दिल्ली की केजरीवाल सरकार और उपराज्यपाल के बीच लंबे समय से चल रहे विवादों के बीच बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि उपराज्यपाल दिल्ली में फैसला लेने के लिए स्वतंत्र नहीं हैं, एलजी को कैबिनेट की सलाह के मुताबिक ही काम करना होगा। अदालत के इस फैसले को आप सरकार की बड़ी जीत के तौर पर देखा जा रहा है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने यह साफ किया है कि सूबे में उपराज्यपाल ही सबकुछ नहीं है बल्कि दिल्ली की चुनी हुई सरकार राज्य को चलाने के लिए जिम्मेदार है।
शीर्ष अदालत के फैसले के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल काफी खुश नजर आ रहे हैं। उन्होंने इस फैसले को लोकतंत्र की बड़ी जीत करार दिया। आइए जानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले की किन बातों से दिल्ली सरकार का दबदबा बढ़ा है-
1- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र और राज्य के बीच भी सौहार्दपूर्ण रिश्ते होने चाहिए। राज्यों को राज्य और समवर्ती सूची के तहत संवैधानिक अधिकार का इस्तेमाल करने का हक है।
2-मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अगुआई वाली बेंच ने कहा कि उपराज्यपाल राह में बाधक की तरह काम नहीं कर सकते।
3-जस्टिस एके सीकरी, एएम खानविलकर, डीवाई चंद्रचूड़ और अशोक भूषण ने कहा कि एलजी को स्वतंत्र निर्णय लेने का कोई स्वतंत्र अधिकार नहीं है।
4-कोर्ट ने कहा, “एलजी को मंत्रिपरिषद के साथ तालमेल के साथ काम करना चाहिए और मतभिन्नताओं को बातचीत से हल करने का प्रयास करना चाहिए।”
5-सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एलजी मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करने के लिए बाध्य हैं।
6- जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, “असल शक्तियां मंत्रिपरिषद् के पास है और एलजी को ध्यान में रखना चाहिए कि मंत्रिपरिषद निर्णय लेगा न कि वह।”
7-जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि एलजी को पता होना चाहिए कि मंत्रिपरिषद लोगों के लिए जवाबदेह है।
8-कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जमीन और लॉ एंड ऑर्डर को छोड़कर दिल्ली सरकार को दूसरे मुद्दों पर कानून बनाने का अधिकार है।
9-जस्टिस भूषण ने कहा कि रोजमर्रा के फैसलों के लिए एलजी का साथ जरूरी नहीं है।
10-सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एलजी को यांत्रिक तरीके से काम नहीं करना चाहिए और मंत्रिपरिषद के फैसलों को रोकना नहीं चाहिए।
11-कोर्ट ने कहा कि मंत्रिपरिषद् के फैसलों से एलजी को अवगत कराना जरूरी है लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि एलजी की सहमति आवश्यक है।
12-सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि खास परिस्थिति में मतभिन्नता होने पर एलजी मुद्दों को राष्ट्रपति के पास ट्रांसफर कर सकता है लेकिन साधारण नियम की तरह नहीं।
 
                                                 
                             
                                                 
                                                 
			 
                     
                    