तब से वर्ष 1764 तक यह इलाका वीरान रहा। अंग्रेजों ने इस इलाके में लोगों को बसाना शुरू किया था। अंग्रेजों ने कोलकाता की स्थापना के बाद 1757 में मुगल बादशाह आलमगीर (द्वितीय) से सुंदरवन को ईस्ट इंडिया कंपनी के नाम करा लिया था। 1764 में भारत के मानचित्र में सुंदरवन का ब्यौरा दर्ज किया गया। इस इलाके में पाए गए मौर्ययुगीन अवशेषों को लेकर शोध कर रहे ऑर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ईस्टर्न जोन) के क्षेत्रीय निदेशक फणीकांत मिश्र के अनुसार अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि यहां मौर्य युग में रह रही आबादी कैसे खत्म हुई। तब से 1764 तक के मिसिंग लिंक की तलाश चल रही है।
आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के अधिकारी मौर्ययुगीन सभ्यता का अवशेष ढूंढ निकालने का श्रेय एक मछुआरे को दे रहे हैं। विश्वजीत साहू नाम के ये सज्जन अपने पेशे के सिलसिले में सुंदरवन के छोटे-छोटे द्वीपों की खाक छानते रहे हैं। अक्सर उन्हें मछली के जाल के साथ या सुनसान द्वीपों पर टेराकोट के खिलौने, मालाएं, पेंडेंट, टेराकोटा की वस्तुएं मिलती रही हैं। शौकिया तौर पर वे इन वस्तुओं को संग्रह कर रखते रहे हैं। लगभग 15 हजार ऐसी वस्तुएं उनके संग्रह में हैं।
सुंदरवन के पाथ प्रतिमा में पुरातात्विक खनन चल रहा है। फणीकांत मिश्र के अनुसार, साहू द्वारा जमा की गई वस्तुओं से शोध में काफी मदद मिल रही है। खुदाई के स्थल से हड्डियों के अवशेष भी मिल रहे हैं, जिन्हें नृतत्वशास्त्रियों ने ईसा पूर्व 322-195 का बताया है।