नोबल शांति पुरस्कार विजेता और बच्चों के अधिकारों के लिए लड़ने वाले एक्टिविस्ट कैलाश सत्यार्थी ने जम्मू-कश्मीर के कठुआ में आठ साल की बच्ची से बलात्कार और हत्या की घटना पर नाराजगी जाहिर की है। सत्यार्थी ने बाल यौन हिंसा की लगातार बढ़ रही घटनाओं को राष्ट्रीय आपातकाल बताया। इसके साथ ही उन्होंने बताया कि पिछले 3 वर्षों में बच्चों के साथ होने वाले अपराधों में 34 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।
प्रत्येक दिन भारत में 55 बच्चे दुष्ककर्म के शिकार हो रहे हैं
इंडिया हैबिटेट सेंटर में मंगलवार को चिल्ड्रेंस फाउंडेशन द्वारा आयोजित एक शोध संगोष्ठी को संबोधित करते हुए सत्यार्थी ने कहा कि प्रत्येक दिन भारत में 55 बच्चे दुष्ककर्म के शिकार हो रहे हैं और हजारों मामलों की रिपोर्टिंग नहीं हो पाती है।
संसद का एक दिन बच्चों को समर्पित करें राजनीतिक दल
कैलाश सत्यार्थी के मुताबिक, आधुनिक और स्वतंत्र भारत बनाने का मकसद तब तक पूरा नहीं हो सकता जब तक कि बच्चे असुरक्षित हैं। उन्होंने सभी राजनीतिक दलों से अपील कर कहा कि वे इस मुद्दे की गंभीरता को समझें और दुष्कर्म के शिकार बच्चों को जल्द से जल्द न्याय मिल सके इसके लिए संसद का कम से कम एक दिन बच्चों को समर्पित करें।
The alarming and unstoppable rise of rape and abuse of our children calls for a National Emergency. pic.twitter.com/JTrYclpccu
— Kailash Satyarthi (@k_satyarthi) April 17, 2018
इस तरह के मामलों पर राजनीति नहीं करनी चाहिए
सत्यार्थी ने कहा कि देश में न्याय प्रणाली इतनी लचर है कि बचपन में यौन हिंसा का शिकार हुई लड़कियां वर्षो तक कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटती रहती हैं। महिला अपने बेटों-पोतों के सामने मुकदमे लड़ती है। बहुत से बच्चों को तो यौन उत्पीड़न के बाद मार भी दिया जाता है। इस दौरान उन्होंने राजनीतिक दलों से अपील की कि राजनीतिक पार्टियों को बच्चों के शवों पर राजनीति नहीं करनी चाहिए।
बाल यौन दुर्व्यहवहार के मामलों को निपटाने में लग जाते हैं दशकों
नोबेल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने ‘द चिल्ड्रेन कैननोट वेट’ नामक रिपोर्ट को जारी करते हुए इस बात पर दुख जताते हुए कहा कि भारत में बाल यौन दुर्व्यहवहार के जितने भी मुकदमे दर्ज किए जाते हैं लचर न्यायिक व्यवस्था के चलते उसको निपटाने में दशकों लग जाते हैं। इसलिए बच्चों को स्वाभाविक रूप से न्याय मिल सके इसके लिए उन्होंने ‘नेशनल चिल्ड्रेन्स ट्रिब्यूनल’ की मांग की। पॉक्सो के तहत लंबित पड़े मुकदमों के त्वरित निपटान के ख्याल से सत्यार्थी ने फास्ट ट्रैक कोर्ट की भी मांग की। उन्होंने कहा कि कानून का डर नहीं होगा तो कठुवा, उन्नाव, सूरत और सासाराम जैसे मामले होते रहेंगे।
बच्चों के साथ होने वाले अपराधों में 3 सालों में 34% का इजाफा
कैलाश सत्यार्थी के चिल्ड्रन फाउंडेशन द्वारा की गई स्टडी के मुताबिक, पिछले 3 वर्षों में बच्चों के साथ होने वाले अपराधों में 34 फीसदी का इजाफा हुआ है, लेकिन जांच एजेंसियों और अदालतों की संख्या उतनी ही है। सत्यार्थी ने बताया, 'बच्चों के साथ होने वाले अपराधों में 34% यौन शोषण के मामले हैं।'
85% बच्चों का यौन शोषण उन जगहों पर हो रहा है, जिन्हें उनके परिवार वाले उन्हें सुरक्षित मानते हैं। स्कूल, पब्लिक पार्क आदि जगहों को अक्सर परिवार बच्चे के लिए सुरक्षित मानते हैं लेकिन इन्हीं जगहों पर बच्चे इस तरह के अपराधों का शिकार बन रहे हैं। वहीं, स्टडी में पाया गया कि 76 फीसदी लोग मानते हैं कि अपने घर या घर के आसपास बच्चों को सबसे ज्यादा खतरा है। अगर हम उन बच्चों की सुरक्षा उस जगह सुनिश्चित नहीं कर सकते हैं जो उनके विकास के लिए हैं, जहां उन्हें सुरक्षित होना चाहिए, तो वे कहां सुरक्षित हो सकते हैं?
