हर तरफ मौत, मायूसी, बेबसी जैसे पसरी हुई है। जो चंद दिनों पहले कोरोना पर विजय का दंभ भर रहे थे, वे किन्हीं छद्म के आवरणों में छुप गए हैं। किसी को कुछ सूझ नहीं रहा है। ऐसे मंजर की कभी किसी ने कल्पना तक नहीं की होगी। आगरा की वह हृदयविदारक तस्वीर याद कीजिए, जिसमें एक महिला अपने पति को अस्पताल में ऑक्सीजन न मिलने पर ऑटो में खुद मुंह से ऑक्सीजन देने लगी। लेकिन उसकी कोशिश काम नहीं आई और पति की मौत हो गई। वह तस्वीर भी आगरा की ही है, जिसमें एक बेटा (मोहित) एंबुलेंस न मिलने पर अपने बाप की अर्थी कार की छत पर बांधकर श्मशान घाट ले गया। ऐसी दिल दहलाने वाली सैकड़ों तस्वीरें हमारे सामने रोज आ रही हैं, लेकिन बदकिस्मती ऐसी कि यह सिलसिला खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। नीति आयोग की एक समिति ने मई में हर रोज 6 लाख नए मामलों के अनुसार प्लान बी बनाने का सुझाव दिया है। यानी संक्रमण कि सिलसिला मई में दोगुना हो सकता है।
भारत अब पूरी तरह से हेल्थ इमरजेंसी की गिरफ्त में है। फिर भी सरकार नकार के मूड में है, जैसे हर समस्या से निबटने का उसके पास एक ही तरीका है, सच्चाई छुपा दो और सच बोलने वालों को धमका दो। अपने इसी अभियान के साथ सरकार ने सोशल मीडिया से कई पोस्ट डिलीट करने के निर्देश जारी कर दिए हैं, लेकिन फेसबुक, ट्विटर से लेकर सभी प्लेटफॉर्म अस्पताल में लोगों की लाचारी, अंतिम संस्कार की तस्वीरें और वीडियो से भरे पड़े हैं। इन तस्वीरों में श्मशान का मंजर भी भयावह है। श्मशान में नंबर लगाना और पांच-छह घंटे इंतजार करना पड़ रहा है। दिल्ली के कृष्णानगर में रहने वाले हर्ष शर्मा को अपने दादा के दाह संस्कार के लिए 34 नंबर मिला था। घंटों बाद नंबर आया तो चिता पूरी तरह से शरीर को नहीं जला पाई।
इसी तरह पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के प्रणव श्रीवास्तव आउटलुक से बिलखते हुए बताते हैं, ‘‘अपनी बुआ को दाह संस्कार के लिए श्मशान ले जाते वक्त मैंने जो मंजर देखा, वह किसी दुश्मन को भी देखना न पड़े। एक झटके में लोगों के परिवार तबाह हो रहे हैं। तकलीफ यह है कि इन नेताओं की लापरवाही का नतीजा हमें भुगतना पड़ रहा है।’’
देश के हर इलाके से ऐसी ही तस्वीरें और खबरें लगातार आ रही हैं। अस्पतालों के बाहर मृतकों के रोते-बिलखते परिवार, मरीजों से भरी एंबुलेंस की लंबी कतारें, लाशों से पटे मुर्दाघर, अस्पतालों के गलियारों में पड़े और एक बेड पर दो से तीन मरीज। अगर इस हाल में भी इलाज मिल पाता, तो लोग अपने को नसीब वाला मानते। लेकिन उनका तो जैसे नसीब ही रूठ गया। अस्पताल के बेड, कोविड की दवाइयां, ऑक्सीजन, यहां तक कि टेस्ट के रिजल्ट के लिए भी मारामारी मची हुई है। दवाइयों की कालाबाजारी हो रही है। नकली दवाइयां भी धड़ल्ले से बेची जा रही हैं।
सब नकारती सरकार
