प्रतिबंधित माओवादी पार्टी सीपीआई (माओवादी) से संबंधों के आरोप में जेल में बंद दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रो. जीएन साईबाबा को बांबे हाईकोर्ट ने इलाज के लिए तीन महीने की जमानत दे दी है। यह अस्थायी जमानत उनके बिगड़ते स्वास्थ्य को देखते हुए मिली है। इसके लिए उन्हें 50 हजार रुपये का निजी मुचलका भरना होगा। गौरतलब है कि पिछले दिनों मशहूर लेखिका अरुंधती रॉय ने जेल में प्रो. साईबाबा को दी जा रही यातनाओं और उनकी बिगड़ती हालत पर आउटलुक में लेख लिखा था। उनकी रिहाई के लिए कई सामाजिक संगठन भी आवाज उठा रहे थे।
मिली जानकारी के अनुसार, चीफ जस्टिस मोहित शाह और जस्टिस एसबी शुकरे ने प्रो. साईबाबा की जमानत याचिका को मंजूर करते हुए कहा, अगर इलाज और देखभाल के लिए साईबाबा को अस्थायी जमानत पर रिहा नहीं किया जाता है तो उनके जीवन को खतरा हो सकता है। अगर उन्हें जमानत नहीं दी गई तो यह उनके मौलिक अधिकारों की हिफाजत में अदालत की चूक होगी। गौरतलब है कि पिछले साल मई में महाराष्ट्र पुलिनस प्रो. साईबाबा को दिल्ली यूनिवर्सिटी कैंपस में उनके आवास से उठा ले गई थी। उन प्रतिबंधित सीपीआई माओवादी पार्टी से संबंध रखने के आरोप लगाए गए। पक्षाघात पीडि़त और व्हीलचेयर की मदद से चलने-फिरने वाले प्रो. साईबाबा को कई बीमारियों के बावजूद नागपुर जेल में रखा गया था। इससे पहले हाईकोर्ट ने उन्हें इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती करने का आदेश देते हुए पुलिस को उनके साथ जानवरों जैसा बर्ताव करने के लिए फटकार लगाई थी।
सामाजिक कार्यकर्ता पूर्णिमा उपाध्याय ने प्रो. साईबाबा की जमानत के लिए एक ईमेल के आधार पर बांबे हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका लगाई थी, जिसका संज्ञान लेते हुए अदालत ने यह फैसला किया है। हालांकि, सरकारी वकील संदीप शिंदे ने यह कहते हुए साईबाबा की जमानत का विरोध किया कि वह प्रतिबंधित सीपीआई माओवादी पार्टी से जुड़े हैं और जेल से रिहा होने पर सबूतों से छेड़छाड़ कर सकते हैं। लेकिन अदालत ने साईबाबा की बिगड़ती हालत और उनका इलाज कराने में परिजनों को आ रही दिक्कतों को देखते हुए जमानत देने का फैसला किया।