को टिकाऊ आजीविका कमाने में मदद करता है। प्रदान जो कि क्लाइमेट राइज एलायंस का हिस्सा है-यह संगठनों का एक गठबंधन है जो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने की दिशा में काम करता है।

CRP बनने के लिए महिला को आमतौर पर स्वयं सहायता समूह (SHG) या ऐसे ही किसी सामुदायिक संगठन से चुना जाता है। ये महिलाएं अपने गांवों में खेती से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर मार्गदर्शन देती हैं। फसल चयन से लेकर प्राकृतिक खेती की तकनीकों और उपज बढ़ाने के उपायों तक — वे हर कदम पर किसानों की मदद करती हैं।

अपनी भूमिका के तहत सरिता बालाघाट ज़िले के कई गांवों का दौरा करती हैं, जहां वे अन्य CRP "दीदियों" के साथ मिलकर खेती की समस्याओं के व्यावहारिक समाधान ढूंढती हैं। जैसे कि बालाघाट जिले के खुर्सुड़ा गांव में, उन्होंने और उनकी टीम ने एक नेट हाउस बनवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई — यह एक संरचना है जो फसलों को कीटों, तेज हवा, अत्यधिक धूप और भारी बारिश से बचाती है। सरिता बताती हैं "इस पहल से अब तक 14 किसान लाभान्वित हो चुके हैं और जैविक खेती की ओर प्रेरित हुए हैं।"

जलवायु परिवर्तन की मार झेल रहे किसानों के लिए यह जैविक खेती की ओर झुकाव राहत लेकर आया है। वे कहती हैं, “सारे मौसम अपने निर्धारित समय पर चलें, तो सब कुछ बढ़िया रहता है।”  बे बताती हैं, "यहां आधुनिक सिंचाई प्रणालियाँ नहीं हैं। हमारे किसान बारिश पर निर्भर हैं। अगर मानसून सही न आए, तो खेती संकट में पड़ जाती है। संसाधनों की कमी हमारी आजीविका को खतरे में डालती है।"

खेती के क्षेत्र में अपनी सक्रिय भागीदारी के बावजूद, सरिता की असली प्रेरणा महिलाओं के अधिकारों की हिमायत करना है। वे प्रशिक्षण कार्यक्रमों के ज़रिए महिलाओं को उनके कानूनी और सामाजिक अधिकारों के बारे में जागरूक करती हैं। इसके साथ ही वे महिलाओं को वित्तीय रूप से सशक्त बनाने का काम भी करती हैं — "मैं उन्हें चेक लिखना, एटीएम से पैसे निकालना और अपने पैसे का सही तरीके से प्रबंधन करना सिखाती हूं!"

जब बात महिलाओं की खेती में भागीदारी की आती है, तो सरिता कहती हैं, “अगर हम सिर्फ व्यक्तिगत रूप से महिलाओं से बात करें, तो बहुत फर्क नहीं पड़ता। लेकिन जब हम SHG और अन्य संगठनों के ज़रिए जुड़ते हैं, तभी असली बदलाव आता है।” 

संसाधनों की कमी और ज़मीन के मालिकाना हक़ से वंचित रहना महिलाओं की स्थिति को और भी नाजुक बना देता है। नई पीढ़ी की लड़कियों को उनका संदेश है: “कोई भी काम करो, लेकिन अपने पैरों पर खड़ी हो। किसी पर निर्भर मत रहो — इस दुनिया में अपनी जगह खुद बनाओ।”

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