लेकिन सरकार है कि किसी तरह की किल्लत मानने को तैयार ही नहीं है। केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने पिछले हफ्ते कहा कि रेमडेसिविर जैसी जरूरी एंटी-वायरल दवा, वैक्सीन और ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं है। इसके विपरीत कई मुख्यमंत्री इन जरूरी चीजों की मांग केंद्र से लगातार कर रहे हैं। कई हाइकोर्ट ऑक्सीजन की किल्लत दूर करने का निर्देश जारी कर चुके हैं। इसलिए कांग्रेस नेता तथा पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने 28 अप्रैल को कहा, ‘‘मैं स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन के बयान से हैरान-परेशान हूं कि ऑक्सीजन, वैक्सीन और रेमडेसिविर की कोई कमी नहीं है। क्या डॉक्टर झूठ बोल रहे हैं? क्या मरीजों के परिजन झूठ बोल रहे है? क्या सारे वीडियो और फोटो फर्जी हैं?’’ चिदंबरम ने यह भी कहा कि, ‘‘जनता को ऐसी सरकार के खिलाफ विद्रोह करना चाहिए, जो यह मानकर चल रही है कि भारत के सभी लोग मूर्ख हैं।’’ केंद्र ही नहीं, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और गुजरात सरकारें भी कमी स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तो कहा कि, ‘‘कहीं कोई कमी नहीं है। सोशल मीडिया पर और दूसरी मीडिया पर ऐसा कहने वाले पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी।’’ हालांकि दूसरी लहर से निपटने के तरीके पर दुनिया भर के प्रमुख मीडिया संस्थानों ने सरकार की तीखी आलोचना की है।
दरअसल, इस साल 7 मार्च को स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने दावा किया था कि कोविड-19 महामारी अब खात्मे की ओर है। हालांकि उन्होंने फरवरी के मध्य में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की उस चेतावनी पर ध्यान देना उचित नहीं समझा कि कोविड-19 की ज्यादा खतरनाक दूसरी लहर आ सकती है, और उसके लिए तैयारियां की जानी चाहिए। डब्ल्यूएचओ ही नहीं, नीति आयोग की टॉस्क फोर्स के सदस्य, दिल्ली में एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया भी दूसरी लहर से संबंधित चेतावनी दे चुके थे। असल में मार्च के पहले हफ्ते में रोजाना 10-15 हजार संक्रमण के मामले आ रहे थे और मौत का आंकड़ा 100 के करीब था। यही नहीं, केंद्र सरकार ने नवंबर 2020 में संसदीय समिति की उस रिपोर्ट को नजरअंदाज कर दिया, जिसमें कोरोना की दूसरी लहर के लिए तैयार रहने को कहा गया था।
सबसे ज्यादा कोविड-19 संक्रमण वाले राज्य
राज्य संक्रमितों की संख्या संक्रमण से मौत
महाराष्ट्र 44,73,394 67214
केरल 14,95,378 5212
कर्नाटक 14,39,822 15036
उत्तर प्रदेश 11,82,848 11943
तमिलनाडु 11,30,167 13826
दिल्ली 10,98,051 15377
नोट- आंकड़े 29 अप्रैल दोपहर 2 बजे तक के हैं, जिसे कोविड-19 ओआरजी से लिया गया है
नवंबर में ही मिल चुकी थी चेतावनी
