भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह रूस से कच्चे तेल का आयात (Russian oil imports) जारी रखेगा, भले ही अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 25 प्रतिशत टैरिफ और "पेनल्टी" की धमकी दी हो। ट्रंप ने हाल ही में दावा किया कि भारत रूस से तेल खरीदना बंद कर सकता है, और इसे एक "अच्छा कदम" बताया, लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि इसकी उन्हें पुष्टि नहीं है।
हालांकि भारत सरकार ने इस पर सीधा जवाब देते हुए कहा कि उसकी तेल खरीद की नीति में कोई बदलाव नहीं हुआ है और यह पूरी तरह बाजार आधारित है। भारत के विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि तेल आयात का निर्णय कीमतों, आपूर्ति की उपलब्धता और लॉजिस्टिक कारणों पर आधारित होता है, न कि किसी राजनीतिक दबाव पर।
सूत्रों के मुताबिक, किसी भी भारतीय रिफाइनरी को रूसी तेल की खरीद रोकने का निर्देश नहीं दिया गया है। भारत इस समय दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक है और 2025 की पहली छमाही में रूस से उसका आयात कुल क्रूड का लगभग 35% रहा है, यानी करीब 1.75 मिलियन बैरल प्रतिदिन। हालांकि जुलाई में कुछ सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों ने रूसी तेल की खरीद कम की थी, लेकिन इसका कारण ट्रंप की धमकी नहीं बल्कि रूस द्वारा दिए जा रहे डिस्काउंट में कमी थी।
विश्लेषकों के अनुसार, यदि भारत को रूस से तेल खरीद बंद करनी पड़ी तो उसका आयात बिल 9 से 11 बिलियन डॉलर तक बढ़ सकता है, जिससे मुद्रास्फीति पर दबाव आएगा और रिफाइनरियों की लागत में बढ़ोतरी होगी। सरकार ने संकेत दिया है कि दीर्घकालिक ऊर्जा समझौतों के चलते नीतियों में अचानक बदलाव संभव नहीं है।
भारत और रूस के बीच दशकों पुराना रणनीतिक संबंध रहा है और भारत किसी एक देश के कहने पर अपने राष्ट्रीय हितों से समझौता नहीं करेगा। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि भारत वैश्विक बाजार और व्यावसायिक तर्कों के आधार पर निर्णय लेता है, न कि किसी राजनीतिक दबाव में।
इस तरह भारत ने साफ कर दिया है कि वह अपनी ऊर्जा सुरक्षा और रणनीतिक स्वायत्तता को प्राथमिकता देगा, चाहे बाहरी दबाव कुछ भी हो।