एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2019 के लोकसभा चुनाव में तकरीबन 43 फिसदी सांसद आपराधिक छवि के हैं। और इस बात की मांग वर्षों से उठते रहे हैं कि दागी नेताओं की राजनीति में एंट्री पर बैन होने चाहिए। अब केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में दागी या दोषी ठहराए जा चुके नेताओं के संसद या विधानसभा चुनाव लड़ने, राजनीतिक पार्टी में बने रहने पर आजीवन प्रतिबंध लगाए जाने की मांग का विरोध किया है।
केंद्र ने कोर्ट में दाखिल हलफनामे में कहा है कि किसी अपराध में दोषी ठहराए जाने पर अफसरशाहों पर प्रतिबंध लगाए जाने की तुलना सांसदों और विधायकों के प्रतिबंध से नहीं की जा सकती है। इसकी दलील में केंद्र ने कहा है कि सांसद/विधायक सेवा नियमों के नहीं, बल्कि पद की शपथ के अधीन होता हैं। लॉ मिनिस्टरी की ओर से दाखिल हलफनामे के मुताबिक, निर्वाचित नेताओं के संबंध में कोई विशेष नियम नहीं हैं।
हलफनामे में केंद्र ने कहा है कि सांसदों/विधायकों का आचरण उनके चरित्र और विवेक पर निर्भर होता है। सामान्यत: उनसे देशहित में काम करने की अपेक्षा की जाती है और वे कानून से ऊपर नहीं हैं। वहीं, नौकरशाहों की सेवा शर्तो का संबंध संबंधित सेवा कानूनों के अधीन होता हैं।