समाजवादी पार्टी के राम गोपाल यादव की अध्यक्षता में स्वास्थ्य पर गठित स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि नेशनल फार्मास्युटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (एनपीपीए) को ऑक्सीजन सिलिंडर की कीमत का निर्धारण करना चाहिए, ताकि किफायती दर पर उपलब्ध हो सके। इसके अलावा समिति ने कहा था कि सरकार ऑक्सीजन के उचित उत्पादन को प्रोत्साहित करे ताकि अस्पतालों में इसकी आपूर्ति अबाध रूप से हो सके। रिपोर्ट में कोरोना के मामलों में बढ़ोतरी को देखते हुए देश के सरकारी अस्पतालों में बेड की अपर्याप्त संख्या का मुद्दा भी उठाया गया था।
और उसी अधूरी तैयारियों का नतीजा है कि एक अप्रैल से 27 अप्रैल के बीच 57 लाख लोगों में कोरोना संक्रमण के नए मामले आ चुके हैं। यानी औसतन हर रोज दो लाख नए मामले आ रहे हैं। यह स्थिति 21 अप्रैल से और भयावह हो गई है। अब हर रोज 3 लाख से ज्यादा संक्रमण के मामले आ रहे हैं। मार्च की तुलना में रोजाना मरने वाली की संख्या में 32 गुना का इजाफा हो चुका है। 27 अप्रैल को देश में 3286 लोगों की मौत कोरोना से हुई। अब तक (27 अप्रैल) कोरोना से पूरे देश में 2 लाख से ज्यादा लोग मर चुके हैं और 1.79 करोड़ लोग संक्रमण के शिकार हो चुके हैं।
अब सवाल यह उठता है कि जब सरकार ने कोरोना खत्म होने का जश्न मनाते हुए अपनी वैक्सीन डिप्लोमेसी पर पीठ थपथपानी शुरू कर दी थी, तो फिर मामले इतने तेजी से कैसे बढ़ गए। इसके लिए कुछ घटनाओं को याद करना भी बेहद जरूरी है।
लाचार लो : प्रयागराज में मरीज को ले जाते परिजन (बाएं), आगरा में अपने पिता की अर्थी कार पर ले जाता युवक
26 फरवरी को चुनाव आयोग ने पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों का ऐलान कर दिया। इसके तहत पश्चिम बंगाल, असम, तमिलनाडु, केरल और पुदुच्चेरी में चुनाव होने थे। इनमें पश्चिम बंगाल इकलौता राज्य है जहां पर आठ चरणों में मतदान हुए हैं। विभिन्न उच्च न्यायालयों की तरफ से चुनाव आयोग को फटकार लगाई गई कि उसने राजनीतिक रैलियों पर समय रहते कोई प्रतिबंध नहीं लगाया। 27 मार्च से शुरू हुई मतदान की प्रक्रिया 29 अप्रैल तक चलती रही। इन 5 पांच राज्यों में करीब 18 करोड़ मतदाता हैं। इन चुनाव क्षेत्रों में न तो कोई सुरक्षा प्रोटोकॉल अपनाया जा रहा था और न सोशल डिस्टेंसिंग का पालन हो रहा था। नतीजा यह हुआ कि अकेले बंगाल में चुनाव के ऐलान के बाद से कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या में 75 गुना बढ़ोतरी हुई है। 27 अप्रैल को बंगाल में 16,403 नए मामले सामने आए जबकि 26 फरवरी को यह संख्या केवल 216 थी। इस दौरान पॉजिटिविटी रेट में भी भारी उछाल आया। अभी राज्य में एक लाख से ज्यादा सक्रिय मामले हैं। जबकि 26 फरवरी को यह संख्या सिर्फ 3343 थी। इसी तरह तमिलनाडु में एक मार्च को 502 लोग संक्रमित पाए गए थे, जबकि 27 अप्रैल को यह संख्या बढ़कर 15,830 हो गई। अन्य चुनावी राज्य केरल में भी मामले 9 गुना बढ़ गए।
इन देशों में हुई सबसे ज्यादा मौतें
देश कुल मौतें
अमेरिका 5,88,337
ब्राजील 3,98,343
मैक्सिको 2,15,918
भारत 2,04,832
यू.के. 1,27,480
