जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन छह महीने बढ़ाने का प्रस्ताव राज्यसभा में पारित हो गया। राष्ट्रपति शासन 3 जुलाई से फिर से लागू होगा। साथ ही राज्य सभा में जम्मू-कश्मीर आरक्षण (संशोधन) बिल, 2019 भी पास हो गया। इससे पहले राज्यसभा में तीखी बहस देखने को मिली। कांग्रेस के नेता गुलाम नबी आजाद समेत कई विपक्षी दलों के नेताओं ने सरकार को घेरा। गृह मंत्री अमित शाह ने इसका जवाब दिया। कश्मीरियत, जम्हूरियत और इंसानियत के पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी की प्रतिबद्धता को दोहराते हुए उन्होंने जम्मू-कश्मीर की पिछली सरकारों पर हमला बोला। इस दौरान उन्होंने सूफी संतों और कश्मीरी पंडितों का भी जिक्र किया। साथ ही जवाहर लाल नेहरू के बहाने एक बार फिर उन्होंने कांग्रेस पर निशाना साधा।
‘इतिहास की गलतियों से सीखना चाहिए’
अमित शाह ने कहा कि हम नेहरू जी के बारे में कोई गलत विचार जनता के बीच खड़ा नहीं करना चाहते। यह हमारा उद्देश्य नहीं है और ना कभी होगा लेकिन जो देश इतिहास की भूलों से जो लोग नहीं सीखते उनका भविष्य अच्छा नहीं होता। इतिहास की भूलों की चर्चा होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि शहीदों के लिए हमारे दिलों में पूज्यभाव है क्योंकि इन्होंने देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दिए हैं। शाह ने कहा कि जब एक तिहाई कश्मीर पाकिस्तान के कब्जे में था तो आपने सीजफायर क्यों कर दिया। अगर ये नेता होता तो आज आतंकवाद नहीं होता, सीजफायर नहीं होता तो आज ये झगड़ा नहीं होता। सरदार पटेल तब बोलते रहे लेकिन हम संयुक्त राष्ट्र क्यों गए थे। क्या यह गलती नहीं है। जनमत संग्रह के लिए हमने उस वक्त क्यों सहमति दी थी, गलती की गईं हैं तो सवाल पूछे जाएंगे। हैदराबाद में निजाम संधि के लिए भी तैयार नहीं थे फिर भी सरदार पटेल ने भारत की झोली में हैदराबाद के डाला था।
‘पीडीपी से गठबंधन जनता का फैसला था’
अमित शाह ने कहा चुनाव आयोग जब भी कहेगा सरकार चुनाव कराने में थोड़ी भी देरी नहीं करेगी। उन्होंने कहा कि पीडीपी से गठबंधन का फैसला हमारा नहीं कश्मीर की जनता का फैसला था क्योंकि खंडित जनादेश मिला था। कोई दल सरकार बनाने के लिए पर्याप्त संख्या हासिल नहीं कर पाए इस वजह से हमने पीडीपी के साथ सरकार बनाई लेकिन जब सिर से पानी ऊपर जाने लगा तो तुरंत सरकार से समर्थन वापस ले लिया। शाह ने कहा कि बंगाल में भी राजनीतिक हिंसा थमनी चाहिए क्योंकि यह लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है। उन्होंने कहा कि विधानसभा के अधिकार अभी संसद के पास हैं और विधानसभा में आरक्षण बिल को पारित कराने की जरूरत नहीं है।
‘सुरक्षा कारणों से साथ नहीं कराए चुनाव’
अमित शाह ने कहा कि हम तो देशभर में विधानसभा और लोकसभा के चुनाव साथ कराना चाहते हैं, लेकिन आप इसका समर्थन नहीं करते। लोकसभा चुनाव में सिर्फ 6 सीटें होती है और प्रत्याशी भी कम होते हैं। वहां ऐसे स्थिति नहीं बन पाई कि प्रत्याशियों को सुरक्षा दिए बिना चुनाव हो पाएं। विधानसभा चुनाव के लिए हजार से ज्यादा प्रत्याशियों को सुरक्षा देना मुमकिन नहीं है। क्योंकि अन्य राज्यों में भी चुनाव हो रहे थे, वहां भी सुरक्षाकर्मियों की जरूरत थी। उन्होंने गुलाम नबी आजाद को संबोधित करते हुए कहा कि हमारे पास सरकारों का अकाल नहीं है। मोदी जी की लोकप्रियता है और 16 राज्यों में हमारी सरकारें हैं। सुरक्षा कारणों की वजह से ही लोकसभा के साथ कश्मीर के विधानसभा चुनाव नहीं कराए गए थे। इसके बाद रमजान और अब अमरनाथ यात्रा की वजह से चुनाव नहीं हो पाए। हमारे समय में चुनाव आयोग ही चुनाव कराता है आपके समय में सरकार ही चुनाव करा देती थी।
‘कांग्रेस ने कमेटियों में भेजे कम विधेयक’
शाह ने कहा कि देश में अब तक 132 बार राष्ट्रपति शासन लगाया गया जिसमें 93 बार अकेले कांग्रेस पार्टी ने धारा 356 का इस्तेमाल किया है। हमने तो परिस्थिति की वजह से 356 का प्रयोग किया है लेकिन आपकी सरकार ने तो केरल में सबसे पहली कम्युनिस्ट सरकार गिराकर इसका दुरुपयोग किया था और वह भी नेहरू के समय में हुआ था। शाह ने कहा कि बिलों की चर्चा कमेटियों में नहीं होती, यह सभी की शिकायत रहती है। इस पर गृह मंत्री ने कहा कि जल्दी की वजह से बिल को यहां लाया जाता है। उन्होंने कहा कि यूपीए-2 के अंदर 180 बिल आए जिसमें से 125 बिल एक भी कमेटी के सामने नहीं गए थे। यूपीए-1 में 248 बिल आए जिसमें से 207 बिल किसी कमेटी के सामने नहीं गए। वहीं एनडीए में 180 बिल आए जिसमें से 124 बिल कमेटियों के पास से होकर आए हैं। रिकॉर्ड हमारा अच्छा है लेकिन जल्दबाजी नहीं होगी तो जरूर इस पर विचार किया जाएगा।