यह मामला राजस्थान के जयपुर का है। जिसमें याचिकाकर्ता ने 1995 में अपने परिजनों से छुपकर अपनी प्रेमिका से शादी की थी। इसके तुरंत बाद दोनों ने आत्महत्या के लिए कॉपर सल्फेट खा लिया। इस दौरान याचिकाकर्ता तो जिंदा बच गया, लेकिन उसकी 23 वर्षीय पत्नी की मौत हो गई। पुलिस ने उसके खिलाफ प्रेमिका की हत्या का केस दर्ज कर लिया। ट्रायल कोर्ट ने उसे उम्रकैद की सजा सुनाई थी, जिसे राजस्थान हाईकोर्ट ने भी सही ठहराया।
प्यार के बीच में जाति की दीवार
जस्टिस एके सीकरी और जस्टिस अशोक भूषण की बेंच ने कहा, “पीड़िता और आरोपी एक-दूसरे से प्यार करते थे। जाति अलग होने के कारण परिवार शादी को तैयार नहीं था। संभव है कि पहले वह अनिच्छा से माता-पिता की बात मानने को तैयार हो गई हो, लेकिन मौके पर मिले फूल माला, चूड़ियां और सिंदूर संकेत देते हैं कि बाद में उसका मन बदल गया।’ इधर आरोपी ने ट्रायल कोर्ट को बताया था कि वह दोनों आत्महत्या करने जयपुर में एक अंडर कंस्ट्रक्शन बिल्डिंग में गए थे। कॉपर सल्फेट निगलने पर लड़की की हालत बिगड़ी तो उसे अस्पताल पहुंचाया, लेकिन बचा नहीं सके। सुप्रीम कोर्ट ने बयान भरोसे लायक माना।
उस वक्त क्या हुआ था,सिर्फ दो लोग ही जानते हैं
कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता ने ही लड़की की हत्या की हो, उसका कोई सबूत नहीं है। उस वक्त क्या हुआ था, यह सिर्फ दो लोग ही जानते हैं। उनमें से एक की मौत हो चुकी है, जबकि दूसरा जेल में है। कोर्ट ने कहा कि कल्पना के आधार पर आपराधिक मामलों में फैसला नहीं कर सकते हैं। कोर्ट ने व्यक्ति को बरी करते हुए कहा कि पर्याप्त संदेह के बावजूद अभियोजन पक्ष उसका दोष साबित करने में नाकाम रहा।