नोट- सभी आंकड़े 29 अप्रैल दोपहर 2 बजे तक के हैं, जिसे वर्ल्डमीटर डॉट ओआरजी से लिया गया है।
ऐसी ही अनदेखी मार्च में गुजरात के नरेंद्र मोदी स्टेडियम में भारत और इंग्लैंड के बीच 12 और 14 मार्च को हुए टी-20 मैचों के लिए की गई। इन मैचों के लिए सोशल डिस्टेंसिग के साथ 1.30 लाख दर्शक क्षमता वाले स्टेडियम में मैच देखने की इजाजत दी गई। हालांकि बाद में तीन मैचों में दर्शकों को मैच देखने की इजाजत नहीं मिली। आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो एक मार्च को गुजरात में 427 कोरोना संक्रमण के मामले सामने आए। यह 27 अप्रैल तक 14 हजार से अधिक पहुंच गया।
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में 5 मार्च से 21 मार्च तक रोड सेफ्टी टूर्नामेंट का आयोजन किया गया। इसमें 6 देशों के खिलाड़ियों ने भाग लिया। इनमें सचिन तेंदुलकर, वीरेंद्र सहवाग, ब्रायन लारा, जोंटी रोड्स, केविन पीटरसन जैसे कई अन्तर्राष्ट्रीय खिलाड़ी शामिल थे। कुल 15 मैच हुए और हजारों की संख्या में दर्शक पूरे छत्तीसगढ़ से यहां पहुंचे। इतनी भीड़ के कारण यहां सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं हुआ। जोश में दर्शक पूरे समय मास्क निकाले रहे। नतीजा यह हुआ कि 15 मार्च के बाद पिछले वर्ष से दोगुने कोरोना संक्रमण के मामले मिलने लगे। राज्य में जहां 21 मार्च को 1000 संक्रमण के मामले सामने आए थे। वहीं 27 अप्रैल को यह 6800 तक पहुंच चुका था।
इन घोर लापरवाहियों का नतीजा अब हमारे सामने हैं। भारत, अमेरिका के बाद सबसे ज्यादा कोविड संक्रमण वाला देश बन गया है। मौत के मामले में भी भारत चौथे नंबर पर पहुंच गया है।
जीवन-मौत के बीच जंग : मुंबई के एमसीजीएम अस्पताल में एक कोविड मरीज का आइसीयू में इलाज करते डॉक्टर
चरणामृत की तरह ऑक्सीजन
कोरोना की दूसरी लहर में सबसे अधिक ऑक्सीजन की किल्लत हो गई है। हालात इतने बदतर हो चुके हैं कि देश की राजधानी दिल्ली के नामचीन अस्पतालों में ऑक्सीजन की वजह से लोगों जान गंवानी पड़ी। जयपुर गोल्डन अस्पताल में 25 मरीजों की ऑक्सीजन नहीं मिलने से मौत हो गई। इसी तरह सर गंगाराम अस्पताल, बत्रा अस्पताल, मूलचंद, फोर्टिस जैसे अस्पतालों को ऑक्सीजन की किल्लत का सामना करना पड़ रहा है। हालात कितने बदतर हैं कि सर गंगाराम के 72 वर्षीय चेयरमैन डॉ. डीएस राणा को ऑक्सीजन की आपूर्ति पर कहना पड़ा, "इस समय हमें ऑक्सीजन चरणामृत की तरह मिल रही है।" ऐसे ही स्थिति को बयां करते-करते दिल्ली के शांति मुकुंद अस्पताल के सीईओ सुनील सागर रो पड़े। ऐसा नहीं कि ऑक्सीजन की किल्लत का यह हाल केवल दिल्ली में है, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, गुजरात सहित कई प्रमुख राज्यों में भी ऐसी ही किल्लत है। गुजरात के कच्छ में तो ऑक्सीजन को लेकर गोलियां तक चल गईं। लखनऊ में कई अस्पतालों ने बोर्ड लगा दिया कि ऑक्सीजन की उपलब्धता नहीं है।
