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बाबा पहन रहे राजनीतिक चोला

चाहे वह 2014 के लोकसभा चुनावों में आर्ट ऑफ लिविंग से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि पाए रविशंकर के अनुयायियों का भाजपा से चुनाव लडऩा हो या फिर हरियाणा विधानसभा चुनावों में गुरमीत राम रहीम सिंह का खुलकर भाजपा के पक्ष में मतदान करने की अपील हो। योग गुरु रामदेव का पहले अन्ना आंदोलन और फिर भाजपा से रिश्ता जगजाहिर है। पिछले लोकसभा चुनावों से लेकर विधानसभा चुनावों तक में उनकी राजनीतिक सक्रियता ने उनके लाखों अनुयाइयों को प्रभावित किया।
बाबा पहन रहे राजनीतिक चोला

यूं तो पिछला साल हर साल की तरह बाबाओं के आस-पास छिड़े विवादों का साल रहा। लेकिन पिछले 12 सालों में बाबाओं का कद जीवन के हर क्षेत्र पर हावी होता दिखाई देता है। उनका बढ़ता सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक महत्व समाज में तेजी से बढ़ रही असुरक्षा का संकेत है। अभी तक वे राजनेताओं को संरक्षण देने और उनके संकट में फंसने पर संकट मोचक का काम जरूर करते रहे हैं, लेकिन एक दशक में वे सीधे-सीधे राजनीति में शिरकत करने में उतर रहे हैं। चाहे वह 2014 के लोकसभा चुनावों में आर्ट ऑफ लिविंग से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि पाए रविशंकर के अनुयायियों का भाजपा से चुनाव लडऩा हो या फिर हरियाणा विधानसभा चुनावों में गुरमीत राम रहीम सिंह का खुलकर भाजपा के पक्ष में मतदान करने की अपील हो। योग गुरु रामदेव का पहले अन्ना आंदोलन और फिर भाजपा से रिश्ता जगजाहिर है। पिछले लोकसभा चुनावों से लेकर विधानसभा चुनावों तक में उनकी राजनीतिक सक्रियता ने उनके लाखों अनुयाइयों को प्रभावित किया। यानी अब वे पीछे से राजनीतिक बैटिंग करने के बजाय सीधे-सीधे राजनीतिक अभिव्यक्ति कर रहे हैं। यहां हम बात कर रहे हैं पिछले 12 सालों में प्रभावशाली और विवादास्पद 12 बाबाओं और उनके प्रभाव की।
भारत में बाबाओं के पास हमेशा से राजनीतिक प्रश्रय रहा है। अलग-अलग नेताओं के अलग-अलग पसंदीदा संत रहे हैं और सत्ता की दिशा के अनुरूप अलग-अलग बाबा अलग-अलग समय में ताकतवर रहे हैं। इंदिरा गांधी के समय से यह भारतीय राजनीति का अभिन्न हिस्सा रहा है। बाबा अपने अनुयायियों के जरिये नेताओं के लिए वोटों का भी आधार रहे हैं। इस तरह इस प्रक्रिया में एक पारस्परिकता कायम रहती है- पहले नेताओं की मदद से बाबा की सत्ता कायम की जाती है और फिर उसकी बदौलत राजनीतिक सत्ता मजबूत बनाई जाती है। यह सबको पता है कि एक सोलह साल की बच्ची के साथ बलात्कार के मामले में गिरफ्तार होने से पहले आसाराम को गुजरात में एक तरह से राजगुरू की हैसियत हासिल थी। सैकड़ों आश्रम उन्होंने खड़े किए। कई सालों से कई मामले सामने आने के बावजूद उनका कुछ न बिगड़ा।

