जिस 2जी घोटाले में गुरुवार को सभी आरोपी बरी कर दिए गए उसके कारण सुप्रीम कोर्ट ने 2012 में 122 लाइसेंस रद्द कर दिए थे। ये लाइसेंस 'पहले आओ, पहले पाओ' की नीति के आधार पर उस समय जारी किए गए थे जब ए. राजा दूरसंचार मंत्री थी। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से यूनिनॉर (यूनिटेक और नॉर्वे की टेलीनॉर की संयुक्त कंपनी), लूप टेलीकॉम, सिस्टेमा श्याम (श्याम और रूस की सिस्टेमा की संयुक्त कंपनी), इतिसलाद डीबी (स्वान और यूएई की इतिसलाद की संयुक्त कंपनी), एसटेल, वीडियोकॉन, टाटा और आइडिया को काफी नुकसान हुआ था।
यूनिनॉर को 22, लूप को 21, सिस्टेमा श्याम को 21, इतिसलाद डीबी को 15, एसटेल को छह, वीडियोकॉन को 21, आइडिया को नौ और टाटा को तीन लाइसेंस मिले थे। भारत के टेलीकॉम सेक्टर की दिशा बदलने में 'पहले आओ, पहले पाओ' की नीति का बड़ा योगदान था। इसके कारण टेलीकॉम कंपनियों की संख्या 7 से 14 हो गई थी। 2008 के बाद शुरू हुई 7 कंपनियों ने कुछ ही महीने में करीब 40,000 करोड़ रुपये के निवेश किए थे और 7 करोड़ ग्राहक जोड़े। इसकी वजह से टेलीकॉम सर्विस बेहद सस्ती हो गई। पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने अचानक कई कंपनियों को इस सेक्टर से बाहर कर दिया था।
स्वान, एस-टेल और लूप टेलीकॉम जैसी कंपनियां सेक्टर से बाहर हो गईं। कई कंपनियों के लिए सेक्टर में बने रहना भारी पड़ने लगा और उन पर कर्ज का बोझ बढ़ने लगा। अब हालत यह है कि इस सेक्टर में बहुत ही कम कंपनियां बची हैं और उन पर कर्ज का भारी बोझ है। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक टेलीकॉम सेक्टर में लगातार कर्मचारियों की छंटनी हो रही है। एक अनुमान के मुताबिक कुछ महीनों में करीब 1.5 लाख लोगों की नौकरी जा सकती है।