देश की राजधानी दिल्ली में यमुना के तट पर होने वाले भव्य आयोजन-विश्व संस्कृति महोत्सव को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। दिल्ली में मयूर विहार के सामने सैंकड़ों एकड़ में फैले इस आयोजन की तैयारी के संबंध में किसी भी तरह की मंजूरी न लेने और पुलों के निर्माण के लिए सेना को लगाने को लेकर हंगामा मचा हुआ है। आज राज्यसभा से लेकर राष्ट्रीय हरित पंचाट में इसी मुद्दे पर बहस छिड़ी हुई है।
राष्ट्रीय हरित पंचाट में तो केंद्र सरकार को फटकार लगाते हुए यह तक अदालत ने कह दिया कि वह उसके धैर्य की परीक्षा न ले। साफ-साफ यह बताए कि यमुना पर पुल बनाने के लिए मंजूरी की जरूरत है कि नहीं। साथ ही यह भी बताए कि यहां इस आयोजन की मंजूरी से पहले इलाके पर पड़ने वाले पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन कराया गया या नहीं। उधर राज्यसभा में आज भी आर्ट ऑफ लीविंग के इस कार्यक्रम की तैयारी हो रही गड़बड़ी की कड़ी आलोचना हुई। विपक्ष ने दोनों ही पक्ष उठाए, उन्होंने कहा कि यह एक पर्यावरण आपदा को बुलावा देना है। यमुना के तट को पूरी तरह से बर्बाद करके यह आयोजन हो रहा है। ऐसा सरासर गलत है। इसके जवाब में केंद्र सरकार ने सफाई दी कि उसे पर्यावरण की बेहद चिंता है और वह उसकी रक्षा के लिए कटिबद्ध है। सरकार ने कहा कि चूंकि अभी इस मामले की सुनवाई राष्ट्रीय हरित पंचाट में चल रही है, इसलिए वह इस पर ज्यादा बोलने की स्थिति में नहीं है। विपक्ष सत्ता पक्ष के इन बयानों से संतुष्ट नहीं हुआ और जनता दल (यू) के शरद यादव और कांग्रेस के गुलाम नबी आजाद और माकपा के सीताराम येचुरी ने कई अहम सवाल उठाए। विपक्षी सांसदों का कहना है कि इस तरह से एक निजी कार्यक्रम के लिए सारे नियमों और कानूनों की अवहेलना करना और सेना को लगाना गलत है।
एक दिलचस्प स्थिति यह पैदा हो गई है कि जितने भी विभाग इस कार्यक्रम को हरी झंड़ी देने या उसे सफल बनाने के लिए जिम्मेदार है, वे सब अपना पल्ला झाड़ने मं लगे हैं। दिल्ली पुलिस पहले ही यहां भगदड़ की आशंका तला चुकी है। दिल्ली पुलिस ने अपनी रिपोर्ट में भी यह कहा कि पुलों की स्थिति ठीक नहीं है। चूंकि इनके किनारों में बाड़ नहीं लगी है, लिहाजा भगदड़ की नौबत आने पर पानी में गिरने की आशंका है। गौरतलब है कि पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने राष्ट्रीय हरित पंचाट से इस आधार पर कार्यक्रम को रद्द करने का आग्रह किया है कि इससे यमुना के पर्यावरणीय माहौल को स्थायी नुकसान होगा।