देश भर में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा 1 अप्रैल से 45 वर्ष और उससे अधिक उम्र वालों का टीकाकरण किया जा रहा है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने देश में चल रहे टीकाकरण अभियान की आलोचना की है। जिसमें एक व्यक्ति की उम्र टीका प्राप्त करने के लिए निर्धारित की गई है।
6 अप्रैल को हुए एक संवाददाता सम्मेलन में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण के सचिव राजेश भूषण ने स्पष्ट किया कि टीकाकरण प्रक्रिया सभी के लिए नहीं खोली जाएगी।
कई स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने सभी का टीकाकरण न करने के फैसले का स्वागत किया। हालांकि, वे कहते हैं कि बड़ी संख्या में 45 साल से कम उम्र की आबादी जो विभिन्न बीमारियों से एक साथ पीड़ित है वो 45 या उससे अधिक उम्र वाले लोगों की तुलना में अधिक असुरक्षित हैं।
प्रसिद्ध एपिडेमियोलॉजिस्ट डॉ जयप्रकाश मुलियाल कहते हैं कि यदि आप लक्षित जनसंख्या का टीकाकरण नहीं करते हैं तो यह जो परिणाम चाहते हैं उसे प्राप्त नहीं कर पाएंगे। टीकाकरण का उद्देश्य लोगों को मृत्यु से बचाना है। उन्होंने आगे कहा कि सरकार किसी भी व्यक्ति का टीकाकरण कर रही है जो उस मानक को पूरा नहीं करता है। ये गलत है। उन्हें ऐसे लोगों की पहचान करनी चाहिए जो स्वास्थ्य के स्तर पर कमजोर हैं और केवल उनका टीकाकरण करना चाहिए।
गुरुग्राम फोर्टिस अस्पताल के क्विनिकल हेमेटोलॉजी विभाग और बोन मैरो ट्रांसप्लांट, डॉ राहुल भार्गव डॉ मुलियाल से सहमत हैं। वे कहते हैं कि एक 30 वर्षीय कैंसर रोगी कोविड-19 के कारण 50 वर्षीय स्वस्थ व्यक्ति की तुलना में अधिक खतरे में है।
वह कहते है कि 45 साल के नीचे के ऐसे लोगों की संख्या बहुत अधिक है, लेकिन वह कैंसर, हृदय रोग, तपेदिक, अस्थमा आदि जैसे रोगों से पीड़ित है। जिन्हें सरकार की ओर से टीकों का लाभ नहीं मिल पा रहा है।
इंडियन पब्लिक हेल्थ एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ संजय राय ने भी यही समान चिंता व्यक्त की है। उनके अनुसार 45 से ऊपर सभी का टीकाकरण एक अनमोल संसाधन की बर्बादी है।
वह कहते हैं कि मैं उन लोगों के टीकाकरण के खिलाफ हूं जो कोविड-19 से उबर चुके हैं। उनमें ऐसे एंटीबॉडी विकसित किए जा चुके हैं जो टीके की मदद से विकसित एक से अधिक समय तक रहेंगे। हमें इसे यहां वहां बर्बाद करने के बजाय कमजोर आबादी पर ध्यान देना चाहिए।
बीमारी की एक विशेष श्रेणी के रोगियों के एक समूह थैलेसीमिया पेशेंट्स एडवोकेसी ग्रुप का कहना है कि सरकार ने इस तथ्य को नजरअंदाज कर दिया है कि 45 से अधिक उम्र के थैलेसीमिया पीड़ित नहीं हैं।
थैलासीमिया मरीजों के अधिवक्ता समूह की सदस्य सचिव अनुभा तनेजा मुखर्जी बताती हैं कि अध्ययनों से पता चला है कि 45 वर्ष की आयु के बाद थैलेसीमिक्स के बीच कुल जीवित रहने की दर 0.74% से कम है। महामारी की स्थिति में इन मरीजों में डर तेज हो गया है। उन्होंने कहा हालांकि सरकार ऐसी कम्यूनिटी की बेहद देखभाल और सुरक्षा कर रही है। सरकार द्वारा आवश्यक कदम भी उठाए गए हैं।