सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के राज्यसभा मनोनीत किए जाने के बाद विपक्षी दलों ने जहां सवाल खड़े किए हैं। वहीं, सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस जोसफ कुरियन ने इसे न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता के मूल्यों से समझौता बताया है। उन्होंने मंगलवार को कहा कि उनके इस मनोनयन ने तय रूप से न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर आम आदमी के विश्वास को हिला दिया है।
जस्टिस कुरियन ने कहा कि देश मुख्य रूप से स्वतंत्र न्यायपालिका के कारण मूल संरचनाओं और संवैधानिक मूल्यों पर टिका है। उन्होंने कहा, "मुझे आश्चर्य है कि जस्टिस रंजन गोगोई जिन्होंने एक बार न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए दृढ़ विश्वास और साहस का परिचय दिया था, उन्होंने कैसे न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता से समझौता किया है।"
बता दें कि 12 जनवरी, 2018 को सुप्रीम कोर्ट के कामकाज में कथित विसंगतियों को उजागर करने के लिए तीन अन्य जजों के साथ रिटायर्ड जज ने प्रेस कॉन्फेंस की थी जिसमें उन्होंने कहा था कि जब लोगों का विश्वास डगमगा जाता है तो देश की नींव का एलाइनमेंट भी डगडगा जाता है।
'न्यायपालिका को खतरा बड़े स्तर पर है'
जस्टिस जोसफ ने कहा, "इस एलाइनमेंट को मजबूत करने और न्यायपालिका को पूरी तरह से स्वतंत्र बनाने के लिए 1993 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा कॉलेजियम सिस्टम की शुरुआत की गई थी। मैं जस्टिस चेलमेश्वर, जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस मदन बी लोकुर के साथ एक अभूतपूर्व कदम के साथ सार्वजनिक रूप से देश को यह बताने के लिए सामने आया था कि इस आधार पर खतरा है और अब मुझे लगता है कि न्यायपालिका को खतरा बड़े स्तर पर है।"
'आम आदमी के विश्वास को हिला दिया है'
उन्होंने कहा कि यही कारण था कि मैंने अपने रिटायरमेंट के बाद कोई भी पद नहीं लेने का फैसला किया था। उन्होंने कहा, "भारत के एक पूर्व चीफ जस्टिस द्वारा राज्यसभा के सदस्य के रूप में मनोनयन की स्वीकृति ने तय रूप से न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर आम आदमी के विश्वास को हिला दिया है, जो कि भारत के संविधान की बुनियादी संरचनाओं में से एक है।"
सोमवार 16 मार्च को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने जस्टिस गोगोई को राज्यसभा के लिए मनोनीत किया था। जस्टिस गोगोई नवंबर 2019 में ही देश के चीफ जस्टिस पद से रिटायर हुए थे।