सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि वह सबरीमला मामले में दलीलें पूरी होने के बाद संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगा। सीजेआई एस. ए. बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल के सीएए मामलों पर तत्काल सुनवाई किए जाने का अनुरोध करने के बाद यह टिप्पणी की।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अब तक केंद्र ने मामले में कोई जवाब दाखिल नहीं किया है। अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल ने पीठ को बताया कि केंद्र कुछ दिनों में जवाब दाखिल करेगा। पीठ में न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत भी शामिल रहे।
बता दें कि नौ सदस्यीय पीठ सबरीमला मंदिर और मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश तथा दाऊदी बोहरा समुदाय में महिलाओं के खतने की प्रथा समेत विभिन्न धार्मिक मामलों पर विचार कर रही है।ॉ
क्या है नागरिकता संशोधन कानून
बता दें कि नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019 वह कानून है जिसके जरिए 1955 के नागरिकता कानून में संशोधन कर पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आने वाले हिंदू, बौद्ध, सिख, जैन, पारसी और ईसाई को नागरिकता प्रदान करने की व्यवस्था है।
लोकसभा ने 10 दिसंबर को तो राज्यसभा ने 11 दिसंबर 2019 को नागरिकता संशोधन बिल को पास किया था। वहीं, 12 दिसंबर को राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद से यह कानून बन गया. सरकार ने 20 दिसंबर 2019 को पाकिस्तान से आए सात शरणार्थियों को नागरिकता देकर इस अधिनियम को लागू किया। हालांकि सामान्य प्रक्रिया से आवेदन की शुरुआत होनी बाकी है।
जानें क्या है सबरीमला मंदिर मामला
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट गुरुवार को भारत के दक्षिण भारतीय राज्य केरल स्थित सबरीमला अय्यपा मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर अपना आखिरी फैसला सुनाने वाला था। वैसे तो सर्वोच्च अदालत ने 28 सितंबर, 2018 के फैसले में सभी उम्र की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश का अधिकार दे दिया था।
हालांकि इस फैसले की समीक्षा के लिए 60 याचिकाएं दायर की गई थीं। सुप्रीम कोर्ट की मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अगुवाई वाली पांच जजों वाली पीठ ने छह फरवरी 2019 को इन याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
काफी लंबी-चौड़ी बहस हुई
बता दें कि 28 सितंबर 2018 को सीजेआई रंजन गोगोई की अगुवाई में जस्टिस आर फली नरीमन, जस्टिस एएम खानविल्कर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा की पीठ ने सभी उम्र की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की इजाजत दी थी।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से नाखुश कई संस्थाओं और समूहों ने इसकी समीक्षा के लिए याचिकाएं दायर कीं। फैसले पर पुनर्विचार याचिका दायर करने वालों में नायर सर्विस सोसायटी (एनएसएस) और मंदिर के तंत्री (पुजारी) भी शामिल हैं।
सबरीमला में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर भारत में काफी लंबी-चौड़ी बहस हुई है। मासिक धर्म से गुजरने वाली महिलाओं को मंदिर में न जाने दिए जाने को महिलावादी और प्रगतिशील संगठनों ने महिलाओं के मूलभूत अधिकारों का हनन बताया है। वहीं, कई धार्मिक संगठनों की दलील है कि चूंकि अयप्पा ब्रह्मचारी माने जाते हैं, इसलिए 10-50 वर्ष की महिलाओं को उनके मंदिर में जाने की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए।