‘'लोग यहां अपनी समस्याओं और चिंताओं के साथ आए थे और आपने उन्हें भगा दिया। क्या हम अपने देश में यह चाहते हैं? मैं एक नागरिक के तौर पर यह सवाल कर रहा हूं, सांसद के तौर पर नहीं। यह वह हिंदू धर्म नहीं है, जिसे मैं जानता हूं।‘'
ये शब्द हैं कांग्रेस नेता शशि थरूर के। सोमवार को केरल के त्रिवेंद्रम स्थित उनके ऑफिस में हमला किया गया और तोड़फोड़ की गई। थरूर ने इसके पीछे भाजपा कार्यकर्ताओं का हाथ बताया है। उन्होंने कहा कि मेरे खिलाफ अपमानजनक नारे लगाए गए और मुझसे पाकिस्तान जाने को कहा गया। यह सारा बवाल 11 जुलाई को शशि थरूर द्वारा दिए गए ‘हिंदू पाकिस्तान’ वाले बयान को लेकर है।
आजकल देश में विरोधी विचार वाले को तुरंत देशद्रोही बताने और पाकिस्तान चले जाने का फरमान सुनाने का चलन है। यह न्यू इंडिया है, जहां अब तय नहीं है कि किस बात पर आपकी लिंचिंग कर दी जाएगी।
पिछले दिनों शशि थरूर ने अपने बयान पर फेसबुक पर स्पष्टीकरण दिया था। उन्होंने अपनी बात पर कायम रहते हुए कहा था, 'मैंने ऐसा पहले भी कहा है और एक बार फिर कहूंगा। पाकिस्तान का जन्म एक धर्म विशेष की आबादी के लिए हुआ था और जिसने अपने देश के अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव किया। अल्पसंख्यकों को पाकिस्तान में उनके मौलिक अधिकारों से भी वंचित किया। अल्पसंख्यकों को पाकिस्तान में उनके मौलिक अधिकारों से भी वंचित रखा गया। भारत ने उस तर्क को कभी स्वीकार नहीं किया जिसके आधार पर दो देशों का बंटवारा हुआ था।'
उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा था कि बीजेपी-आरएसएस का हिंदू राष्ट्र का विचार पाकिस्तान की उसी सोच का प्रतिविंब है। उन्होंने लिखा, 'एक राज्य जहां बहुसंख्यक देश में अल्पसंख्यकों को दबाकर रखते हैं और वह हिंदू पाकिस्तान ही होगा। इसके लिए हमने आजादी की लड़ाई नहीं लड़ी थी। न ही भारत के ऐसे स्वरूप की व्याख्या हमारे संविधान में की गई है।'
यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि बीते कुछ सालों में कभी गौरक्षा के नाम पर, कभी बीफ के नाम पर अल्पसंख्यक समुदाय पर हमले बढ़े हैं। अखलाक, जुनैद, पहलू खान की हत्याएं इसका उदाहरण हैं। सोशल मीडिया पर ऐसे अफवाह तंत्र में बढ़ोतरी हुई है, जो दिन-रात समुदाय विशेष के खिलाफ जहर उगलता है। कई केंद्रीय मंत्री बात-बात पर पाकिस्तान चले जाने की सलाह देते रहे हैं। पिछले दिनों एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें एक मुस्लिम बुजर्ग को गालियां दी गईं, क्योंकि बस में एक हरा झंडा था और उस पर चांद-सितारा बना हुआ था। गालियां देने वाला इसे पाकिस्तान का झंडा बता रहा था। उसने बुजर्ग से झंडे को रौंदने के लिए कहा। हालांकि यह पाकिस्तान का झंडा नहीं था।
यह घटना इसलिए भी याद आई क्योंकि चांद सितारे वाले हरे झंडे पर रोक की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र से जवाब मांगा है। उत्तर प्रदेश शिया सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष वसीम रिजवी ने इस पर रोक की मांग की है। उन्होंने कहा है कि इस झंडे का इस्लाम से कोई लेना देना नहीं है, ये पाकिस्तान की मुस्लिम लीग पार्टी के झंडे जैसा है।
इन सब घटनाओं के बाद जाहिर है देश के बहुत से लोगों में मुसलमानों को लेकर पूर्वाग्रह हैं। किसी ने कहा था कि अगर किसी देश की वास्तविक स्थिति जाननी हो तो यह पता करना चाहिए कि वहां अल्पसंख्यकों का क्या हाल है। इस मामले में पाकिस्तान का उदाहरण इसलिए दिया जाता है क्योंकि वहां अल्पसंख्यकों की स्थिति खराब है। अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय पर हमले होते रहते हैं। पिछले दिनों खबर आई कि सिख समुदाय के लोग पेशावर छोड़कर या तो पाकिस्तान के दूसरे हिस्सों में जा रहे हैं या भारत आ रहे हैं। पाकिस्तान भारत की प्रेरणा कभी नहीं हो सकता क्योंकि यह देश धर्म से संचालित नहीं होता। इसका संविधान सेक्युलर मूल्यों की बात करता है। भारत-पाकिस्तान का बंटवारा भले मजहब के आधार पर हुआ था लेकिन महात्मा गांधी ने इस बात को कभी स्वीकार नहीं किया था कि सारे मुसलमान पाकिस्तान चले जाएं। यह देश समावेश और वसुधैव कुटुम्बकम की बात करता रहा है।
शशि थरूर कहते हैं कि यह वह हिंदू धर्म नहीं है, जिसे मैं जानता हूं। उन्होंने अपने हिस्से के हिंदू धर्म के बारे में एक किताब भी लिखी है, जिसका नाम है- व्हाय आई एम अ हिंदू। वह खुद को एक सनातन हिंदू मानते हैं लेकिन वह कहते हैं कि इसे हिंदुत्व से अलग करने की जरूरत है और इसे रीक्लेम किए जाने की जरूरत है।
जाहिर है हिंदू धर्म और हिंदुत्व दो अलग चीजें हैं। हिंदुत्व राजनीतिक एजेंडा है, जिसका शिकार हिंदू धर्म भी हो रहा है। हिंदू धर्म का इस्तेमाल राजनीतिक हितों के लिए किया जा रहा है। इसके नाम पर हिंसा की जा रही है। कभी राम के नाम पर, कभी गाय के नाम पर लोगों को मौत के घाट उतार दिया जाता है। क्या हिंदू धर्म इसकी इजाजत देता है? जाहिर है नहीं। शशि थरूर की बात से असहमत हुआ जा सकता है, या उनकी बात के विपक्ष में प्रतितर्क खड़ा किया जा सकता है लेकिन इस तरह हिंसा की संस्कृति को बढ़ावा देना, वह भी धर्म के नाम पर, इससे तो उन्हीं की कही बात को मजबूती मिलती है।