संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप ने कहा कि लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराना पूर्ण रूप से व्यवहारिक है और इसके अनेक फायदे भी हैं। लेकिन यह एकदम से नहीं हो सकता है बल्कि इसपर अमल करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण चुनाव सुधार करने होंगे। उन्होंने कहा कि आजादी के बाद से चार बार दोनों चुनाव साथ-साथ हुए। लेकिन आज स्थिति यह है कि साल भर कोई न कोई चुनाव होते रहते हैं। इससे चुनाव खर्च बढ़ता है, आदर्श आचार संहिता लागू होने से सरकार का कामकाज ठीक ढंग से नहीं आगे बढ़ पाता, विकास कार्य प्रभावित होता है और सरकारी कार्यों पर वोट बैंक हावी रहता है। कश्यप ने कहा कि लोकसभा एवं विधानसभा चुनाव एक साथ कराने के अनेक फायदे हैं। इससे दलों और उम्मीदवारों का खर्च कम होगा, सुशासन स्थापित करने में मदद मिलेगी। ऐसे में राज्य विधानसभा और लोकसभा के चुनाव एक साथ कराए जाएं। जब वयस्क मताधिकार की व्यवस्था है तब अलग-अलग मतदान क्यों।
जाने माने चिंतक के एन गोविंदाचार्य ने कहा कि यह एक ऐसा विचार है जिसके समक्ष कई चुनौतियां हैं। इसमें देश का संघीय स्वरूप एक बड़ा विषय है। इसके साथ ही अविश्वास प्रस्ताव की जगह सकारात्मक विश्वास के प्रस्ताव की व्यवस्था लानी होगी। उन्होंने कहा कि आज धन आधारित राजनीति चुनावी लोकतंत्र के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती है। दलीय जनतंत्र में विधायक मुख्यमंत्री को चुनते हैं लेकिन अब निर्वाचन की बजाए चुनने की व्यवस्था बन गई है और जन अभिमत को नजरंदाज किया जा रहा है। गोविंदाचार्य ने कहा कि संविधान में जन प्रतिनिधि की बात थी, दल प्रतिनिधि की बात नहीं थी। दलों का चुनाव चिन्ह समाप्त होना चाहिए क्योंकि मेरा मानना है कि चुनाव चिन्ह इसलिए जारी किये गए थे क्योंकि तब पढ़े-लिखे लोगों की संख्या कम थी और उनकी सुविधा के लिए चुनाव चिन्ह का प्रावधान किया गया था। उन्होंने कहा कि आज दलों में अच्छे कार्यकर्ता प्रत्याशी बनने से वंचित रह जाते हैं।
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी ने कहा कि बड़े राजनीतिक नेताओं और पार्टियों से जुड़ी लहर का कारक राज्य चुनावों के परिणाम को प्रभावित करता है और इसलिए एक साथ चुनाव कराए जाने से राष्ट्रीय पार्टियों को लाभ होगा हालांकि छोटे क्षेत्रीय दलों के लिए मुश्किल होगी। उन्होंने कहा, एक संघीय संरचना वाले विविधतापूर्ण देश के रूप में एक साथ चुनाव कराने का विचार बहुत अच्छा नहीं है। जिस तरह के लोकतंत्र में हम लोग रह रहे हैं, उसमें छोटे दलों के उदय से मतदाताओं को चुनाव का एक विकल्प मिलता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हाल ही में लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव एकसाथ कराने के विषय पर चर्चा आगे बढ़ाने की वकालत की थी। प्रधानमंत्री ने कहा था कि कोई इसे थोप नहीं सकता लेकिन भारत के एक विशाल देश होने के नाते चुनाव की जटिलताओं और आर्थिक बोझ के मद्देनजर सभी पक्षों को इस पर चर्चा करनी चाहिए। उन्होंने कहा था, लोकसभा और राज्य विधानसभाओं का चुनाव एक साथ कराने पर जितने भी दलों के लोगों से हम मिलते हैं तो व्यक्तिगत बातचीत के दौरान वे इसके पक्ष में बोलते हैं। मैंने भी इस विषय पर बोला है। पर लोग अभी इस बारे में मुखर नहीं हैं।