भारत में ओमिक्रोन की संख्या में वृद्धि के बावजूद, कई प्रसिद्ध वैज्ञानिकों का विचार है कि स्कूलों को जूनियर कक्षाओं के लिए फिर से खोल दिया जाना चाहिए और सीनियर क्लासेज को खुला और चालू ही रखना चाहिए।
वैज्ञानिकों का मानना है कि ओमिक्रोन बहुत हल्के लक्षण पैदा कर रहा है। एक प्रसिद्ध प्रतिरक्षा-विज्ञानी और वर्तमान में मदुरै कामराज विश्वविद्यालय में जीव विज्ञान के मानद अतिथि प्रोफेसर प्रो आरएम पिचप्पन ने कहा "बच्चों के पास एक मजबूत प्रतिरक्षा प्रणाली है और उचित व्यायाम और शारीरिक गतिविधि के साथ उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली और अधिक मजबूत हो सकती है।"
उन्होंने कहा, "वे इतनी आसानी से संक्रमित नहीं होंगे और यहां तक कि अगर उनके साथ ऐसा होता है तो इससे कोई नुकसान नहीं होगा क्योंकि उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली पहले से ही बहुत मजबूत है।"
जबकि कई माता-पिता अभी भी अपने बच्चों को स्कूल भेजने में अत्यधिक आशंकित हैं। आउटलुक ने ऐसे दस ऐसे माता-पिता से बात की है, जो इन वैज्ञानिकों के मत से सहमत हैं और उनका मानना है कि यह समय विज्ञान और उपलब्ध साक्ष्यों हिसाब से चलने का है, न कि भावनात्मक स्तर पर सोचने का।
भास्करन रमन, प्रोफेसर, आईआईटी बॉम्बे (बेटा कक्षा 3 में है, बेटी कक्षा 9 में है)
"यह सोचना बेतुका है कि बच्चों को वायरस के संपर्क में नहीं लाया गया है, खासकर जब वयस्कों के लिए सब कुछ खुला है। वास्तव में, सीरो-सर्वेक्षण बताते हैं कि बच्चों को वयस्कों के समान ही वायरस के सामने एक्सपोज किया गया है। इसके अलावा, एक यातायात दुर्घटना की तुलना में बच्चों के लिए कोविड का जोखिम कई गुना कम है। क्या हम स्कूल बंद करते हैं या बच्चों को हमेशा घर पर रखते हैं क्योंकि यातायात दुर्घटना का खतरा होता है? निश्चित रूप से नहीं! इसलिए स्कूल बंद करने का सिर्फ नुकसान ही है, कोई लाभ नहीं है।"
तान्या अग्रवाल, दिल्ली में एक वकील, (कक्षा 1 में पढ़ता है बच्चा)
"यह प्राथमिकताओं का सवाल है। यह स्पष्ट है कि भारत शिक्षा को ज़रूरी चीजों के रूप में नहीं देखता है। अधिकारियों ने शिक्षा के ऊपर बाकी सब चीजों को प्राथमिकता दी है, चाहे वो चुनाव हो, त्योहार हो या आर्थिक गतिविधियां। दुनिया के कई हिस्सों में, स्कूल स्कूल खुले हुए हैं। भारत अब सबसे लंबे समय तक स्कूल बंद करने के मामले में युगांडा के बाद दूसरे स्थान पर है। भारत युगांडा से मात्र एक सप्ताह से पीछे है। भारत अपवाद है, आदर्श नहीं। "
सरयू नटराजन, संस्थापक, आप्टी इंस्टीट्यूट, बैंगलोर, (कक्षा 2 में बच्चा)
