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कमजोरों पर हमला राष्ट्रीय चरित्र के खिलाफ, सख्ती से निपटने की जरूरत: राष्ट्रपति

स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर रविवार को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने राष्ट्र को संबोधित किया। अपने संबोधन में न्याय, स्वतंत्रता, समता और भाईचारे के चार स्तंभों पर निर्मित लोकतंत्र को मजबूती से आगे बढ़ाने पर जोर देते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे राष्ट्रीय चरित्र के विरुद्ध कमजोर वर्गों पर हुए हमले पथभ्रष्टता हैं, जिससे सख्ती से निपटने की आवश्यकता है। राष्ट्रपति ने अपने संबोधन में हाल ही में पारित वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) विधेयक का भी जिक्र किया।
कमजोरों पर हमला राष्ट्रीय चरित्र के खिलाफ, सख्ती से निपटने की जरूरत: राष्ट्रपति

स्वतंत्रता दिवस की 69वीं वर्षगांठ की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में राष्ट्रपति ने कहा, 1947 में जब हमने स्वतंत्रता हासिल की, किसी को यह विश्वास नहीं था कि भारत में लोकतंत्र बना रहेगा। इसके विपरित सात दशकों के बाद सवा अरब भारतीयों ने अपनी संपूर्ण विविधता के साथ इन भविष्यवाणियों को गलत साबित कर दिया। देश के कुछ हिस्सों में दलितों पर हुए हमलों की पृष्ठभूमि में मुखर्जी ने कहा, पिछले चार वर्षों में, मैंने कुछ अशांत, विघटनकारी और असहिष्णु शक्तियों को सिर उठाते हुए देखा है। हमारे राष्ट्रीय चरित्र के विरुद्ध कमजोर वर्गों पर हुए हमले पथभ्रष्टता हैं, जिससे सख्ती से निपटने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा, हमारे समाज और शासन तंत्र की सामूहिक समझ ने मुझे यह विश्वास दिलाया है कि ऐसे तत्वों को निष्क्रिय कर दिया जाएगा और भारत की शानदार विकास गाथा बिना रुकावट के आगे बढ़ती रहेगी।

राष्ट्रपति ने कहा कि महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा और हिफाजत देश और समाज की खुशहाली सुनिश्चित करती है। यदि हम इस कर्तव्य में विफल रहते हैं तो हम एक सभ्य समाज नहीं कहला सकते। राष्ट्रपति ने वस्तु और सेवा कर के लिए संविधान संशोधन बिल के पारित होने को देश की लोकतांत्रिक परिपक्वता पर गौरव करने का विषय बताया और कहा कि लोकतंत्र का अर्थ सरकार चुनने के लिए समय-समय पर किए गए कार्य से कहीं अधिक स्वतंत्रता के विशाल वृक्ष को लोकतंत्र की संस्थाओं द्वारा निरंतर पोषित करना है। राष्ट्रपति ने कहा कि समूहों और व्यक्तियों द्वारा विभाजनकारी राजनीतिक इरादे वाले व्यवधान, रुकावट और मूर्खतापूर्ण प्रयास से संस्थागत उपहास और संवैधानिक विध्वंस के अलावा कुछ हासिल नहीं होता। पिछड़े लोगों को विकास की प्रक्रिया में शामिल करना होगा। आहत और भटके लोगों को मुख्यधारा में वापस लाना होगा।

संविधान का जिक्र करते हुए मुखर्जी ने कहा कि संविधान में राष्ट्र के प्रत्येक अंग का कर्तव्य और दायित्व स्पष्ट है। जहां तक राष्ट्र के प्राधिकरणों और संस्थानों की बात है, इसने मर्यादा की प्राचीन भारतीय परंपरा को स्थापित किया है। राष्ट्रपति ने कहा, हमारा संविधान न केवल एक राजनीतिक और विधिक दस्तावेज है बल्कि एक भावनात्मक, सांस्कृतिक और सामाजिक करार भी है। उन्होंने कहा कि पिछले चार वर्षों के दौरान, मैंने संतोषजनक ढंग से एक दल से दूसरे दल को, एक सरकार से दूसरी सरकार को और एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को सत्ता के शांतिपूर्ण हस्तांतरण के साथ एक स्थिर और प्रगतिशील लोकतंत्र की पूर्ण सक्रियता को देखा है। देश की आर्थिक उन्नति का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि भारत ने हाल ही में उल्लेखनीय प्रगति की है, पिछले दशक के दौरान प्रतिवर्ष अच्छी विकास दर हासिल की गई है। 

देश की विदेश नीति का जिक्र करते हुए मुखर्जी ने कहा कि हाल के समय में हमारी विदेश नीति में काफी सक्रियता दिखाई दी है। हमने अफ्रीका और एशिया प्रशांत के पारंपरिक साझेदारों के साथ अपने ऐतिहासिक संबंधों को पुन:सशक्त किया है। पड़ोस प्रथम नीति से पीछे नहीं हटने का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, हम सभी देशों, विशेषकर अपने निकटतम विस्तारित पड़ोस के साथ साझे मूल्यों और परस्पर लाभ पर आधारित नए रिश्ते स्थापित करने की प्रक्रिया में हैं। वैश्विक आतंकवाद का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, विश्व में उन आतंकवादी गतिविधियों में तेजी आई है जिनकी जड़ें धर्म के आधार पर लोगों को कट्टर बनाने में छिपी हुई हैं। उन्होंने कहा कि विश्व को बिना शर्त और एक स्वर में इनका मुकाबला करना होगा।

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