प्लीज प्लीज प्लीज आगे आओ, मदद करो, हाथ जोड़ कर विनती है प्लीज, ऑक्सीजन लेवल 60 से भी नीचे पहुंच गया है। तुरंत एक वेटिंलेटर के साथ बेड चाहिए।
-मिनी अग्रवाल, आगरा
स्थिति इतनी भयावह है कि लोग 12-15 हजार रुपये में छोटा ऑक्सीजन सिलिंडर खरीदने को मजबूर हैं। सरकारें कुछ नहीं कर पा रही हैं तो अपने स्तर पर लोग ही जरूरतमंदों की मदद कर रहे हैं। जैसे, पटना के गौरव रॉय लोगों के लिए ऑक्सीजन मैन बन गए हैं। बेकाबू हालात को देखते हुए दिल्ली हाइकोर्ट को आगे आकर केंद्र सरकार को फटकार लगानी पड़ी। कोर्ट ने तो यहां तक कहा, "सरकार ऑक्सीजन की आपूर्ति के लिए भीख मांगे या चोरी करे, लेकिन उसे इसका प्रबंध करना पड़ेगा। हम हजारों लोगों को मरते हुए नहीं छोड़ सकते हैं। लोगों की जान खतरे में है।"
कोरोना का संक्रमण व्यक्ति के शरीर में सबसे पहले फेफड़े को प्रभावित कर रहा है, जिसकी वजह से मरीज को ऑक्सीजन की सबसे अधिक जरूरत हो रही है। घटनाओं से साफ है कि ऑक्सीजन की आपूर्ति करने में मोदी सरकार फेल हो गई है, क्योंकि इसकी प्रमुख जिम्मेदारी केंद्र की है। केंद्र से ही राज्यों को जरूरत के अनुसार ऑक्सीजन आवंटित की जाती है।
भारी गम : दिल्ली में परिजन की मौत पर बिलखती महिलाएं
एक के बाद एक गलत निर्णय
सवाल यह है कि जब कोरोना महामारी पिछले साल आई थी, तो लॉकडाउन और अन्य पाबंदियों के साथ सरकार को 400 दिनों से अधिक का समय मिला था। सरकार की समिति और संसदीय समिति ने भी आने वाले खतरे के लिए आगाह कर दिया था। तो फिर सरकार कहां चूक गई? दरअसल, सरकार ने इस महामारी के बीच भी ऑक्सीजन का दोगुना निर्यात किया है। वित्त वर्ष 2020-21 के पहले 10 महीने में केंद्र सरकार ने 9301 मीट्रिक टन का निर्यात दुनिया के बाकी देशों में कर दिया। यह अन्य वर्षों की तुलना में दोगुना है। 2019-20 की इसी अवधि में भारत ने करीब 4500 मीट्रिक टन ऑक्सीजन का निर्यात किया था। अब जब हालात बिगड़ चुके हैं तो सरकार ने 50 हजार टन ऑक्सीजन आयात करने का फैसला किया है। साथ ही पीएम केयर फंड से हर जिले में ऑक्सीजन प्लांट (551) लगाने का फैसला किया है। लेकिन साफ है कि मरीजों को जरूरत तो अभी है और कोई जादू की छड़ी नहीं है जिससे रातो-रात ऑक्सीजन की आपूर्ति शुरू हो जाए। इस बीच सिंगापुर, ब्रिटेन, अमेरिका, फ्रांस ने भारत को मदद का भरोसा दिलाया है। आने वाले समय में स्थितियां थोड़ी सुधर सकती हैं।
बेंगलुरू से पलायन करते प्रवासी श्रमकि
इंडस्ट्री के अनुसार देश में 7000 मीट्रिक टन ऑक्सीजन का प्रतिदिन उत्पादन होता है। रेटिंग एजेंसी क्रिसिल की रिपोर्ट के अनुसार अप्रैल के दूसरे हफ्ते में ऑक्सीजन की मांग में 5 गुना बढ़ोतरी हुई। कोरोना की पहली लहर में प्रतिदिन ऑक्सीजन की मांग 700 टन से बढक़र 2800 मीट्रिक टन तक पहुंच गई थी। लेकिन दूसरे चरण में यह 5000 मीट्रिक टन तक पहुंच गई। ऐसे में उत्पादन से ज्यादा वितरण की समस्या है। इसी वजह से अब केंद्र सरकार ऑक्सीजन एक्सप्रेस और विदेश से क्रायोजेनिक टैंकर भी मंगा रही है। साथ ही पीएमकेयर फंड से 162 प्रेशर स्विंग एब्सॉर्पशन (पीएसए) लगाने का फैसला किया गया है। इन फैसलों का असर दिखने में तो वक्त लगेगा, फिलहाल तो हकीकत बहुत ही डरावना है।
