देश भर के शीर्ष न्यायाधीशों के सम्मेलन को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा कि जहां न्यायपालिका मजबूत हो रही है, यह जरूरी है कि वह परिपूर्ण बने ताकि लोगों की उम्मीदों पर खरी उतर सके। प्रधानमंत्री ने कहा, कानून और संविधान के आधार पर फैसला देना आसान है। धारणा के आधार पर फैसले देने के प्रति सचेत रहने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि धारणा अक्सर फाइव स्टार कार्यकर्ताओं द्वारा संचालित होती है।
न्यायपालिका को पवित्र माने जाने और भगवान के बाद दूसरा स्थान दिए जाने का जिक्र करते हुए उन्होंने सलाह दी कि यहां स्व मूल्यांकन का आंतरिक तंत्र होना चाहिए जो एक कठिन कार्य है। प्रधानमंत्री ने कहा, हम (राजनीतिक वर्ग) भाग्यशाली हैं कि लोग हम पर नजर रखते हैं, हमारा मूल्यांकन करते हैं। आप (न्यायपालिका) इतने भाग्यशाली नहीं हैं।
देश के 24 उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों और मुख्यमंत्रियों के संयुक्त सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, अगर आप किसी को मौत की सजा सुनाते हैं तब भी वह बाहर आकर कहता है कि उसे न्यायपालिका में विश्वास है... जहां आलोचना की काफी कम संभावना रहती है, वहां समय का तकाजा है कि स्व मूल्यांकन के लिए आंतरिक तंत्र बनाया जाए जहां सरकार और राजनीतिज्ञों की कोई भूमिका नहीं हो। मोदी ने कहा कि अगर ऐसा तंत्र सामने नहीं आता है और न्यायपालिका पर लेश मात्र भी भरोसा डगमगाता है, तो इससे राष्ट्र को नुकसान होगा। अगर राजनीतिक नेता या सरकार कोई गलती करती है तो न्यायपालिका की ओर से नुकसान की भरपाई का अवसर होता है। लेकिन अगर आप गलती करते हैं, तब सब कुछ समाप्त हो जाएगा।