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निष्पक्षता से हो राज्यपाल के अधिकारों का इस्तेमाल: सुप्रीम कोर्ट

अरुणाचल प्रदेश में राष्ट्रपति शासन के मुद्दे पर सुनाई कर रही सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि किसी मुख्यमंत्री के विशिष्ट अधिकार को राज्यपाल नहीं हड़प सकते। साथ ही अदालत ने कहा कि संविधान में राज्यपालों के सीमित अधिकार हैं जिनका इस्तेमाल लोकतंत्र की अक्षुण्णता सुनिश्चित करने के लिए न्यायोचित और निष्पक्ष तरीके से किया जाना चाहिए।
निष्पक्षता से हो राज्यपाल के अधिकारों का इस्तेमाल: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने अरूणाचल प्रदेश में राजनीतिक संकट की पृष्ठभूमि में राज्यपालों के अधिकारों की विवेचना करते हुए ये टिप्पणियां कीं। न्यायमूर्ति जे एस खेहड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा, संविधान के तहत राज्यपाल को बहुत अधिक अधिकार नहीं है। उन्हें सीमित अधिकार प्राप्त है जिनका इस्तेमाल निष्पक्ष तरीके से करना चाहिए ताकि लोकतंत्र बना रहे। संविधान पीठ ने अरूणाचल प्रदेश विधानसभा के सत्र की तारीख पहले करने के राज्यपाल जे पी राजखोवा के फैसले को चुनौती देने वाली कांग्रेसी नेताओं की याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान ये टिप्पणियां कीं। पीठ ने यह टिप्पणी तब की जब सुनवाई के दौरान कुछ बागी विधायकों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि प्रशासनिक मुखिया होने के नाते राज्यपाल ने अपने विवेक से यही सोचा कि सदन को आहूत करना और फिर कार्यवाही करना एक समाधान हो सकता है।

 

इसपर पीठ ने कहा, यही समस्या है। वह स्वतंत्र रूप से संदेश भेज सकते हैं परंतु संदेश का स्वरूप महत्वपूर्ण है। उन्हें मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद की सलाह लेने की आवश्यकता है। पीठ ने कहा, राज्यपाल कितनी दूर तक कार्रवाई कर सकते हैं, यह सीमित है। द्विवेदी ने कहा कि राज्यपाल संदेश भेज सकते हैं और सदन की बैठक आहूत कर सकते हैं क्योंकि संविधान के तहत उन्हें इसका अधिकार प्राप्त है। इस पर पीठ ने टिप्पणी की कि यह सदन के विधायी कार्य में हस्तक्षेप है। न्यायालय ने कहा कि राज्यपाल को अपनी मर्जी से मुख्यमंत्री नबाम तुकी सरकार को बहुमत सिद्ध करने के लिए विधान सभा सत्र आहूत करने का अधिकार नहीं है। राज्यपाल उस अधिकार का इस्तेमाल नहीं कर सकते जो पूरी तरह से संविधान ने मुख्यमंत्री को प्रदान कर रखी है। इस पर द्विवेदी ने कहा कि अध्यक्ष के संदेह के घेरे में होने के कारण उत्पन्न परिस्थितियों में राज्यपाल के लिए विधानसभा का सत्र बुलाने का निर्णय ही सिर्फ संभावित समाधान था।

 

न्यायालय ने विधान सभा के स़त्र की बैठक 14 जनवरी की बजाय पिछले साल 16 दिसंबर से तीन दिन के लिए बुलाने के राज्यपाल के निर्णय पर भी सवाल उठाया और जानना चाहा कि यदि पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार ही सत्र की बैठक होती तो क्या फर्क पड़ता। पीठ ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 175 के अंतर्गत राज्यपाल के अधिकार सीमित हैं। संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर, न्यायमूर्ति पी सी घोष और न्यायमूर्ति एन वी रमण शामिल हैं। 

 

 

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