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पटना में महिला हिंसा पर वर्कशॉप का आयोजन, फिल्म "स्पेंट" की हुई स्क्रीनिंग

बिहार की राजधानी पटना में "आर्थिक हिंसा और महिलाएं" विषय पर वर्कशॉप और फिल्म स्क्रिनिग का आयोजन आगामी 15...
पटना में महिला हिंसा पर वर्कशॉप का आयोजन, फिल्म

बिहार की राजधानी पटना में "आर्थिक हिंसा और महिलाएं" विषय पर वर्कशॉप और फिल्म स्क्रिनिग का आयोजन आगामी 15 दिसंबर को किया गया। इस आयोजन में फिल्म "स्पेंट" की स्क्रीनिंग की गई।ये फिल्म भारत में आर्थिक हिंसा झेल रही महिलाओं की कहानी पर आधारित है। इसे शेफील्ड हेलम यूनिवर्सिटी के सहयोग से बनाया गया है। इस अवसर पर फिल्म की निर्देशक पुनीता चौबे और फिल्म से जुड़ी टीम सीटू , राजेश राज, निवेदिता मौजूद रहीं। 

फिल्म 'स्पेंट" की निर्देशक पुनीता चौबे ने जगजीवन राम अध्ययन एवं राजनीतिक शोध संस्थान में आयोजित वर्कशॉप को संबोधित करते हुए कहा "हम में से बहुत कम लोग जानते हैं कि महिलाओं के जीवन में आर्थिक हिंसा की क्या भूमिका है। आर्थिक हिंसा तमाम हिंसा से ज्यादा खतरनाक और सूक्ष्म है। जिसे आसानी से समझना मुश्किल है। ये हिंसा महिलाओं के आत्म सम्मान, आत्म निर्भरता पर हमला करता है। महिलाओं को आगे बढ़ने से रोकला है। हमारी फिल्म 'स्पेट' वैसी ही महिलाओं की कहानी कहती है।"उन्होंने कहा कि फिल्म मूल रूप से महिलाओं के जीवन के संघर्ष पर आधारित है। पांच औरतों की कहानी के जरिए फिल्म भारत में आर्थिक हिंसा झोल रही महिलाओं की कहानी कहता है। इस फिल्म को शेफील्ड हेलम यूनिवर्सिटी के सहयोग से बनाया गया है।

जगजीवन राम अध्ययन एवं राजनीतिक शोध संस्थान के निदेशक नरेंद्र पाठक ने कहा कि आर्थिक हिंसा महिलाओं को स्वतंत्र होने से रोकती है, अपने जीवन के संबंध में निर्णय लेने की उनकी क्षमता को बाधित करती है और प्रायः अपमानजनक स्थितियों से बाहर निकल सकने में बाधक है। इसलिए ये जरूरी है कि हिंसा को रोकने के लिए महिलाएं इस आर्थिक हिंसा के जाल से निकले।

संस्थान में आयोजित वर्कशॉप का संचालन करते हुए निवेदिता झा ने बताया कि फिल्म में जिन औरतों की कहानी है, वे सब हमारे आस-पास की औरतें हैं। ऐसी फिल्में समाज का आईना है। वे फिल्म बताती है कि अभी भी पुरुष सत्ता कितनी मजबूत है। ये कहानी अलग- अलग परिवेश और अलग अलग वर्ग से आई महिलाओं से जुड़ी है।

वरिष्ठ पत्रकार सीटू तिवारी ने कहा कि फिल्म बनाने की प्रक्रिया के दौरान हम सब ने जाना महिलाओं की जिन्दगी में आर्थिक हिंसा तमाम हिंसा से ज्यादा खतरनाक है। अगर औरतों की जिन्दगी को बेहतर करना है तो उन्हें अपने पांव पर खड़ा होने के लिए बेहतर मौका दिया जाना चाहिए। 

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