वेतनमानों और शिक्षकों की योग्यता संबंधी मानकों का पालन न करने को भी नियमों का उल्लंघन माना जाएगा। ऐसे संस्थानों में प्रवेश प्रक्रिया निलंबित कर दी जाएगी या सीटों की संख्या में कटौती कर दी जाएगी। हालिया बैठक में एआईसीटीई ने तकनीकी संस्थानों के अनुदानों की मंजूरी के नए नियमों को स्वीकार किया था।
इस समय देश में एआईसीटीई से पंजीकृत इंजीनियरिंग संस्थानों की संख्या तीन हजार से ज्यादा है। इनमें से बहुत से संस्थान बुनियादी सुविधाओं, लैब और शिक्षकों के अभाव में चल रहे हैं। देश में बेरोजगार इंजीनियरों की बढ़ती तादाद के पीछे ऐसे संस्थानों का भी बड़ा हाथ। खुद एआईसीटीई का मानना है कि तकनीकी संस्थानों से हर साल निकलने वाले 8 लाख इंजीनियरों में से 60 फीसदी से अधिक बेरोजगार रह जाते हैं। पिछले साल ‘एस्पायरिंग माइंड्स’ नामक कंपनी के सर्वे में सामने आया था कि देश में तैयार होने वाले सिर्फ 7 फीसदी इंजीनियरिंग स्नातक ही इंजीनियर के तौर पर नौकरी पाने के काबिल हैं।
एआईसीटीई भी कम दोषी नहीं
नियम-कायदों को ताक पर रखने वाले तकनीकी संस्थानों के खिलाफ अब एआईसीटीई ने सख्ती से निपटने का फैसला किया है। हालांकि, नियामक होने के नाते देश में तकनीकी शिक्षा की दुर्दशा के लिए खुद एआईसीटीई भी कम दोष नहीं है। मिली जानकारी के अनुसार, अब एआईसीटीई ऐसे संस्थानों के खिलाफ भी कार्रवाई की तैयारी कर रहा है, जो शिक्षकों और अन्य कर्मियों को नियमित रूप से पूरा वेतन नहीं दे रहे हैं या फिर शिक्षकों की योग्यता के मामले में नियमों की अनदेखी कर रहे हैं।