इस समय नृत्य के क्षेत्र में महिला नृत्यांगनाओं का दबदबा सा है। दिनोदिन पुरुष नर्तकों की तादाद क्षीण होती जा रही है। कथक नृत्य में पुरुष नृत्यकारों की शिरकत तो कुछ हद तक संतोषजनक है पर अन्य नृत्य शैलियों में स्थिति थोड़ी निराशाजनक है। वैसे हर नृत्य में थोड़े- बहुत पुरुष नर्तकों का दखल जरूर है। उनमें भरतनाट्टयम नृत्य के शांतनु चक्रवर्ती कुशल और प्रभावी नर्तक के रूप में उभरे हैं।
हाल ही रामकृष्णन मिशन द्वारा आयोजित स्वामी विवेकानन्द संगीत - नृत्य समारोह में उनके नृत्य की धाक देखने को मिली। कला साधना में लीन कलाकार की आकांक्षा होती है कि कला की बुलंदियों को छूने के लिए उसे भरपूर उड़ान मिले। इसी लक्ष्य को पाने के लिए शांतनु ने भरतनाट्टयम नृत्य में प्रवेश किया। पूरी निष्ठा और लगन में गुरुओं के अधीन नृत्य के हर पक्ष में दक्षता को हासिल करके एक कुशल नर्तक के रूप में उन्होंने अपने को स्थापित किया।
इस समारोह में परंपरा के आधार पर भरतनाट्टयम नृत्य की प्रस्तुति काफी उत्तेजक और रोमांचकारी थी। गुरु वी कृष्णामूर्ति द्वारा पारंपरिक पुष्पांजलि पर नृत्य संरचना में भगवान गणेश, देवी सरस्वती, लक्ष्मी, दुर्गा और भगवान शिव का श्लोक उच्चारण में जो आवाहन था उसे भक्ति के टेक पर शांतनु ने रंजकता से प्रस्तुत किया। आदि शंकराचार्य द्वारा रचित शिव स्त्रोत 'ओम नम: शिवाय' के दार्शनिक भाव को सजगता से उभारने में उनका प्रयास उम्दा और विवेकपूर्ण था। नृत्य और भाव के जरिए स्त्रोत के हर अक्षर के अर्थ और उसकी प्रसांगिकता को दर्शाने की भी उनकी चेष्टा सराहनीय थी। यह प्रस्तुति राममालिका और ताल मालिका में निबद्ध थी।
स्वामी रविदास का भजन जिसमें भगवान विष्णु और उनके अवतारों में श्रीराम, कृष्ण, वामन और गज मोक्षकम कथा का रोमांचभरा और सौन्दर्यपूर्ण विवरण को काफी हदतक जीवतंता से प्रस्तुत करने का प्रयास शांतनु ने किया। यह प्रस्तुति रागम यमन और ताल मिश्र चापू पर आधारित थी।