न्यायमूर्ति बीडी अहमद और न्यायमूर्ति संजीव सचदेवा की पीठ ने कहा कि हालांकि वह प्रथमदृष्टया डॉक्यूमेंट्री के प्रसारण के खिलाफ नही है, लेकिन उच्चतम न्यायालय की ओर से मामले में दोषियों की अपीलों पर सुनवाई के बाद ही यह रिलीज होनी चाहिए थी।
पीठ का मानना है कि डॉक्यूमेंटी न्याय प्रणाली में दखलंदाजी कर सकती है लेकिन उसने यह कहते हुए कोई अंतरिम आदेश देने से इंकार कर दिया कि मुख्य न्यायाधीश की उपयुक्त पीठ ही इस बारे में फैसला करेगी।
उन्होंने कहा, प्रथमदृष्टया, हम डॉक्यूमेंटी के प्रसारण के खिलाफ नहीं हैं लेकिन ऐसा उच्चतम न्यायालय में अपीलों पर फैसले के बाद होना चाहिए था।
अदालत ने मामले की सुनवाई 18 मार्च तय करते हुए कहा, अगर आपने इसे हमारे सामने पेश किया होता तो हम आपसे कहते कि हमारे सामने तथ्यों को रखिए कि क्यों प्रतिबंध हटाया जाए। लेकिन, यह मुख्य न्यायाधीश के रोस्टर बेंच की तरफ से आया है इसलिए हम इस पर कोई आदेश नहीं देंगे। रोस्टर बेंच को ही फैसला करने दीजिये।
अदालत ने टिप्पणी की कि वीडियो का प्रसारण दुष्कर्म के दोषी मुकेश के मामले को बना सकती है या बिगाड़ सकती है। पीठ ने कहा, सजा सुनाते वक्त यह भी विचार करना होगा कि क्या उसने पश्चाताप व्यक्त किया है या नहीं। उच्चतम न्यायालय का फैसला आने तक इंतजार क्यों नहीं करते?
इस दलील पर कि शीर्ष अदालत का फैसला आने तक वीडियो के प्रसारण पर रोक से सभी तरह के न्यायाधीन मामलों की रिपोर्टिंग पर प्रतिबंध लग सकता है, पीठ ने कहा, हम सहमत हैं।
अदालत ने कहा कि इससे पहले मीडिया ने न्यायाधीन मामलों की रिपोर्टिंग नहीं करने के लिए खुद ही नियम तैयार किया था, लेकिन अब मीडिया ने ही उसे दरकिनार कर दिया है।
केंद्र सरकार की ओर से पेश वकील मोनिका अरोड़ा ने डॉक्यूमेंट्री के प्रसारण का यह कहते हुए विरोध किया कि इससे दोषी को अपनी राय प्रसारित करने का एक मंच मिलेगा और इसमें पीडि़ता के बारे में अशोभनीय बयान भी हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने केबल टीवी नेटवर्कों को सिर्फ एक परामर्श जारी कर डॉक्यूमेंट्री के प्रसारण पर मजिस्ट्रेटी अदालत के प्रतिबंध आदेश का पालन करने के लिए कहा था।
दूसरी ओर, याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि सरकार इंटरनेट के जरिए डॉक्यूमेंट्री के प्रसार पर रोक लगाने में नाकाम रही है और चूंकि इसे लाखों लोग देख चुके हैं तथा कानून और व्यवस्था की स्थिति को कोई खतरा नहीं हुआ, इसलिए वीडियो को प्रतिबंधित करने का कोई आधार नहीं है।