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कॉमिक्स पुराण: पौराणिक पात्रों ने एनिमेशन इंडस्ट्री में फूंकी जान

 “पौराणिक पात्रों ने एनिमेशन इंडस्ट्री में जान फूंक दी है, विदेशी कंपनियां देसी कंटेट बनाने पर हुई...
कॉमिक्स पुराण: पौराणिक पात्रों ने एनिमेशन इंडस्ट्री में फूंकी जान

 “पौराणिक पात्रों ने एनिमेशन इंडस्ट्री में जान फूंक दी है, विदेशी कंपनियां देसी कंटेट बनाने पर हुई मजबूर”

मनुष्य का दिमाग जो कुछ भी सोच सकता है उसको मूर्त रूप देने की क्षमता एनिमेशन विधा में होती है। वॉल्ट डिजनी का यह प्रसिद्ध कथन आज भारतीय पौराणिक पात्रों पर हूबहू लागू हो रहा है। हनुमान, बाल गणेश, कृष्ण, भीम, राम, घटोत्कच, अर्जुन जैसे पात्र आज भारतीय एनिमेशन इंडस्ट्री के असली हीरो बन गए हैं। यही नहीं, इन पात्रों ने पूरी दुनिया में प्रसिद्ध चरित्रों को भी टक्कर दे दी है। भारतीय दर्शकों के पास अब उनका अपना सुपरमैन हनुमान है। इसी तरह श्रीकृष्ण स्पाइडरमैन से कहीं ज्यादा लोगों को लुभा रहे हैं। बदलती पसंद का ही आलम है कि न केवल देसी कंटेट की मांग बढ़ रही है, बल्कि उसको पूरा करने के लिए 300 एनिमेशन, 40 वीएफएक्स और 80 गेम डेवलपमेंट स्टूडियो खुल गए हैं, जिनमें करीब 15,000 प्रोफेशनल काम कर रहे हैं। अनुमान यह है कि 10 हजार करोड़ रुपये की एनिमेशन और वीएफएक्स इंडस्ट्री अगले पांच साल में 20 हजार करोड़ रुपये का आंकड़ा छू लेगी।

इंडस्ट्री से जुड़े और कंटेट राइटर अभिषेक शुक्ला कहते हैं, “पिछले एक दशक में भारतीय एनिमेशन इंडस्ट्री में बहुत कुछ बदल गया है। पहले कंटेट का मतलब आउटसोर्सिंग होता था। यानी सुपरमैन, स्पाइडर मैन जैसे आयातित पात्र ही हम भारतीय दर्शकों को परोसते थे। इसकी वजह से उनकी लोकप्रियता एक दायरे तक सीमित थी। लेकिन जब से इंडस्ट्री ने भारतीय पात्रों को कंटेट का हिस्सा बनाया है, सब कुछ बदल गया है।”

मांग पूरा करना मुश्किल

अभिषेक के अनुसार मांग इतनी है कि उसे पूरा करना मुश्किल हो रहा है। भारतीय संस्कृति के सभी लोकप्रिय पात्रों को लोग देखना चाहते हैं। ये पात्र लोगों के हीरो हैं। जिनकी कहानियां लोगों ने सुनी है या पढ़ी है, उसे अब वे जीवंत रूप में देखना चाहते हैं। एनिमेशन इसका अहम माध्यम बन गया है। क्योंकि यहां पर प्रयोग करने की छूट कहीं ज्यादा है। इसी वजह से पौराणिक और ऐतिहासिक पात्र काफी तेजी से लोकप्रिय हुए हैं, जिसको भुनाने के लिए भारतीय कंपनियों के साथ-साथ विदेशी कंपनियां भी भारत में तेजी से पैर पसार रही हैं।

विदेशी भी लगा रहे दांव

केपीएमजी की 2019 में आई रिपोर्ट के अनुसार एनिमेशन इंडस्ट्री को इस समय सभी प्लेटफॉर्म से मांग मिल रही है। टेलीविजन, डिजिटल और फिल्म इंडस्ट्री तीनों से ग्रोथ आ रही है। विदेशी प्रोडक्शन हाउस भारत में देसी कंटेट के लिए दांव लगा रहे हैं। ऐसा करने की बड़ी वजह बड़ा बाजार और सस्ती प्रोडक्शन लागत है। रिपोर्ट के अनुसार भारत में एनिमेशन डेवलपमेंट उत्तरी अमेरिका, फिलिपींस और कोरिया से करीब एक तिहाई सस्ता है। इस वजह से भारतीय स्टूडियो इस समय सोनी, डिज्नी, बीबीसी, 20 सेंचुरी फॉक्स, वार्नर ब्रदर्स, ड्रीम वर्क्स, वॉयकॉम, टर्नर जैसे विदेशी प्रोड्यूसर के साथ काम रहे हैं। एनिमेटेड कंटेट के सबसे बड़े दर्शक बच्चे हैं। इनमें भी 61 फीसदी बच्चे शहरों के और 39 फीसदी ग्रामीण इलाकों के हैं। बढ़ती डिमांड का ही परिणाम है कि आज भारत में बच्चों के 44 चैनल प्रसारित हो रहे हैं।

