2002 के नरोदा पाटिया नरसंहार केस में तीन दोषियों पर गुजरात हाईकोर्ट ने आज अपना फैसला सुनाया। समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक, सोमवार को हर्षा देवानी और एस सुपेहिया की पीठ ने इस मामले में तीन दोषियों पीजे राजपूत, राजकुमार चौमल और उमेश भरवाद को 10-10 साल की सजा सुनाई है। साथ ही दोषियों पर एक हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया गया है।
इससे पहले वर्ष उच्च न्यायालय ने याचिकाओं की सुनवाई के दौरान 20 अप्रैल को इन तीनों को दोषी पाया था और 29 अन्य को बरी कर दिया। खंडपीठ ने इन दोषियों की सजा की अवधि पर आदेश सुरक्षित रखा था।
इससे पहले 2012 के एक फैसले में तीनों दोषियों- पी जी राजपूत, राजकुमार चौमल और उमेश भरवाद समेत 29 अन्य को एसआईटी की विशेष अदालत ने बरी कर दिया था।
गुजरात के नरोदा पाटिया दंगा मामले में मुख्य आरोपी बनाई गईं गुजरात की पूर्व भाजपा मंत्री माया कोडनानी सहित 17 अन्य को बरी कर दिया था। इसी मामले में बजरंग दल के पूर्व नेता बाबू बजरंगी की आजीवन कारावास की सजा को कायम रखा गया था। बाबू बजरंगी समेत 13 लोगों को कोर्ट ने दोषी माना था। निचली अदालत द्वारा बरी किए गए 3 अन्य लोगों को भी हाईकोर्ट ने दोषी ठहराया था।
इस मामले में गुजरात हाईकोर्ट ने एसआईटी को फटकार लगाई थी। कोर्ट ने एसआईटी की जांच में कई खामियां गिनाईं। जस्टिस हर्षा देवानी और जस्टिस एएस सुपेहिया की खंडपीठ ने कहा था कि एसआईटी ने जो जांच की है उस पर ज्यादा भरोसा नहीं किया जा सकता। बता दें कि दंगों की जांच के लिए वर्ष 2008 में एसआईटी का गठन सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों पर किया गया था।
ये है पूरा मामला?
साल 2002 में फरवरी-मार्च के महीने में गोधरा दंगे के बाद भड़की हिंसा में 97 मुस्लिमों का कत्लेआम किया गया था। नरोदा पाटिया दंगा मामला इसी सांप्रदायिक हिंसा से जुड़ा है। नरोदा पाटिया में करीब 10 घंटे तक नरसंहार को अंजाम दिया गया था। इस घटना के बाद पूरे क्षेत्र में कर्फ्यू लगा दिया गया था और सेना बुला ली गई थी। नरोदा का मामला 2002 के गुजरात दंगों का सबसे बड़ा नरसंहार था।