केंद्र की मोदी सरकार का बहुचर्चित नागरिकता संशोधन बिल सोमवार को यानी 9 दिसंबर को लोकसभा में पेश किया जाएगा वहीं, मोदी सरकार के द्वारा लाए जा रहे नागरिकता संशोधन बिल पर विपक्ष एकजुट हो गया है। कांग्रेस, टीएमसी समेत कई विपक्षी पार्टियां संसद और सड़क पर इसका विरोध कर रही हैं। गुरुवार को नागरिकता बिल के मुद्दे पर विपक्षी पार्टियों ने बैठक की और आगे की रणनीति पर चर्चा की। टीएमसी ने ट्राइबल-विरोधी तो बसपा ने इसे असंवैधानिक करार दिया है।
पीएम नरेंद्र मोदी की अगुआई में बुधवार को हुई केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में नागरिकता संशोधन बिल पर मुहर लग गई है। कैबिनेट की मंजूरी के बाद आज गृह मंत्री अमित शाह इस बिल को सदन में पेश करेंगे। इस विधेयक से मुस्लिम आबादी बहुल पड़ोसी देश अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के गैर मुस्लिमों (हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी व ईसाई) को भारतीय नागरिकता देने में आसानी होगी। मोदी सरकार ने पिछले कार्यकाल (जनवरी में) में इसे लोकसभा में पास करा लिया था। लेकिन विपक्षी दलों के विरोध के कारण राज्यसभा में बिल अटक गया था।
हुए थे विरोध प्रदर्शन
दरअसल, विपक्षी दल धार्मिक आधार पर भेदभाव के रूप में नागरिकता विधेयक की आलोचना कर चुके हैं। बिल को लेकर असम और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों ने आपत्ति जताई थी और कई शहरों में विरोध प्रदर्शन हुए थे। इस बिल को लेकर कई तरह की आशंकाएं और कई तरह के सवाल उठने लगे हैं। सवाल उठाए जा रहे हैं कि क्या नागरिकता संशोधन बिल से भारत हिन्दू राष्ट्र बनने की ओर बढ़ रहा है? क्या नागरिकता संशोधन बिल देश में मुसलमानों को दोयम दर्जे का नागरिक बना देगा? ऐसे सवाल एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने उठाए हैं।
इस बिल को लेकर क्या कहा ओवैसी ने
ओवैसी ने कहा है, ‘ये बिल संविधान के आर्टिकल 14 और 21 के खिलाफ है। नागरिकता को लेकर एक देश में दो कानून कैसे हो सकते हैं। सरकार धर्म की बुनियाद पर ये कानून बना रही है। सरकार देश को बांटने की कोशिश कर रही है। सरकार फिर से टू नेशन थ्योरी को बढ़ावा दे रही है। सरकार चाह रही है कि मुसलमान देश में दोयम दर्जे का नागरिक बन जाए।’
क्या बोले शशि थरूर
इस बिल को लेकर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने संसद परिसर में कहा, ‘मुझे लगता है कि विधेयक असंवैधानिक है, क्योंकि विधेयक में भारत के मूलभूत विचार का उल्लंघन किया गया है। वो लोग जो यह मानते हैं कि धर्म के आधार पर राष्ट्र का निर्धारण होना चाहिए। इसी विचार के आधार पर पाकिस्तान का गठन हुआ। हमने सदैव यह तर्क दिया है कि राष्ट्र का हमारा वह विचार है जो महात्मा गांधी, नेहरूजी, मौलाना आजाद, डा. आंबेडकर ने कहा कि धर्म से राष्ट्र का निर्धारण नहीं हो सकता।’
जानें विपक्ष क्यों कर रहा है इस बिल का विरोध
विपक्ष का दावा है कि धर्म के आधार पर नागरिकता नहीं दी जा सकती है क्योंकि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है। ये विधेयक 19 जुलाई 2016 को पहली बार लोकसभा में पेश किया गया। इसके बाद संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) ने लोकसभा में अपनी रिपोर्ट पेश की थी। जेपीसी रिपोर्ट में विपक्षी सदस्यों ने धार्मिक आधार पर नागरिकता देने का विरोध किया था और कहा था कि यह संविधान के खिलाफ है। इस बिल में संशोधन का विरोध करने वाले लोगों का कहना है कि अगर बिल लोकसभा से पास हो गया तो ये 1985 के 'असम समझौते' को अमान्य कर देगा।
क्या है नागरिकता संशोधन बिल
भारत देश का नागरिक कौन है, इसकी परिभाषा के लिए साल 1955 में एक कानून बनाया गया जिसे 'नागरिकता अधिनियम 1955' नाम दिया गया। मोदी सरकार ने इसी कानून में संशोधन किया है जिसे 'नागरिकता संशोधन बिल 2019' नाम दिया गया है।
नागरिकता संशोधन बिल में अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू, सिख, ईसाई, पारसी, जैन और बौद्ध यानी कुल 6 समुदायों के लोगों को नागरिकता दी जाएगी। इसमें मुसलमानों का जिक्र नहीं है। नागरिकता के लिए पिछले 11 सालों से भारत में रहना अनिवार्य है, लेकिन इन 6 समुदाय के लोगों को 5 साल रहने पर ही नागरिकता मिल जाएगी। इसके अलावा इन तीन देशों के 6 समुदायों के जो लोग 31 दिसंबर 2014 को या उससे पहले भारत आए हों, उन्हें अवैध प्रवासी नहीं माना जाएगा।
क्यों एनआरसी से जोड़ा जा रहा है नागरिकता संशोधन बिल
बता दें कि एनआरसी यानी नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स अभी सिर्फ असम में लागू हुआ है, लेकिन सरकार इसे पूरे देश में लागू करना चाहती है। असम में 19 लाख लोगों का नाम एनआरसी की फाइनल लिस्ट में नहीं आया। इसमें मुसलमानों के अलावा दूसरे समुदाय के लोग भी थे, तो अब सवाल ये है कि क्या एनआरसी में छूटे दूसरे धर्मों के लोगों के लिए ही सरकार नागरिकता संशोधन विधेयक ला रही है?