केन्द्र सरकार ने कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यम को वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार के रूप में नियुक्त किया है। यह नियुक्ति 3 साल के लिए की गई है। वर्तमान में कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यम इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस में प्रोफेसर के तौर पर कार्यरत हैं। यह पद अरविंद सुब्रमण्यम के जाने से रिक्त हुई थी।
अरविंद सुब्रमण्यम को पहले तीन सालों के लिए देश का मुख्य आर्थिक सलाहकार बनाया गया था। इसके बाद उन्हें 12 महीनों का सेवा विस्तार दिया गया था, जो अगस्त में खत्म हो गया।
नए आर्थिक सलाहकार की नियुक्ति के लिए केंद्र सरकार ने भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पूर्व गवर्नर बिमल जालान के नेतृत्व में सर्च कमिटी का गठन किया था।
कौन हैं कृष्णमूर्ति?
कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यम वैकल्पिक निवेश नीति के मामले पर गठित सेबी की समिति के सदस्य रह चुके हैं। इसके साथ ही वह बंधन बैंक, नैशनल इंस्टीट्यूट ऑफ बैंक मैनेजमेंट और आरबीआई एकेडमी के बोर्ड में शामिल हैं। उन्होंने शिकागो बूथ से पीएचडी की है। वो बैंकिंग, कॉर्पोरेट गवर्नेंस और इकोनॉमिक पॉलिसी के एक्सपर्ट हैं। इसके अलावा वे आईआईटी और आईआईएम के एल्युमिनी भी हैं।
अरविंद सुब्रमण्यम ने क्यों छोड़ा पद?
अरविंद सुब्रमण्यम ने जून में अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इस्तीफे की जानकारी दी थी। इस बारे में उन्होंने फेसबुक पर एक लंबा नोट लिखा था। उन्होंने लिखा था कि उनके इस्तीफे की वजहें निजी हैं, जो उनके लिए काफी अहम हैं और मेरे पास उनके इस्तीफे को स्वीकार करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं है।
हालांकि जानकार इसके पीछे और भी कई वजहों की बात करते हैं। आम आदमी के इस्तेमाल की वस्तुओं को 28 फीसदी टैक्स रेट में रखने पर उन्होंने आपत्ति जताई थी। कुछ महीने बाद सरकार ने उनकी बात मानी और टैक्स दर कम किए। दूसरा, नोटबंदी पर भी इनकी सहमति नहीं थी पर वो उस दौरान खुलकर नहीं बोले।
अरविंद सुब्रमण्यम ने पद पर रहते हुए नोटबंदी पर लंबे समय तक चुप्पी साधे रखी थी, लेकिन पद छोड़ने के छह महीने बाद उन्होंने नोटबंदी को एक बड़ा, सख्त और मौद्रिक (मॉनेटरी) झटका करार दिया। अपनी पुस्तक 'ऑफ काउंसल : द चैलेंजेज ऑफ द मोदी-जेटली इकोनॉमी' में नोटबंदी पर एक अध्याय लिखा है।
सुब्रमण्यन ने कहा, "नोटबंदी एक बड़ा, सख्त और मौद्रिक झटका था। इस फैसले के बाद एक ही झटके में 86 प्रतिशत प्रचलित नोट को वापस मंगा लिया गया था। इस कारण वास्तविक जीडीपी वृद्धि प्रभावित हुई। वृद्धि में कमी आनी पहले ही शुरू हो गई थी लेकिन नोटबंदी के बाद इसमें तेजी आ गई।"
'द टू पजल ऑफ डिमोनटाइजेशन पॉलिटिकल एंड इकॉनोमिक' अध्याय में उन्होंने कहा, "नोटबंदी से पहले की छह तिमाही में वृद्धि दर औसतन आठ प्रतिशत थी, जबकि इस फैसले के लागू होने के बाद यह औसतन 6.8 फीसदी रह गई।"