इसी तरह योग गुरु रामदेव का मोदी प्रेम भी किसी से छिपा न था। कांग्रेस से उनकी कभी बनी नहीं और इसलिए लोकसभा चुनावों से पहले उन्होंने खुलकर भाजपा को हर तरह से समर्थन दिया। मोदी सरकार बनने के बाद बदले में उन्हें जेड प्लस सुरक्षा मिल गई। यहां तक कि मोदी उन्हें बुलाकर उनसे राष्ट्रीय मसलों पर व्यक्तिगत चर्चा भी करते रहे। हालांकि शुरू में उन्होंने केंद्र की तत्कालीन कांग्रेस नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के खिलाफ अन्ना हजारे आंदोलन में रामदेव ने कदम रखे थे, लेकिन ज्यादा दिन तक वह टिक नहीं पाए। बाद में उन्होंने अपना अलग मोर्चा खोला और लोकसभा चुनावों के दौरान खुलकर भाजपा का साथ निभाया।
रामदेव की ही तरह आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्रीश्री रविशंकर ने भी लोकसभा चुनावों से पहले भाजपा-मोदी के पक्ष में जमकर हवा बनाई। भाजपा के टिकट पर कई लोग ऐसे भी चुनाव मैदान में उतरे जो सीधे-सीधे आर्ट ऑफ लिविंग से जुड़े थे। रविशंकर तमाम दलों के साथ अच्छे संबंध बनाने में बहुत माहिर रहे हैं। कांग्रेस के बुलावे पर एक समय वह महाराष्ट्र के किसानों से आत्महत्या न करने का आग्रह करने गए थे। बाद में छत्तीसगढ़ और झारखंड में नक्सली और सरकार के बीच मध्यस्था की भूमिका में भी उतरे थे। यानी धर्म-आस्था, जीवन का रहन-सहन के अलावा राजनीतिक क्षेत्र में श्री श्री रविशंकर सक्रिय रहे और अंतत: राजनीतिक मोर्चे पर भी उतर गए। उनके कई उम्मीदवारों का सांसद बनना-एक गौर करने वाला परिर्वतन है।
पंजाब व हरियाणा में दशकों से इस तरह के डेरे पनपते रहे हैं। वहां की सामाजिक व राजनीतिक जमीन इस तरह की धार्मिक फसल के लिए काफी उपजाऊ रही। ऐसे डेरों को स्थानीय स्तर पर राजनीतिक फायदों के लिए नेताओं का प्रश्रय मिलता रहा। हरियाणा के विधानसभा चुनाव से पहले डेरा सच्चा सौदा के गुरमीत राम रहीम सिंह द्वारा अपने समर्थकों से भाजपा को वोट देने की अपील जारी करना अनायास ही नहीं था। राम रहीम विवादास्पद रहे हैं और कई मामलों में फंसे हैं। पंजाब में अकाली दल उन्हें पसंद नहीं करता रहा है लेकिन हरियाणा की कहानी अलग है। लेकिन चुनावों में खुलकर भाजपा के लिए वोट देने की अपील करके, उन्होंने नई भूमिका की शुरुआत की।
लगभग एक साल पहले गुजर चुके आशुतोष महाराज का भी कुछ ऐसा ही हाल था। जब पहली बार उनके गुजरने की खबर जनवरी में आई तो पंजाब के कई वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि दे डाली। लेकिन जब उनके भक्तों ने दावा करना शुरू कर दिया कि वह गुजरे नहीं बस ध्यान में लीन हैं तो अमरिंदर सिंह व मनीष तिवारी सरीखे नेताओं को अपनी संवेदना वापस लेनी पड़ी। उनके समाधि से उठ खड़े होने की आस में उनका शरीर अब भी उनके आश्रम में फ्र ीजर में रखा है जबकि हाई कोर्ट तक उसकी अंत्येष्टि का आदेश दे चुका है। बताया जाता है कि उनके पास भी लगभग डेढ़ हजार करोड़ की संपत्ति थी और उसके उत्तराधिकार का विवाद ही उन्हें 'मरनेÓ नहीं दे रहा। उनका राजनीतिक प्रभाव इतना तगड़ा है कि कोई राजनीतिक दल उनके मरने के बाद भी उनकी अंत्येष्टि की बात नहीं कर रहा। हाल में हुए चुनावों में उनके मठ की भूमिका चर्चा में रही थी।
इनके अलावा कई बाबाओं का विस्तार 12 साल में हम देख चुके हैं। तमाम काली करतूतों के बावजूद बाबाओं की सत्ता का न सिर्फ कायम रहना बल्कि उनकी शक्ति में इजाफा होना भी एक नई परिघटना है। आसाराम  भारत के सबसे प्रभावशाली और सबसे संपत्तिवान बाबाओं में से एक माने जाते हैं। आसाराम बलात्कार के आरोप में पिछले एक साल से भी ज्यादा समय से जेल में बंद हैं और जमानत भी नहीं करवा पा रहे हैं। उनके और उनके बेटे नारायण साईं की करतूतों के कई किस्से एक के बाद एक सामने आते जा रहे हैं।
ऐसे ही विवादित रही मौत आशुतोष महाराज की। वह गुजर गए लेकिन कई महीनों से उनके भक्तउन्हें समाधिस्थ घोषित करके उनके शरीर की अंत्येष्टि नहीं करने दे रहे। हाई कोर्ट का आदेश तक काम नहीं कर पा रहा और मामला लटका पड़ा है। अपने बाबाओं को लेकर भक्तों की अतार्किकता का यह बड़ा उदाहरण है। हरियाणा के रामपाल का मामला इस बात की नजीर है कि भारत में कथित बाबा कैसे लोगों की भावनाओं को भुनाते रहे, इसका जोरदार उदाहरण। हरियाणा के बरवाला में इन्होंने अपना किलेनुमा आश्रम बनाया और आपराधिक मामलों में अपनी कोर्ट से आए गिरफ्तारी के आदेश से बचने के लिए अपने भक्तों को ढाल बनाकर बाकायदा पुलिस से जंग मोल ली। फिलहाल जेल में। भारत के सबसे लोकप्रिय गुरुओं में से रहे हैं सत्य साईं बाबा, जिनके सवा सौ से ज्यादा देशों में लाखों श्रद्धालु थे। लेकिन 2011 में गुजरने से पहले और उसके बाद भी, वह खुद और उनका आश्रम तमाम विवादों के घेरे में रहे। आश्रम की संपत्ति से लेकर, फर्जी चमत्कारों और यौनाचार के आरोप तक उन पर अंतरराष्टï्रीय मीडिया में लगेे। ऐसे ही विवादित बाबा रहे नित्यानंद। ध्यान और साधना के कार्यक्रमों से लोकप्रिय हुए इन स्वामी के भक्त यूं तो दुनिया-भर में कई सालों से रहे लेकिन इनकी जिस 'साधनाÓ ने उन्हें दुनियाभर में अचानक चर्चित बना दिया वह उनके आश्रम के एक बंद कमरे में दक्षिण भारत की एक अभिनेत्री के साथ हो रही थी, जिसे गुप्त रूप से रिकॉर्ड करके कुछ चैनलों पर दिखा दिया गया। उसके बाद तो मानो विवादों का पिटारा सा खुल गया। निर्मल बाबा,जयेंद्र सरस्वती, राधे मां, मूर्ति द्विवेदी जैसे तमाम विवादित बाबाओं ने नए-नए प्रतीमान बनाए।