"हालांकि ऐसे डेटा हैं जो दिखाते हैं कि स्कूल कोविड के प्रसार के लिए उपयुक्त जगह नहीं हैं क्योंकि वे बंद रहते हैं। लेकिन शादियां, रेस्तरां, जनसभा जो वायरस के लिहाज से वल्नरेबल जगहें हैं, वो चालू हैं और वहां बच्चे भी जा सकते हैं। यदि यह, हमारे बच्चों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक नहीं होता है, तो बाकी बातें बहुत हास्यपद होंगी।"
फ़िरोज़ी मेहता, मुंबई में होम्योपैथिक चिकित्सक (ग्रेड 8 और 3 में पढ़ते हैं बच्चे)
"पिछले 22 महीनों के अनुभव से पता चला है कि बच्चों में गंभीर कोविड का जोखिम बहुत कम है और अधिकांश बच्चे पहले ही इसके सामने एक्सपोज हो चुके हैं और उनमें प्राकृतिक प्रतिरक्षा भी है। दूसरी ओर, वैक्सीन के संभावित जोखिम लंबे समय से अज्ञात हैं। मैंने अपने क्लिनिकल प्रैक्टिस में, टीकाकरण के तुरन्त बाद, वयस्कों के साथ होने वाले टिके के विपरीत प्रभाव के बहुतेरे घटना देखे हैं। कई मामलों में विपरीत स्वास्थ्य प्रभाव और कुछ मौतें भी हुई हैं, जिनमें से अधिकांश को आधिकारिक तौर पर प्रतिकूल घटनाओं के रूप में पंजीकृत नहीं किया जा रहा है। क्या हम कभी उन बच्चों के साथ ऐसा जोखिम उठा सकते हैं, जिनके आगे उनका पूरा जीवन है क्योंकि हम आसानी से टीके के नुकसान को पूर्ववत नहीं कर सकते हैं? इसलिए, जोखिम-लाभ के अनुपात बच्चों के लिए सार्वभौमिक टीकाकरण की गारंटी नहीं देता है। आदर्श रूप से, स्कूल अभी खुले होने चाहिए, क्योंकि सबूत बताते हैं कि उन्हें बंद रखने का कोई वैज्ञानिक कारण नहीं है।"
डॉ. सरबानी बनर्जी, वरिष्ठ परियोजना वैज्ञानिक और प्रोफेसर, आईआईटी बॉम्बे, पवई, (8वीं और 10वीं कक्षा के बच्चे)
"जब कोविड अपने चरम पर था, तब भी यूके जैसे देशों ने अपने स्कूल बच्चों के लिए खुला रखा था, क्योंकि ये जानते हैं कि बच्चों को अपने दोस्तों के साथ अधिक बातचीत करने की आवश्यकता है। सभी सामाजिक/आर्थिक स्तरों के लिए, यह बातचीत उनके भावनात्मक और सामाजिक विकास के लिए महत्वपूर्ण है। इसके अलावा, एक "अधिकार" के रूप में, भारत ने विभिन्न कार्यकर्ताओं द्वारा कठिन लड़ाई के बाद आरटीई को शामिल किया। यदि शिक्षा एक अधिकार है, यदि यह एक आवश्यक सेवा है, तो स्कूलों को कभी भी बंद नहीं किया जाना चाहिए। यह बर्बर है की एक डिसीजन मेकिंग बॉडी पूरे समाज के स्कूलों का भाग्य तय करे। माता-पिता काफी समझदार हैं, और शुभचिंतक भी हैं जो अपने बच्चों को स्कूल भेजने का फैसला करते हैं। कृपया हम सभी पर स्कूल-कर्फ्यू लगाना बंद करें।"
निशा कोईरी, प्राकृतिक चिकित्सक, मुंबई, (नौवीं कक्षा की बालिका के माता-पिता)
"मैं अपनी 9वीं कक्षा की बेटी को फिजिकल स्कूल में भेजकर खुश हूं, क्योंकि ऑनलाइन स्कूली शिक्षा निश्चित रूप से बच्चों के लिए नहीं है। हम सामाजिक प्राणी हैं और हमें सीखने और समृद्ध होने के लिए मानव से संपर्क की आवश्यकता है। स्कूल केवल पढ़ाई के लिए नहीं है। लेकिन यह अन्य बच्चों के साथ बातचीत के लिए भी है जो उन्हें बाहरी दुनिया में दिन-प्रतिदिन रहने के लिए तैयार कर सकते हैं। बच्चे निश्चित रूप से कोरोना से प्रभावित नहीं होते हैं और ये क्लिनिकल परीक्षण बच्चों पर नहीं किए जाने चाहिए। उन्हें खेलने दें ताकि वो सामान्य रूप से अध्ययन करें।"
