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चार सालों में देश में 33 फीसदी बढ़ी बाघों की संख्या- वर्ल्ड टाइगर डे पर जारी रिपोर्ट

देश में पिछले चार साल में  बाघों की संख्या में 33 फीसदी का इजाफा हुआ है। 2014 के मुकाबले 2018 तक देश में ...
चार सालों में देश में 33 फीसदी बढ़ी बाघों की संख्या- वर्ल्ड टाइगर डे पर जारी रिपोर्ट

देश में पिछले चार साल में  बाघों की संख्या में 33 फीसदी का इजाफा हुआ है। 2014 के मुकाबले 2018 तक देश में  बाघों की संख्या में 741 की बढ़त  दर्ज की गई है। 2014 में 2,226 बाघ थे, जबकि 2018 में इनकी संख्या बढ़कर 2,967 हो गई है। आज से करीब 13 साल पहले देश में सिर्फ 1411 बाघ बचे थे।  जो 2014 तक बढ़कर 2,226 हो गए। बाघों की आबादी साल दर साल बढ़ रही है। एक समय बाघों की आबादी का बहुत कम हो जाना,देश के ‌लिए चिंता का विषय बन गया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ल्ड टाइगर डे के मौके पर अखिल भारतीय बाघ अनुमान रिपोर्ट 2018 जारी की, जिसमें यह जानकारी दी गई है।

2006 में सबसे कम (1411) थे बाघ 

2006 में भारत में 1411 बाघ थे, 2010 में 1706, 2014 में 2,226 बाघ थे और 2018 में 2,967 बाघ देश में मौजूद हैं। पीएम मोदी ने इस मौके पर कहा कि हमने नौ साल पहले सेंट पीट्सबर्ग के सम्मेलन में 2022 तक बाघों की संख्या दोगुनी करने का लक्ष्य रखा गया था। लेकिन हमने इसे बीते चार साल में ही हासिल कर लिया। देश में टाइगर और संरक्षित इलाकों की संख्या बढ़ने का असर रोजगार पर भी पड़ता है। मैंने पिछले दिनों पढ़ा था कि रणथंभौर में बाघ देखने के लिए हजारों टूरिस्ट पहुंचते हैं। बाघों के लिए सरकार इंफ्रास्ट्रक्टर बढ़ा रही है। साथ ही उन्होने कहा कि घोषित बाघ-गणना के परिणाम हर भारतीय व हर प्रकृति प्रेमी को खुश करेंगे।

बाघों के लिए भारत एक सुरक्षित जगह

मोदी ने कहा कि लक्ष्य हासिल करने के लिए विभिन्न हितधारकों ने जिस गति और समर्पण के साथ काम किया, वह "उल्लेखनीय" था। उन्होंने आगे कहा कि कई देशों में बाघ आस्था का प्रतीक माने जाते हैं। बाघों के लिए भारत एक सुरक्षित जगह है। उन्होंने कहा कि बाघ बढ़ेंगे तो पर्यटन भी बढ़ेगा। पीएम मोदी द्वारा जारी किए गए अखिल भारतीय बाघ अनुमान में बताया गया है कि अभी देश में कुल 2,967 बाघ हैं।

विकास और पर्यावरण के बीच एक स्वस्थ संतुलन बनाना होगा

पर्यावरण और विकास के मुद्दे पर चल रहे संघर्ष पर टिप्पणी करते हुए, मोदी ने कहा कि मुझे लगता है कि विकास और पर्यावरण के बीच एक स्वस्थ संतुलन बनाना संभव है। हमारी नीतियों में, हमारे अर्थशास्त्र में, हमें संरक्षण के बारे में बातचीत को बदलना होगा।

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