धर्म का कारोबार

    तीस चैनलों पर अपनी तीसरी आंख दिखाकर लोकप्रिय हुए निर्मल बाबा अपने दरबार के जरिये तीन सालों में 200 करोड़ रुपये का टर्नओवर अर्जित कर चुके हैं
    मुंबई में ग्लैमर व फिल्म इंडस्ट्री पर कृपा रखने वाले छुटभैये ज्योतिषी, अंकशास्त्री, वास्तु विशेषज्ञ ही एक सेशन या एक घंटे का साढ़े तीन हजार से लेकर दस हजार रुपये तक ले लेते हैं। बड़ों का तो क्या कहना।
    एक अनुमान के अनुसार भारत में ज्योतिष व अंकशास्त्र आदि का सालाना कारोबार 500 से 600 करोड़ रुपये का है।
    वास्तु व फेंग शुई आदि से जुड़ी चीजों का कारोबार भी अलग और लगभग इतना ही है।
    यंत्रों व ऐसी ही विश्वास से जुड़ी वस्तुओं की कीमतों में दुकान से ज्योतिषी के हाथ में पहुंचने से ज्योतिषी से भक्त के हाथ में पहुंचने तक दो सै से ढाई सौ गुना तक इजाफा हो जाता है।
    2009 में 12 शहरों में एक प्रतिष्ठित एजेंसी द्वारा किए गए सर्वे के अनुसार सनातनी हिंदुओं में बाकी देवी-देवताओं की तुलना में शनि की तरफ 90 फीसदी झुकाव दिखाई दिया। अकेले मुंबई में शनि के मंदिरों की संख्या एक दशक में 7 से बढक़र 226 हो गई।
    हर साल अक्षय तृतीया के 'पावनÓ दिन आम तौर पर सोने की कीमतों में 12  से 15 फीसदी का इजाफा हो जाता है। उस दिन लगभग 25 टन सोना भारत में खरीदा-बेचा जाता है।
    अमरनाथ यात्रा के लिए पिछले साल 3.72 लाख यात्री पहुंचे (आधिकारिक आकड़ों के अनुसार)। 2011 में अब तक के सर्वाधिक 6.34 लाख यात्री यहां पहुंचे थे।
बोल बने कुबोल

राजनेताओं के बोल किस तरह से भारतीय संस्कृति की मूल अवधारणा का ह्रास करने वाले हैं, यह भी एक नई परिघटना है।
केंद्रीय मंत्री निरंजना ज्योति ने दिल्ली में एक सभा को संबोधित करते हुए कहा कि उन्हें हरामजादों या रामजादों के बीच चुनाव करना है। -इसके बाद हंगामा तो मचा लेकिन संदेश साफ था और माफी मांगकर काम चलाने की कोशिश की गई। नफरत से भरे इन शब्दों की अपनी एक राजनीतिक जमीन होना एक बड़ा बदलाव है। सांसद साक्षी महाराज ने महात्मा गांधी के हत्यारे नाथुराम गोडसे को देशभक्त कहकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और हिंदू महासभा के सालों पुराने एजेंडे को फिर से सतह पर ला दिया। अब देश भर में गोडसे की मूर्ति लगाने का अभियान शुरू हो रहा है।
प्रगतिगामी सोच का बोलबाला राजनीतिक हलकों में खूब है। केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने कहा कि 2013 में रुद्रप्रयाग और उत्तरकाशी में जो प्रलय आया, उसकी वजह यह है कि देवभूमि पर शौचालय करने लगे। बिहार में भाजपा के नेता गिरिराज ने कहा, जो लोग नरेंद्र मोदी का विरोध कर रहे हैं, उन्हें पाकिस्तान भेज देना चाहिए।

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