बेकाबू हालात ने विपक्ष को भी मौका दे दिया है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मोदी सरकार पर हमला बोलते हुए कहा, "इस सरकार ने कोरोना की दूसरी लहर में जो रवैया अपनाया है वह पूरी तरह से तबाही मचाने वाला है।" वहीं कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा है, "रोजगार और विकास की तरह केंद्र सरकार कोरोना का असली डाटा भी जनता तक नहीं पहुंचने दे रही है। महामारी को न सही महामारी के सच तो नियंत्रण में कर ही लिया।"
ऐसी चिंता भारतीय स्टेरट बैंक (एसबीआई) ने अपनी हालिया रिपोर्ट में भी उठाई है। उसके अनुसार कोरोना वायरस की दूसरी लहर मई महीने के तीसरे सप्ताह में चरम पर होगी। एसबीआइ के ग्रुप चीफ इकोनॉमिक एडवाइजर डॉ. सौम्य कांति घोष की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में फरवरी में 97 फीसदी के साथ रिकवरी रेट सबसे ज्यादा था। हाल के दिनों में यह 85 फीसदी पर आ गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि हमारे मॉडल के हिसाब से देखें तो जब दूसरे लहर में जब रिकवरी रेट 78-79 फीसदी होगा तो वह पीक होगा। वह समय मई के तीसरे सप्ताह में आएगा। बढ़ते मामलों के देखते हुए एसबीआई ने वित्त वर्ष 2021-22 के लिए आर्थिक विकास दर के अनुमान को संशोधित कर दिया है। वास्तविक जीडीपी को पिछले बार के 11 फीसदी की तुलना में कम कर 10.4 फीसदी कर दिया गया है, जबकि नॉमिनल जीडीपी को 15 फीसदी से संशोधित कर अब 14.3 फीसदी कर दिया है। रिपोर्ट के अनुसार कोरोना वायरस की दूसरी लहर से बचने के लिए वैक्सीनेशन ही प्रमुख हथियार होना चाहिए। इससे लॉकडाउन जैसी स्थिति को भी टालने में मदद मिलेगी। हालांकि, अब सरकार ने ऐलान कर दिया है कि एक मई के बाद से 18 साल से अधिक उम्र वालों को वैक्सीन लगाने का काम शुरू कर दिया जाएगा।
लेकिन कई राज्यों ने वैक्सीन की उपलब्धता पर सवाल उठा दिए हैं। कांग्रेस शासित राज्य महाराष्ट्र, पंजाब, छत्तीसगढ़ के साथ झारखंड ने कहा है कि 1 मई से 18-45 साल वालों को वैक्सीन नहीं उपलब्ध करा सकते, क्योंकि उनके पास वैक्सीन का पर्याप्त स्टॉक नहीं है। हालांकि केंद्र सरकार ने इसे भी नकारते हुए कहा है कि स्टॉक की कोई समस्या नहीं है।
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार 28 अप्रैल तक 15 करोड़ लोगों को वैक्सीन लगाई जा चुकी है। हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि जब कि 70-80 करोड़ लोगों को वैक्सीन नहीं दी जाएगी, तब तक भारत में कोरोना के प्रकोप को रोकना मुश्किल होगा। अगर दूसरे देशों तुलना की जाए तो आबादी के अनुपात में टीकाकरण में भारत काफी पीछे हैं। यूएसए टुडे की रिपोर्ट के अनुसार (खबर लिखे जाने तक) इजरायल में 62 फीसदी लोगों को कम से कम एक डोज लग चुकी है। इसी तरह चिली में 42 फीसदी, बहरीन में 40 फीसदी, अमेरिका में 43 फीसदी, ब्रिटेन में 50 फीसदी लोगों को वैक्सीन लग चुकी है। जबकि भारत में अभी करीब 10 फीसदी लोगों को ही वैक्सीन लग पाई है।