गौरी कुमार, गुरुग्राम में वकील, (14 वर्षीय बेटी कक्षा 8 में)
शिक्षा महत्वपूर्ण है। सीखने से लेकर सामाजिक और भावनात्मक कल्याण तक, हमारे बच्चों के लिए कई स्तरों पर एक बड़ा झटका लगा है। हमें उन्हें उनका बचपन वापस देने और उनके सपनों को पूरा करने के समान अवसर देने के लिए, स्कूल को फिर से खोलने की ज़रूरत है।
बिन्दुलक्ष्मी पट्टादथ, एसोसिएट प्रोफेसर, वीमेन स्टडीज, टीस, मुंबई, (7 वीं कक्षा में बच्चा)
स्कूल और स्कूली शिक्षा प्राप्त करना कोई विशेषाधिकार नहीं है, यह हर बच्चे का अधिकार है। लगभग दो साल से हमारे बच्चों को यह अधिकार नहीं दिया जा रहा है। यह देखना अपमानजनक है कि बच्चों और उनकी शिक्षा के मामलों में प्राथमिकताएँ कहाँ होती हैं। फिजिकल क्लास को ऑनलाइन के साथ बदलने से बच्चों को उनके समग्र विकास के लिए आवश्यक सहायता नहीं मिलती है। याद रखें, स्कूल परिवार के बाहर एक महत्वपूर्ण सामाजिक संस्था है, जहां वे स्वतंत्र होने के कौशल सीखते हैं। इस इनकार की कीमत को संबोधित नहीं किया गया है, जबकि केवल संक्रमण की लागत पर जोर दिया गया है।"
गायत्री सभरवाल, दक्षिण मुंबई में व्यवसायी महिला, (केजी और कक्षा 1 में बच्चे)
“स्कूलों को खोल देना चाहिए और खुला ही रखना चाहिए क्योंकि पिछले 6 महीनों में हमने बच्चों के लिए बहुत अधिक समय खो दिया है, जब बच्चे स्कूल जा सकते थे। पीडिएट्रिक्स टास्क फोर्स ने जुलाई 2021 में और फिर 21 सितंबर को जोर देकर कहा कि बच्चों को स्कूल वापस जाने देना चाहिए, क्योंकि वे स्वाभाविक रूप से प्रतिरक्षित हैं और उन्हें अपने मानसिक और सामाजिक विकास के लिए स्कूल जाने की आवश्यकता है। लाखों गरीब बच्चों के स्कूल में पहुंच की कमी के कारण, यह स्कूल-बंदी हमारे देश को 10 साल या उससे अधिक पीछे कर देगा।
सुकृति गोयल, हैदराबाद में एविड इंवेंट में सह-संस्थापक, (केजी में 5 वर्षीय अध्यनरत बच्चे की मां)
"स्कूल एक ऐसा वातावरण प्रदान करते हैं जो एक बच्चे में आत्म-विश्वास पैदा करते हुए सामाजिक संपर्क को बढ़ावा देता है। यहाँ बच्चे एक दूसरे से बहुत कुछ सीखते हैं। यही नहीं, स्कूल बच्चों की रचनात्मक ऊर्जा का भी उपयोग करता है। बच्चों, विशेष रूप से छोटे बच्चों के लिए दूरस्थ शिक्षा, शैक्षिक अनुभव के करीब भी नहीं आ सकती है, जो स्कूल में रहकर प्राप्त किया जा सकता है। मैंने कुछ दिनों में पढ़ाने के इन दोनो तरीकों के बीच एक बड़ा अंतर देखा है, क्योंकि मेरी बेटी ने नियमित स्कूल में भाग लिया था और इसने उसके भाषण, कौशल और मानसिक स्थिति में सुधार किया।