सीबीआई के वकील सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता सोमवार को उस समय पसोपेश में पड़ गए, जब तृणमूल नेताओं-मंत्रियों के मामले की सुनवाई कर रही पांच जजों की बेंच ने उनसे यह पूछ लिया कि, “सात साल तक जांच चली, तब अभियुक्तों को गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया? चार्जशीट फाइल करने के बाद अचानक गिरफ्तारी की जरूरत क्यों पड़ी?” मेहता इसका सटीक जवाब नहीं दे सके। उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि जिस तरह नेताओं- मंत्रियों की गिरफ्तारी का विरोध हो रहा है, उसे देखते हुए मामला कोर्ट के सामने लाना उचित जान पड़ा। विरोध दिखाकर जांच प्रक्रिया में बाधा दी गई, क्या यह विषय विवेचना का नहीं हो सकता? इन नेताओं-मंत्रियों को 17 मई को गिरफ्तार किया गया था। मंत्री फिरहाद हाकिम की तरफ से अभिषेक मनु सिंघवी, विधायक मदन मित्र और कोलकाता के पूर्व मेयर शोभन चटर्जी के लिए सिद्धार्थ लूथरा और मंत्री सुब्रत मुखर्जी के लिए कल्याण बनर्जी मुकदमा लड़ रहे हैं। अगली सुनवाई बुधवार को होगी।
सोमवार सुबह सुनवाई शुरू हुई तो सीबीआई के वकील सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इसे एक दिन टालने का अनुरोध किया। कहा कि जांच एजेंसी ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष याचिका दायर की है। अभियुक्तों के वकील अभिषेक मनु सिंघवी और कल्याण बनर्जी ने इसका विरोध किया। कहा कि जब मामले को जरूरी बताया गया तो सुनवाई टालने के लिए क्यों कहा जा रहा है। मेहता ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट क्या निर्णय देगा अभी यह कहना मुश्किल है।
लेकिन बेंच ने कहा कि पश्चिम बंगाल में या तूफान की आशंका है। आने वाले दिनों में कोर्ट को इससे जुड़े मामलों की भी सुनवाई करनी पड़ सकती है। जस्टिस हरीश टंडन ने सवाल किया कि डिवीजन बेंच ने हाउस अरेस्ट का निर्देश दिया था और सीबीआई ने उसका विरोध किया। क्या इसी वजह से सुप्रीम कोर्ट में आवेदन किया गया है?
अभियुक्तों के एक और वकील सिद्धार्थ लूथरा ने कहा कि नेताओं-मंत्रियों की गिरफ्तारी में कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया, सीबीआई इस बात पर बहस से बचना चाहती है। जवाब में मेहता बोले “मुख्यमंत्री कह रही हैं मुझे भी गिरफ्तार करो। क्या यह भी कानून के मुताबिक था। मुझे लगता है कि ये सब बातें उठाकर हमें सड़क-छाप झगड़े के स्तर तक नहीं उतरना चाहिए।”
उसके बाद कोर्ट ने मेहता से कहा कि हम पूरी बात विस्तार से जानना चाहते हैं। मेहता ने कहा कि मुख्यमंत्री सीबीआई दफ्तर में बैठ गईं। बाहर जनता ईंटें बरसा रही थी। अभियुक्तों को कोर्ट में लाया जाना था लेकिन हालात को देखते हुए वर्चुअल माध्यम से ही सुनवाई करनी पड़ी।
मेहता ने कहा, सीबीआई केवल जमानत रद्द नहीं करना चाहती बल्कि निजाम पैलेस के बाहर जिस तरह से विरोध प्रदर्शन हुआ उसे देखते हुए मामला दूसरी जगह स्थानांतरित करने की भी अर्जी दी गई है, क्योंकि ऐसी परिस्थिति भविष्य में भी उत्पन्न हो सकती है।
सिंघवी ने कहा कि जमानत पर स्थगन आदेश देने से पहले अभियुक्तों की बात ना सुनना क्या अच्छा विचार माना जाएगा। सीबीआई अदालत में जो मुद्दे उठा रही है उसका 95% आधारहीन है। सीबीआई की बात सुनकर लग रहा है कि यदि आज हमें सीबीआई के अधीन रहना पड़ता तो कोलकाता में मार्शल लॉ लग जाता।
इस पर सिंघवी बोले, सीबीआई कह रही है कि हालात को देखते हुए वर्चुअल माध्यम से विशेष अदालत को सुनवाई करनी पड़ी। क्या उस अदालत के जस्टिस ने कोई असंतोष व्यक्त किया है? अगर नहीं तो अभियुक्तों को सशरीर कोर्ट में ना लाए जाने को ही कारण क्यों बनाया जा रहा है? सिर्फ राज्यपाल की अनुमति से गिरफ्तारी की गई, स्पीकर की अनुमति नहीं ली गई। यह गणतंत्र की गिरफ्तारी है।