मुंबई के अस्पतालों के आइसीयू में जगह नहीं है। हम असहाय हैं, ऐसी स्थिति पहले कभी नहीं देखी, लोग घबरा रहे हैं। बहुत सारे राज्यों और शहरों की हालत खराब होती जा रही है।
-डॉ तृप्ति गिलाडा, मुंबई
वैक्सीन की कीमत पर सवाल
एक मई से 18 साल से ज्यादा उम्र के लोगों को वैक्सीन लगाने का फैसले पर सवाल उठ रहे हैं। सवाल वैक्सीन की कीमत पर भी उठ रहे हैं। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने तो यहां तक कह दिया है कि पूरी दुनिया में वैक्सीन की कीमतों को लेकर सबसे खराब नीति भारत की है। असल में उनकी इस बात को इसलिए बल मिल रहा है, कि भारत में वैक्सीन निर्माता कंपनियों ने कीमतों को लेकर कई मानदंड तय कर दिए हैं। मसलन केंद्र सरकार ने वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों को राज्य सरकारों और निजी अस्पतालों के लिए वैक्सीन के दाम अपनी मर्जी से तय करने की छूट दे दी है। इसके तहत सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआइआइ) अब 300 रुपये में राज्य सरकारों और 600 रुपये में प्राइवेट अस्पतालों को वैक्सीन देगी। भारत बायोटेक ने राज्य सरकारों के लिए कोवैक्सीन की एक डोज की कीमत 600 रुपये और प्राइवेट अस्पतालों के लिए 1200 रुपये तय की है। विवाद बढ़ने के बाद सीरम ने राज्य सरकारों को दी जाने वाली वैक्सीन की कीमत में 100 रुपये की कटौती की है। उसने शुरूआती दौर में केंद्र सरकार को 250 रुपये में वैक्सीन दी थी। जाहिर है कि कीमतों को लेकर इस तरह की स्थिति कन्फ्यूजन पैदा करती है, और कई सारे सवाल भी खड़े करती है।
लेकिन इस बीच पिछले साल जैसे लॉकडाउन की तस्वीर भी उभरने लगी है। महाराष्ट्र, दिल्ली, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, गोवा, यूपी, बिहार ने अपने-अपने स्तर पर लॉकडाउन का ऐलान कर दिया है। इसी तरह की सख्तियां गोवा और बिहार और झारखंड में लागू कर दी गई हैं। हालांकि इस बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के नाम अपने संबोधन में कहा है कि उनके लिए लॉकडाउन सबसे अंतिम विकल्प होगा। लेकिन बढ़ते मामलों को देखते हुए एक बार फिर प्रवासी श्रमिकों का महापलायन शुरू हो चुका है। अकेले महाराष्ट्र से करीब 10 लाख श्रमिकों का पलायन हो चुका है। इसी तरह हरियाणा, पंजाब से भी श्रमिकों ने पलायन शुरू कर दिया है।
लॉकडाउन के बढ़ते खतरे की बीच एसबीआई की रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि लॉकडाउन और प्रतिबंधों की वजह से अर्थव्यवस्था को 1.5 लाख करोड़ रुपये का नुकसान होगा। जाहिर है अर्थव्यवस्था एक और चोट के लिए तैयार नहीं है। ऐसे में मोदी सरकार के लिए दूसरी लहर में अब से सचेत होने की जरूरत है। क्योंकि शुरुआती ढिलाई की वजह से देश में जो डर और भय का माहौल फैल गया है, उसे कम करने की जिम्मेदारी केंद्र और राज्य सरकारों की है। अगर इस अभूतपूर्व संकट में राजनीति से परे होकर आम लोगों के बारे में नहीं सोचेंगे तो निश्चित है कि आने वाली पीढ़ियां कभी माफ नहीं करेंगी।
