पर्यावरण के लिए नुकसानदेय माना जाता है कोयला। कोयले के इस्तेमाल से ग्रीन गैसों का उत्सर्जन होता है और वह जलवायू परिवर्तन का एक बड़ा कारण माना जाता है। ऐसे में भारत के लिए एक बड़ी राहत लेकर आ सकती है कार्बन क्लीन टेक्नोलॉजी, जिसमें यह खतरा समाप्त हो जाता है। आने वाले सालों में भारत को इसी राह पर जाना है। ऊर्जा मंत्री पीयूश गोयल की भी इस तकनीक के प्रति खासी दिलचस्पी है। वह खुद अमेरिका में एमआईटी विश्वविद्यालय से इस तकनीक के बारे में बातचीत करने के भी इच्छुक बताए जाते हैं।
इसी क्रम में केंद्र सरकार से बड़ी पहल की मांग की है कार्बन क्लीन सॉल्युशन लिमिटेड (सीसीएलएल) कंपनी ने, जिसे चला रहे हैं आईआईटी खड़कपुर के इंजीनियर अनिरुद्ध शर्मा। देश-विदेश में कई उपलब्धियां हासिल कर चुके अनिरुद्ध का दावा है कि चूंकि भारत में कोयले पर से निर्भरता खत्म नहीं की जा सकती, इसलिए हर हाल में कार्बन क्लीन तकनीक का इस्तेमाल करना चाहिए। आउटलुक से बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि पांच देशों में –अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, नार्वे और नीदरलैंड्स में सफलतापूवर्क पायलेट प्रोजेक्ट चलाने के बाद अब वह भारत में विस्तार के इच्छुक हैं।
गौरतलब है कि शेल और मित्युबिशी के बाद तीसरी कंपनी के तौर पर सीसीएलएल उभरी है, जिसके पास यह तकनीक है और जिसके पास बाकायदा इसका पेटेंट है। अब यह कंपनी भारत में अपने तकनीक का विस्तार करने के लिए प्रयासरत है। केंद्र सरकार से भी इसकी बातचीत चल रही है, जो काफी सार्थक बताई जाती है।
अनिरुद्ध शर्मा ने बताया कि दक्षिण भारत में दो और गुजरात में एक कंपनी के साथ समझौते के बाद यहां से कार्बन से होने वाले सीओ 2 के उत्सर्जन को रोका जाता है। यह कंपनी फैक्टरी में कोयले के इस्तेमाल से निकलने वाली सीओ 2 को हवा में सीधे जाने से रोकती है, चिमनी की मदद से दूसरी जगह ले जाती है और फिर तकनीक की मदद से इस सीओ 2 को किसी कारगर रूप में उतारती है। विशाखापट्टनम में यह कंपनी फैक्ट्री से निकलने वाली सीओ 2 को बैकिंग पाउडर में तब्दील कर रही है।