चुनाव आयोग ने चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन की शिकायतों के निस्तारण में आयोग के सदस्यों के ‘असहमति के मत’ को फैसले का हिस्सा बनाने की चुनाव आयुक्त अशोक लवासा की मांग को बहुमत के आधार पर नामंजूर कर दिया।
चुनाव आयोग ने इस मामले में मौजूदा व्यवस्था को ही बरकरार रखते हुये कहा कि असहमति और अल्पमत के फैसले को आयोग के फैसले में शामिल कर सार्वजनिक नहीं किया जाएगा।
आयोग की पूर्ण बैठक में मुख्य चुनाव आयुक्त के अलावा दोनों चुनाव आयुक्त भी बतौर सदस्य मौजूद होते है।
असहमति के विचारों को किया जाएगा दर्ज
लवासा के सुझाव पर विचार करने के लिये मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा द्वारा मंगलवार को हुयी आयोग की पूर्ण बैठक में दो-एक के बहुमत से यह फैसला किया गया। हालांकि, आयोग ने कहा कि निर्वाचन नियमों के तहत इन मामलों में सहमति और असहमति के विचारों को निस्तारण प्रक्रिया की फाइलों में दर्ज किया जायेगा।
आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इस फैसले को स्पष्ट करते हुये बताया कि आचार संहिता के उल्लंघन की शिकायतों के निस्तारण में सभी सदस्यों का मत अयोग की पूर्ण बैठक के रिकार्ड में दर्ज होगा लेकिन प्रत्येक सदस्य के मत को आयोग के फैसले का हिस्सा नहीं बनाया जा सकता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि इस मामले में निर्वाचन कानूनों के मुताबिक मौजूदा व्यवस्था के तहत बैठक में किये गये बहुमत के फैसले को ही आयोग का फैसला माना जायेगा।
गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ आचार संहिता के उल्लंघन की शिकायतों के निस्तारण में असहमति का फैसला देने वाले लवासा ने ‘असहमति के मत’ को भी आयोग के फैसले में शामिल करने की मांग की थी।
आयोग का बयान
इस मुद्दे पर करीब दो घंटे तक चली पूर्ण बैठक के बाद आयोग द्वारा जारी संक्षिप्त बयान में कहा गया, ‘‘आचार संहिता के उल्लंघन की शिकायतों के निपटारे की प्रक्रिया के बारे में हुयी बैठक में यह तय किया गया है कि इस तरह के मामलों में सभी सदस्यों के विचारों को निस्तारण प्रक्रिया का हिस्सा बनाया जायेगा। सभी सदस्यों के मत के आधार पर उक्त शिकायत को लेकर कानून सम्मत औपचारिक निर्देश पारित किया जायेगा।’’
सूत्रों के मुताबिक अरोड़ा की अध्यक्षता में हुयी बैठक में सर्वसम्मति से इस व्यवस्था को स्वीकार किया गया।
क्या है मामला?
बता दें कि लवासा ने आचार संहिता के उल्लंघन की शिकायतों के निस्तारण में आयोग के फैसले से असहमति का मत व्यक्त करने वाले सदस्य का पक्ष शामिल नहीं करने पर नाराजगी जतायी थी। लवासा ने पिछले कुछ समय से आचार संहिता के उल्लंघन की शिकायतों के निपटारे के लिये होने वाली आयोग की पूर्ण बैठकों से खुद को अलग कर लिया था।