ऐसा नहीं कि केवल टीवी पर ही पौराणिक कंटेट की मांग है, छोटा कृष्ण और घटोत्कच-मास्टर ऑफ मैजिक जैसी फिल्में भी अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कर चुकी हैं। थ्री-डी फिल्म छोटा कृष्ण को एशियन टेलीविजन अवार्ड्स से नवाजा गया था। इसी तरह घटोत्कच को 2008 में कान फिल्म महोत्सव में भी प्रदर्शित किया गया। इसी तरह हनुमान और द रिटर्न ऑफ हनुमान ने भारतीय सिनेमाघरों में खूब धूम मचाई।

ज्यादा एपिसोड

पौराणिक पात्रों की लोकप्रियता की एक बड़ी वजह भारतीयों की सोच भी है। इसे गाजियाबाद के रहने वाले नीरज पांडे की बातों से समझा जा सकता है। वह कहते हैं, “मेरी दो बेटियां हैं, उन्हें अपनी संस्कृति को बताने का सबसे अच्छा और आसान तरीका ये कार्यक्रम और फिल्में हैं। हम लोग जब छोटे थे तो दादा-दादी से कहानियां सुनते थे या फिर किताबों में पढ़ते थे। आज संयुक्त परिवार नहीं रह गए हैं, किताबें पढ़ने का भी दौर नहीं है, ऐसे में अपनी संस्कृति और पूर्वजों को बच्चों तक पहुंचाने का यह आसान रास्ता है। अब तो मोबाइल पर भी कंटेट मौजूद हैं, जिससे यह आसान हो गया है।”

देसी कंटेट बच्चों को सबसे ज्यादा लुभा रहे हैं

दर्शकों की बढ़ती रुचि को देखते हुए प्रोड्यूसरों ने कार्यक्रम बनाने का तरीका भी बदल दिया है। केपीएमजी की रिपोर्ट के अनुसार पहले प्रोड्यूसर किसी पात्र या कहानी पर कोई कार्यक्रम बनाते थे तो उसे वह ज्यादा से ज्यादा 12-13 एपिसोड का बनाते थे। लोकप्रियता ज्यादा हुई तो 25-26 एपिसोड तक बन जाते थे, पर अब यह ट्रेंड बदल गया है। अब कार्यक्रम 100-200 एपिसोड के बनाए जा रहे हैं। जैसे, वॉयकाम-18 अपने तीन चैनलों के जरिए बच्चों के लिए 205 घंटे का कार्यक्रम तैयार कर रहा है, जबकि 2018-19 में उसने केवल 105 घंटे का कार्यक्रम तैयार किया था। इसी तरह डिस्कवरी किड्स ने भी 2019-20 में कंटेट की अवधि दोगुना कर दी। इन सभी चैनलों का जोर देसी कंटेट पर है। चैनलों की बदली रणनीति की वजह ये आंकड़े बताते हैं। निक चैनल के दर्शकों में 58 फीसदी भारतीय कंटेट देखा जाता है। पोगो चैनल पर 56 फीसदी, डिस्कवरी किड्स पर 54 फीसदी और सोनी वाईएवाई पर 52 फीसदी भारतीय कंटेट देखा जा रहा है। जब स्थानीय कंटेट की इतनी ज्यादा मांग है तो प्रोड्यूसर्स को भी उसी पर फोकस करना होगा।

भारत में इंटरनेट यूजर्स की बढ़ती संख्या को देखते हुए अब पैराणिक पात्र मोबाइल पर भी पहुंच गए हैं। इस वजह से कई कंपनियों ने ओटीटी प्लेटफॉर्म के जरिए इस बड़े बाजार तक पहुंचने की तैयारी कर ली है। इसी के मद्देनजर करीब 50 फीसदी एनिमेशन प्रोडक्शन डिजिटल प्लेटफॉर्म के लिए किए जा रहे हैं। बढ़ती मांग को वाऊ किड्ज के 2.6 करोड़ सब्सक्राइबर से समझा जा सकता है, वाऊ किड्ज कॉसमॉस-माया का यूट्यूब नेटवर्क हैं।

साफ है कि पौराणिक और ऐतिहासिक पात्रों ने सुस्त चाल से चल रही एनिमेशन इंडस्ट्री को नया मंत्र दे दिया है। आने वाले दिनों में लोगों को कहीं ज्यादा देसी कंटेट मिलेंगे, जिसमें उनका साक्षात्कार देसी मिट्टी से निकले हीरो से ज्यादा होगा और जिनकी गाथाएं जन-जन की जुबान पर हैं।

 

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