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भारत परमाणु दायित्व कानून में कर सकता है बड़ा बदलाव, विदेशी निवेश को मिलेगा बढ़ावा: रिपोर्ट

केंद्र सरकार देश के परमाणु दायित्व कानून(सिविल लायबिलिटी फॉर न्यूक्लियर डैमेज एक्ट, 2010) में एक अहम...
भारत परमाणु दायित्व कानून में कर सकता है बड़ा बदलाव, विदेशी निवेश को मिलेगा बढ़ावा: रिपोर्ट

केंद्र सरकार देश के परमाणु दायित्व कानून(सिविल लायबिलिटी फॉर न्यूक्लियर डैमेज एक्ट, 2010) में एक अहम बदलाव पर विचार कर रही है। जिससे विदेशी आपूर्तिकर्ताओं की लंबे समय से चली आ रही चिंता को दूर किया जा सके। रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत का परमाणु ऊर्जा विभाग (डीएई) एक मसौदा तैयार कर चुका है। जो नागरिक परमाणु दायित्व अधिनियम, 2010 में उस खंड को हटाने का प्रस्ताव देता है। जिसमें आपूर्तिकर्ताओं को दुर्घटनाओं की स्थिति में वित्तीय रूप से उत्तरदायी ठहराया गया है।

यह संभावित संशोधन भारत के परमाणु क्षेत्र में विदेशी निवेश को आकर्षित करने के इरादे से किया जा रहा है। खासकर अमेरिका की कंपनियों जैसे जनरल इलेक्ट्रिक और वेस्टिंगहाउस इलेक्ट्रिक ने अब तक भारत के परमाणु ऊर्जा बाजार में प्रवेश करने से कतराया है। क्योंकि मौजूदा कानून के तहत उन्हें दुर्घटनाओं के लिए असीमित मुआवजा देना पड़ सकता था।

रॉयटर्स के अनुसार, डीएई द्वारा तैयार किया गया मसौदा भारतीय कानून को अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप लाने की दिशा में एक बड़ा कदम है। प्रस्तावित संशोधन में न केवल आपूर्तिकर्ताओं की देयता को सीमित करने की बात की गई है। बल्कि मुआवजे के दावे के लिए एक समय सीमा भी तय की जाएगी। जो अनुबंध में स्पष्ट रूप से उल्लिखित होगी।

इस बदलाव का उद्देश्य भारत में परमाणु ऊर्जा क्षेत्र को मजबूत करना है  ताकि प्रधानमंत्री मोदी द्वारा निर्धारित  2047 तक 100 गीगावाट न्यूक्लियर पावर उत्पन्न करने के लक्ष्य को प्राप्त कर सके। डेलॉयट साउथ एशिया के चीफ ग्रोथ ऑफिसर देबाशीष मिश्रा ने इस संदर्भ में कहा, “भारत को स्वच्छ और आवश्यक ऊर्जा स्रोत के रूप में न्यूक्लियर पावर की जरूरत है। मुआवजे की सीमा तय करना आपूर्तिकर्ताओं की एक बड़ी चिंता को दूर करेगा।”

परमाणु कानून में यह बदलाव अमेरिका-भारत द्विपक्षीय व्यापार को भी नई ऊंचाई तक पहुंचा सकता है। रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार जहां यह व्यापार पिछले साल 191 अरब डॉलर था। वहीं अनुमान है कि यह 2030 तक बढ़कर 500 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है। संभावना है कि यह प्रस्तावित संशोधन जुलाई में संसद के आगामी मानसून सत्र में पेश किया जाएगा

गौरतलब है कि भारत ने 2010 में नागरिक परमाणु दायित्व अधिनियम को लागू किया था। जो 1984 की भोपाल गैस त्रासदी के बाद सामने आए सवालों के जवाब के रूप में लाया गया था। उस त्रासदी में अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनी यूनियन कार्बाइड कॉर्प के स्वामित्व वाले कारखाने से जहरीली गैस रिसाव के कारण कम से कम 5,000 लोगों की जान चली गई थी। बाद में 1989 में यूनियन कार्बाइड ने $470 मिलियन का आउट-ऑफ-कोर्ट सेटलमेंट किया था।

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