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पक्षियों के अवैध व्यापार का मेला

देशभर में पक्षियों के अवैध व्यापार का नेटवर्क बहुत मजबूत है। इस नेटवर्क की ताकत इस दफा सोनपुर के मेले में देखने को मिली।
पक्षियों के अवैध व्यापार का मेला

बिहार में लगने वाला सोनपुर का मेला एशिया का सबसे बड़ा मेला है। इस बहाने एक दफा फिर साबित हो गया कि देश में लुप्त हो रहे पक्षियों की प्रजाति का व्यापार धड़ल्ले से जारी है। इसका गढ़ बिहार और खासकर पटना है। प्रशासन और सरकार की नाक के नीचे इस गोरखधंधे में शामिल लोग बेखौफ इस काम को अंजाम दे रहे हैं। हद तो तब हो गई जब सोनपुर में भारत सरकार की सलाहकार गौरी मुलेखी और उनके सहयोगियों पर उस समय हमला तक कर दिया जब उन्होंने प्रतिबंधित पक्षियों की खुलेआम बिक्री पर एतराज करते हुए उसे बंद करवाना चाहा। पक्षी-व्यापारियों ने उनके साथ धक्का-मुक्की शुरू कर दी।

देश में पक्षियों का सबसे बड़ा अवैध बाजार पटना में है। बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के निदेशक असद रहमानी बताते हैं, ‘भारतीय पक्षियों की 1300 प्रजातियों का व्यापार प्रतिबंधित है लेकिन एज्जॉटिक पक्षियों (विदेशी) के व्यापार पर पाबंदी नहीं है लेकिन इसकी आड़ में हो यह रहा है कि महंगे और खत्म होने के कगार पर विदेशी पक्षियों की तस्करी भारत के जरिये हो रही है चूंकि विदेशी पक्षियों के व्यापार पर पाबंदी नहीं है। इसलिए उनका यहां खुलेआम व्यापार होता है। जैसे अफ्रीकी तोता कई लाख में बिकता है।’ रहमानी जी के अनुसार सरकार को पक्षियों पर किताबें और समय-समय पर उनकी तस्वीरें जारी करनी चाहिए ताकि पुलिस और दूसरे लोगों को पता रहे कि पक्षियों का अवैध व्यापार करने वाले किस पक्षी को बेच रहे हैं। रहमानी साहब के अनुसार,भारतीय पक्षियों के व्यापार पर पूरी तरह पाबंदी है लेकिन तस्कर भारतीय पक्षियों को विदेशी बताकर सरेआम बेच देते हैं। पटना के पास लगभग सौ परिवार हैं जो इस व्यापार में संलिप्त हैं। पक्षियों पर काम करने वाले अबरार अहमद का कहना है कि वह बीते 20 साल से सोनपुर के मेले का सर्वे कर रहे हैं। वहां के चिडिय़ा बाजार में हर तरह का पक्षी बिकता है। उनकी खरीद और बिक्री पर पक्षी माफिया को 20 फीसदी कमीशन मिलता है। यह कमीशन इस अवैध व्यापार करने वालों को सुरक्षा देने की एवज में होता है। दूसरा सोनपुर में देखने में आया है कि हाथियों का भी अवैध व्यापार होता है। दिखाते हैं कि हाथी दान में दिया गया है लेकिन वह बेचा जाता है।
इसी मेले में वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया (डब्ल्यूटीआई) की टीम भी गई थी। टीम के दक्षिणी क्षेत्रीय अध्यक्ष जोज लुई बताते हैं हमने सोनपुर के मेले में देखा कि ‘मोर के बच्चे, मुनिया, मैना, हिलनैना, पहाड़ी तोते और बाज बिक रहे थे। सबसे ज्यादा बिक्री बाज की हो रही थी। हालांकि लोग पक्षी खाने के लिए नहीं बल्कि बेचने के लिए ले जा रहे थे। मारकर खाने से उन्हें ज्यादा फायदा नहीं होता।’ लुई के अनुसार मेले में 5,000 रुपये तक बाज मिल रहा था। यही नहीं सोनपुर के मेले के अलावा जंगली जानवरों का व्यापार हम सिर्फ शेर या बाघ की खाल की तस्करी तक सीमित समझते हैं। लेकिन भारत में हर पशु-पक्षी का अवैध व्यापार होता है। परंपरागत तौर पर तो शेर और बाघ की खाल और इनकी हड्डियां, भालू की चर्बी और कस्तूरी हिरण का व्यापार होता था लेकिन आजकल सबसे अधिक पैंगुलिन का व्यापार हो रहा है। लुई के अनुसार पिछले चार वर्षों से यह देखने में आया है कि पैंगुलिन की तस्करी बहुत तेजी से बढ़ी है। इसकी खाल की मांग है। इसे नेपाल के रास्ते चीन ले जाया जाता है। इसके विभिन्न अंगों का प्रयोग दवाओं में भी होता है। मूर्तियां बनाने के लिए हाथी दांत का व्यापार जारी है। हालांकि देश में कुछ समुदायों में हाथी दांत का चूड़ा पहना जाता था लेकिन अब यह इतना महंगा हो गया है कि पहुंच से बाहर है। गेंडे के सींग चीन में दवाओं में प्रयोग होते हैं। सोनपुर मेले में मिलने वाले दुर्लभ प्रजाति के पक्षी विदेशों तक जाते हैं।
परंपरागत तौर पर सोनपुर का मेला गाय, भैंस घोड़ा आदि जैसे पशु खरीदने और बेचने के लिए आयोजित किया जाता है।

