संसद के विशेष सत्र में पारित होने के कुछ दिनों बाद महिला आरक्षण विधेयक को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी मिल गई। भारत सरकार ने विधेयक के लिए एक गजट अधिसूचना जारी कर दी है। इसके साथ ही इसने कानून की रूप ले लिया है। एक ऐतिहासिक मतदान में, विधेयक को 454 सदस्यों के पक्ष में मतदान के साथ पारित किया गया। विधेयक में लोकसभा और राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (यूटी) की विधानसभाओं में एक तिहाई सीटें आरक्षित करने का प्रावधान है।
शुक्रवार को जारी कानून मंत्रालय की अधिसूचना के अनुसार, राष्ट्रपति ने गुरुवार को अपनी सहमति दे दी। अब, इसे आधिकारिक तौर पर संविधान (106वां संशोधन) अधिनियम के रूप में जाना जाएगा। इसके प्रावधान के अनुसार, "यह उस तारीख से लागू होगा जो केंद्र सरकार आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचना द्वारा निर्धारित करेगी।"
विधेयक, जो अब एक कानून बन गया है, नए सिरे से जनगणना और परिसीमन के बाद ही लागू होने की उम्मीद है, जिसका अर्थ है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में महिला आरक्षण प्रभावी होने की संभावना नहीं है। गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि जनगणना और परिसीमन 2024 के लोकसभा चुनावों के तुरंत बाद शुरू होगा और संकेत दिया कि महिलाओं के लिए आरक्षण 2029 के लोकसभा चुनावों के बाद लागू होगा।
विपक्षी दलों ने बड़े पैमाने पर विधेयक का समर्थन किया लेकिन ऐसे कानून के कार्यान्वयन में देरी पर सवाल उठाया। वरिष्ठ कांग्रेस नेता सोनिया गांधी ने भी महिला कोटा बिल में एससी, एसटी और ओबीसी के लिए उप-कोटा शामिल करने के साथ-साथ जाति जनगणना पर भी जोर दिया। गांधी ने कहा, "भारतीय महिला में समुद्र की तरह धैर्य है। उन्होंने नदी की तरह सभी की भलाई के लिए काम किया है...महिला आरक्षण विधेयक को लागू करने में कोई भी देरी भारतीय महिलाओं के साथ घोर अन्याय होगा।"
 
                                                 
                             
                                                 
                                                 
                                                 
			 
                     
                    