85% of rapes are committed in spaces in the houses of the victims or of the perpetrators. If we cannot ensure safety of children in the spaces meant for them to develop & grow, where they are supposed to be safe, where can they be safe? Read full report https://t.co/khzd3Nt4OR pic.twitter.com/hUrGJ57OEk
— Satyarthi Foundation (@KSCFIndia) April 18, 2018
बच्चों को तुरंत और प्रभावी न्याय दिलाने को लेकर तैयार की गई रिपोर्ट
बलात्कार के शिकार हुए बच्चों को तुरंत और प्रभावी न्याय दिलाने को लेकर कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन ने इस रिपोर्ट को तैयार किया है और यह रिपोर्ट बाल यौन शोषण के लंबित पड़े मुकदमों की एक राज्यवार रूपरेखा प्रस्तुत करती है।
बच्चों के यौन शोषण मामले पर न्याय के लिए लंबा इंतजार
इस दौरान उन्होंने कहा कि किसी बच्चे का अगर यौन शोषण का मामला दर्ज होता है तो उसे न्याय के लिए 99 साल इंतजार करना होगा। इससे मतलब साफ है कि उसको जिंदगी भर न्याय नहीं मिल पाएगा। उन्होंने कहा कि गुजरात की स्थिति भी कोई बेहतर नहीं है, वहां भी बलात्कार के शिकार बच्चे को न्याय के लिए 53 साल तक लंबा इंतजार करना पड़ेगा।
बाल यौन शोषण के तहत दर्ज मुकदमों को निपटाने में जिस तरह से लंबा और दुखद इंतजार करना पड़ता है उस स्थिति नोबेल शांति पुरस्कार विजेता ने सवाल किया कि क्या आप चाहते हैं कि 15 वर्ष के बच्चे के साथ आज जो दुर्व्य्वहार हुआ है उसके लिए 70 वर्ष की उम्र तक उसे न्याय के लिए इंतजार करना पड़े?
रिपोर्ट में क्या कहा
सत्यार्थी द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार, पंजाब, नगालैंड और चंडीगढ़ में बच्चों को सबसे जल्द यानी वर्ष 2018 में ही न्याय मिल सकता है। वहीं, अरुणाचल प्रदेश में सबसे देरी से यानी 2117 में न्याय मिल सकेगा। हरियाणा, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, दादर और नागर हवेली में बच्चों को 2019 में न्याय मिल सकता है।
उत्तर प्रदेश और राजस्थान में बच्चों को न्याय के लिए 2026, दिल्ली और बिहार में 2029, महाराष्ट्र में 2032 केरल में 2039, मणिपुर में 2048 और अंडमान निकोबार में 2055, गुजरात में 2071 तक इंतजार करना पड़ सकता है। उन्होंने बताया कि ये आंकड़े पुलिस, कोर्ट, सरकारी विभाग व विभिन्न एनजीओ के माध्यम से जुटाए गए हैं।
पूरी रिपोर्ट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
Released The Children Cannot Wait, a report by @KSCFIndia, that sheds light on the urgent demand for justice for victims of child rape and shows the long and painful wait they have to suffer. It can take anywhere between 2 to 99 years to get justice. https://t.co/K7tCyhDPez pic.twitter.com/yZ4xvrebj8
— Kailash Satyarthi (@k_satyarthi) April 17, 2018