क्या है मामला?
कैग ने 2010 की अपनी रिपोर्ट में कहा कि 2जी लाइसेंस की नीलामी नहीं किए जाने के कारण खजाने को 1.76 लाख करोड़ का नुकसान हुआ। 2012 में कोयला घोटाला सामने आने से पहले तक यह देश का सबसे बड़ा घोटाला था।
स्पेक्ट्रम आवंटन कब?
पहले आओ, पहले पाओ नीति के आधार पर 2008 में स्पेक्ट्रम आवंटित किए गए थे। उस समय मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए की सरकार थी। द्रमुक के ए. राजा दूरसंचार मंत्री थे।
राजा, कनिमोझी मुख्य आरोपी
सीबीआई के स्पेशल जज ओपी सैनी के सामने तीन मामले आए। दो सीबीआई ने और एक प्रवर्तन निदेशालय ने दर्ज किए थे। सीबीआई के पहले केस में राजा और कनिमोझी मुख्य आरोपी थे।
-राजा पर 2001 में तय की गई दरों पर स्पेक्ट्रम बेचने और अपनी पसंदीदा कंपनियों को फायदा पहुंचाने का आरोप था।
-आरोप लगा कि राजा के मंत्री रहते दूरसंचार मंत्रालय ने पहले आवेदन करने की डेडलाइन 1 अक्टूबर 2007 तय की। इसके बाद आवेदन प्राप्त करने की कट-ऑफ डेट बदलने से 575 में से 408 आवेदक रेस से बाहर हो गए।
- 'पहले आओ, पहले पाओ' की नीति का उल्लंघन किया गया। उन कंपनियों को लाइसेंस दिए गए जिनके पास कोई अनुभव नहीं था। नए ऑपरेटरों के लिए एंट्री फी का संशोधन नहीं किया।
कुल 17 आरोपी
ए राजा, कनिमोझी, पूर्व टेलीकॉम सचिव सिद्धार्थ बेहुरा, ए राजा के तत्कालीन निजी सचिव आरके चंदौलिया, स्वान टेलीकॉम के प्रमोटर शाहिद उस्मान बलवा, विनोद गोयनका, यूनिटेक के एमडी संजय चंद्रा, कुशेगांव फ्रूट्स एवं वेजिटेबल के आसिफ बलवा, राजीव अग्रवाल, शरद कुमार और सिनेयुग फिल्म के करीम मोरानी, रिलायंस के गौतम दोषी, सुरेंद्र पिपारा, हरि नायर, स्वान टेलीकॉम, यूनीटेक वायरलेस, रिलायंस टेलीकॉम।
सुनवाई
4 मार्च 2011 को सुनवाई के लिए विशेष अदालत का गठन। 2 अप्रैल 2011 को सीबीआई ने पहली चार्जशीट दाखिल की। 11 नवंबर 2011 को सुनवाई शुरू हुई। 80,000 पेज की चार्जशीट। 19 अप्रैल 2017 को सुनवाई पूरी। 21 दिसंबर 2017 को सभी आरोपी बरी।