राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने नए दिशा-निर्देश जारी किए हैं जिनके मुताबिक जिला अधिकारियों को किसी बाल देखभाल संस्थान (सीसीआई) के भीतर हुई बच्चों की मौत के मामले की जांच चार हफ्ते के भीतर पूरी करनी होगी।
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष स्तुति कक्कड़ ने बताया कि ये दिशा-निर्देश राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के सहयोग से तैयार किए गए हैं।
“देखभाल संस्थानों की भूमिका पर कानून में कुछ नहीं है”
कक्कड़ ने कहा, “इन बाल देखभाल संस्थानों से किसी बच्चे के भाग जाने या मौत हो जाने या उनके यौन उत्पीड़न के मामलों में क्या किया जाना चाहिए इस संबंध में कोई प्रक्रिया नहीं थी और यहां रह रहे बच्चों के लिए कुछ ऐसा करने की जरूरत है।”
उन्होंने कहा, “संस्थानों में रहने वाले बच्चों के भागने या यौन उत्पीड़न जैसे मुद्दों से निपटने के लिए बाल देखभाल संस्थानों की भूमिका पर कानून में कुछ नहीं है। ये दिशा-निर्देश इसका भी हल निकालेंगे।”
एनसीपीसीआर की अध्यक्ष ने बताया कि न्याय किशोर अधिनियम के तहत बच्चों की मौत के मामलों की जांच का प्रावधान है लेकिन इन दिशा-निर्देशों का मकसद एक समय-सीमा तय करना है।
उन्होंने बताया कि बच्चे का पोस्टमार्टम 24 घंटे के भीतर हो जाना चाहिए और जिला अधिकारियों, परिजन, संरक्षकों को इसकी जानकारी होनी चाहिए।
“सोशल ऑडिट की प्राथमिक रिपोर्ट एक “भयावह परिदृश्य” दिखाती है”
बुधवार को उच्चतम न्यायालय के समक्ष दाखिल एक हलफनामे में एनसीपीसीआर ने कहा कि भारत भर के 9,000 बाल गृहों में हो रहे सामाजिक ऑडिट की प्राथमिक रिपोर्ट एक “भयावह परिदृश्य” दिखाती है।
हलफनामे में बताया गया कि एनसीपीसीआर द्वारा अब तक 2,874 बाल गृहों के निरीक्षण में से केवल 54 में स्थितियां ठीक देखी गईं।
देवरिया और मुजफ्फरपुर बाल गृहों में बच्चों के यौन उत्पीड़न और लापता होने के प्रकरण के सामने आने के बाद ये दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं।