भारतीय सेना और नौसेना में महिला अफसरों को स्थाई कमीशन देने की मांग को लेकर दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि सेना एक महीने के अंदर महिला अधिकारियों के लिए स्थाई कमिशन देने पर विचार करें और उचित प्रक्रिया का पालन करते हुए इन्हें स्थाई कमीशन दे। ये फैसला सुप्रीम कोर्ट ने गुरूवार को सुनाई है। कोर्ट ने इसको लेकर भेदभाव किए जाने की बात कही है और मनमाना बताया है।
कोर्ट ने परमानेंट कमीशन को लेकर महिला अफसरों के लिए बनाए गए मेडिकल फिटनेस मापदंडों को मनमाना और तर्कहीन बताया है। सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि हमारे समाज का ताना-बाना पुरुषों द्वारा पुरुषों के लिए ही बनाया गया है। चिंता जताते हुए कोर्ट ने कहा है कि यदि समय रहते इसे बदला नहीं गया, तो महिलाओं को पुरुषों के बराबर मौके नहीं मिल पाएंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि सर्विस का गोपनीय रिकॉर्ड मेंटेन करने की प्रक्रिया ज्यादा पारदर्शी हो। इसके मूल्यांकन की प्रक्रिया नए तरीके से तय किया जाए। किसी अधिकारी के साथ भेदभाव न हो। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सेना में कई महिला ऑफिसर्स को फिटनेस और अन्य योग्यताओं के साथ तय शर्तों को पूरा करने के बावजूद स्थाई कमीशन नहीं दिए जाने पर नाराजगी जताई है। सेना में महिला अधिकारियों की ये 17साल से कानूनी लड़ाई चल रही है। पिछले साल फरवरी में थलसेना में महिलाओं को बराबरी का हक मिलने का रास्ता साफ हुआ था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि उन सभी महिला अफसरों को तीन महीने के अंदर सेना में स्थाई कमीशन दिया जाए।
सेना और नेवी में महिलाएं पहले शॉर्ट सर्विस कमीशन के तहत काम करती थीं और वे स्थायी कमीशन के लिए आवेदन नहीं कर सकती थीं। स्थायी कमिशन का मतलब है कि कोई अधिकारी रिटायरमेंट की उम्र तक सेना में काम कर सकता है और इसके बाद वो पेंशन का भी हकदार होगा। स्थायी कमीशन मिलने से महिलाएं 20 साल तक काम कर सकेंगी। इसके तहत वे महिला अधिकारी भी स्थायी कमिशन में जा सकती हैं जो अभी शॉर्ट सर्विस कमिशन यानी 14 साल के लिए काम कर रही हैं।