सुपर स्प्रेडर कुंभ
-देहरादून से अतुल बरतरिया
कोविड-19 महामारी के बावजूद इस बार हरिद्वार महाकुंभ का आयोजन मूल तिथि से एक साल पहले किया गया। इस फैसले को अगले साल उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में होने वाले विधानसभा चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है। लेकिन इस आयोजन का जो अंजाम हुआ, उससे दोनों राज्यों में सत्तारूढ़ भाजपा को शायद वह सियासी फायदा न मिल पाए। वैसे, आधिकारिक वजह बताई गई कि ग्रह दशा के कारण हर आठवां महाकुंभ 11 साल बाद होता है। इससे पहले 1938 में भी यहां 11 वर्ष बाद कुंभ हुआ था।
तमाम वैज्ञानिक और सरकारी विशेषज्ञ ऐसे आयोजनों के खिलाफ थे। फिर भी लोगों को खुश करने के लिए कोविड की सावधानियों की पूरी तरह अनदेखी की गई। कुंभ के शुरुआती दिनों में प्रदेश में त्रिवेंद्र सिंह रावत की सरकार थी। उन्होंने अप्रैल में मेले की तारीखें तय करने के साथ ही कई प्रतिबंधों की भी घोषणा की। इसका विरोध हुआ तो अचानक 10 मार्च को उन्हें हटा कर तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बना दिया गया। तीरथ सिंह ने शपथ लेते ही साफ कर दिया कि कुंभ दिव्य और भव्य होगा, इसमें किसी तरह का प्रतिबंध नहीं होगा। वे खुद हरिद्वार गए और कोविड के हर प्रोटोकॉल की धज्जियां उड़ाई गईं। 12 और 14 अप्रैल के दो शाही स्नान के दौरान कोविड के किसी भी नियम का पालन नहीं किया गया। खुद सरकार ने कई लाख लोगों के स्नान का दावा किया।
नैनीताल हाइकोर्ट ने मार्च के अंत में ही कुंभ में रोजाना 50 हजार लोगों की जांच करने के आदेश दिए थे। पहला बड़ा झटका तब लगा जब मध्य प्रदेश के निर्वाणी अखाड़े के महामंडलेश्वर कपिलदेव दास का कोरोना के कारण निधन हो गया। बाकी देश में भी संक्रमण और मौत के आंकड़े तेजी से बढ़ रहे थे। तब मुख्यमंत्री को मजबूरन कहना पड़ा कि कोविड प्रोटोकॉल का पालन कराया जाएगा।
संतों के कुछ अखाड़ों ने समय से पहले कुंभ समापन की घोषणा की तो जूना अखाड़ा विरोध में आ गया। इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस अखाड़े के मुखिया से बात की और ट्वीट करके कुंभ को प्रतीकात्मक करने का आग्रह किया। इस अखाड़े ने तो पीएम की बात मान ली, लेकिन वैरागी अखाड़े ने विरोध किया और एक नया संगठन बना लिया। 27 अप्रैल को चैत्र पूर्णिमा के दिन संत समाज ने प्रतीकात्मक स्नान करके कुंभ का समापन किया। हालांकि उस ‘प्रतीकात्मक स्नान’ में भी 25,000 से ज्यादा लोगों ने हिस्सा लिया। अब कुंभ से लौटने वालों के सुपर स्प्रेडर बनने की आशंका जताई जा रही है। कई राज्यों ने कुंभ से लौटने वालों की जांच करने की घोषणा की है।