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सरेआम बिकते पक्षी
मुकेश कुमार
देश के सबसे बड़े पशु मेले के रूप में मशहूर सोनपुर का मेला अब वैसा नहीं रहा जैसा पहले हुआ करता था। सोनपुर के मेले में लोग दूर-दूर से पशु खरीदने और बेचने आया करते थे लेकिन मैंने मेले में देखा कि यहां लोग पक्षियों की उन प्रजातियों का व्यापार कर रहे हैं जो खत्म होने के कगार पर हैं। खुले आम मोतिहारी-मुजफ्फरपुर मुख्य मार्ग पर प्रवासी पक्षी बिक रहे हैं। मैं सन्न रह गया। सुदूर प्रदेशों से आने वाले जिन प्रवासी पक्षियों को हम अनुकूल माहौल देने की बजाय बेच रहे हैं और मारकर खा रहे हैं। इन्हें बेचने और खरीदने वालों को राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय नियम-कानूनों से कोई लेना-देना नहीं। सोनपुर के मेले में बाकायदा केंद्र सरकार और राज्य सरकार की भागीदारी होती है। दोनों ही सरकारें इस गोरखधंधे से आंखें मूंदे हुए हैं। मैंने इस खरीद-फरोख्त का पता लगाने की कोशिश की। प्रवासी पक्षियों से जुड़ी जानकारियां इकट्ठी करनी शुरू की। मैंने बाकायदा पक्षियों के प्रवास स्थल पर घुमना शुरू किया। बिहार में कुशेश्वर स्थान महादेव मंदिर दरभंगा, समस्तीपुर और मुजफ्फरपुर में खासा मशहूर है लेकिन इसके साथ ही यह प्रवासी पक्षियों के दर्शन के लिए भी जाना जाता है। मुझे जब इसकी जानकारी मिली तो मैं वहां के लिए चल दिया। अब इस जगह को इन पक्षियों के भक्षण के लिए भी जाना जाता है। इससे भी बदतर स्थिति बेगुसराय स्थित कावर झील की है। यह झील एशिया में मीठे पानी की सबसे बड़ी आक्सबो झील है। यहां प्रवासी पक्षियों को देखने के लिए स्थानीय लोगों के अलावा बाहर से भी लोग आते हैं। वे इनका शिकार भी करते हैं। पटना से पूर्णिया राष्ट्रीय मार्ग पर जाते हुए बेगुसराय से आगे, खगडिय़ा के आस-पास और कटिहार से पहले तक कई ढाबों और सडक़ के किनारे डडों पर प्रवासी पक्षियों के विभिन्न प्रकार के पक्षी बेचते हुए लोग मिल जाएंगे। मांगे जाने पर इन ढाबों पर पक्षियों का लजीज भोजन मिल जाता है। यह प्रक्रिया जाड़े के तीन चार महीनें में जारी रहती है।
जय प्रकाश नारायण पक्षी विहार (बलिया,उत्तर प्रदेश) जो सुरहाताल के नाम से जाना जाता है, वहां की स्थिति भी कुछ अलग नहीं है। क्या प्रवासी पक्षियों की दुर्दशा केवल बिहार में ऐसी है? लेकिन उत्तर प्रदेश में वहां भी स्थानीय लोग इन्हें पकड़ते एवं शिकार करते हुए देखे जाते हैं। पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर जी ने इस अभयारण्य को देश का दूसरा भरतपुर पक्षी अभयारण्य बनाने की पूरी कोशिश की लेकिन कुछ सामयिक कारणों से उनका प्रयास विफल रहा। उत्तर प्रदेश के अन्य पक्षी प्रवासों में भी प्रवासी पक्षी सुरक्षित नहीं हैं। यही स्थिति एशिया में सबसे बड़ी खारे पानी की झील चिल्का झील (ओडिशा) में आने वाले पक्षियों की है। प्रश्न यह है कि प्रवासी पक्षियों का शिकार प्रतिबंधित होने के बावजूद क्यों हो रहा है। प्रवासी पक्षियों के संख्या लगातार क्यों घट रही है। संबंधित कानून कठोरता से पालन नहीं किया जा रहा है। प्रवासी पक्षियों बचाव एवं विस्तार के प्रति सरकार में संकल्प एवं प्रतिबद्धता की कमी है।

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