राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मसौदे में हिंदी पढ़ाने की सिफारिश को लेकर उठ रहे विवादों के बीच भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) ने इसे वापस लेने की मांग की है। सीपीआई ने मोदी सरकार की शिक्षा नीति का विरोध करते हुए कहा कि तीन भाषा फार्मूले के नाम पर हिंदी को लागू करने की कोशिश भयावह है।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राष्ट्रीय सचिवालय ने बयान जारी कर कहा कि यह नई शिक्षा नीति मसौदा सभी शिक्षा के बारे में नहीं है बल्कि ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद’ के अपने एजेंडे के हिस्से के रूप में हिंदी को कैसे लागू किया जाए, इसके बारे में ज्यादा है।
सीपीआई का कहना है कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी सभी भाषाओं का प्रचार, संरक्षण, सभी भाषाओं की समानता की बात करती है। पार्टी आदिवासी भाषाओं की लिपियों और बोलियों को विकसित करने की भी बात करती है।
देश की एकता और अखंडता के लिए खतरा
पार्टी ने कहा, “कई राज्यों जैसे तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश और अन्य राज्यों में बढ़ते आंदोलन के बीच सरकार की ओर से कुछ स्पष्टीकरण दिए जाने के बावजूद, हिंदी को थोपने को लेकर आशंकाएं हैं जो देश की एकता और अखंडता के लिए खतरा है।”
सीपीआई के राष्ट्रीय सचिवालय की मांग है कि वर्तमान मसौदा शिक्षा नीति जो सार्वजनिक डोमेन में है, उसे वापस लिया जाना चाहिए।
क्या है विवाद?
मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रहे प्रकाश जावड़ेकर ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का मसौदा तैयार करने के लिए समिति गठित की थी। समिति की रिपोर्ट शुक्रवार को जारी हुई।
सीपीआई का यह बयान द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) समेत तमिलनाडु के अन्य दलों के विरोध के बाद आया है। डीएमके ने तीन भाषा फॉर्मूले का कड़ा विरोध करते हुए आरोप लगाया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मसौदे में प्रस्तावित त्रिभाषा फॉर्मूला हिंदी को "जोर-जबरदस्ती" थोपना है। डीएमके ने कहा कि तमिलनाडु में 1968 से सिर्फ दो भाषा का फॉर्मूला है, जिसमें छात्रों को विद्यालय में अंग्रेजी और तमिल पढ़ाया जाता है।