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सुप्रीम कोर्ट करेगा फैसला, कौन करेगा एनजेएसी कानून की वैधता पर सुनवाई

न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली की जगह लेने वाले कानून की संवैधानिक वैधता पर सुनवाई के लिए गठित संविधान पीठ के समक्ष आज हितों के टकराव और पक्षपात का मुद्दा एक बार फिर उठा।
सुप्रीम कोर्ट करेगा फैसला, कौन करेगा एनजेएसी कानून की वैधता पर सुनवाई

मामले के पक्षों में से कुछ ने न्यायमूर्ति जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ के नेतृत्व का मुद्दा उठाया। इस पर न्यायालय ने कहा कि विवादित कानून के गुण दोष पर गौर करने से पहले वह इस मुद्दे को सुलझाएगा कि शीर्ष अदालत के कौन से न्यायाधीश इस पर सुनवाई कर सकते हैं। न्यायमूर्ति खेहर ने कहा कि इस मामले की सुनवाई करने की उनकी कोई इच्छा नहीं है। उन्होंने कहा कि वह इस तथ्य के मद्देनजर इसकी सुनवाई कर रहे थे कि न्यायमूर्ति एआर दवे के सुनवाई से अलग हो जाने के बाद प्रधान न्यायाधीश द्वारा गठित नई पीठ का उन्हें हिस्सा बनाया गया।

उन्होंने कहा कि जिस समय पीठ की अध्यक्षता तृत्व करने के लिए उनके नाम का फैसला किया गया था, उन्होंने तभी प्रधान न्यायाधीश को पत्र लिखकर सूचित किया था कि वह मामले को अंतिम रूप से सुने जाने और इस पर फैसला होने तक राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) या कॉलेजियम का हिस्सा नहीं होंगे। पीठ ने मामले की सुनवाई बुधवार तक टालते हुए कहा, हमें निर्णय करना चाहिए कि इसकी सुनवाई कौन करेगा। इस पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति जे. चेलमेश्वर, मदन बी लोकुर, कुरियन जोसेफ और आदर्श कुमार गोयल शामिल हैं।

न्यायालय ने कहा, यह बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दा है और हम इसे लंबित नहीं रख सकते। हम इस संबंध में आदेश पारित करेंगे कि कौन इस मामले की सुनवाई करेगा। इस मामले की सुनवाई शुरू होते ही वकीलों में से एक मैथ्यूज जे नेदुंपारा ने न्यायमूर्ति खेहर की अध्यक्षता में सुनवाई होने पर हितों के टकराव का मसला उठाया और कहा कि वह कॉलेजियम के सदस्य रह चुके हैं। उच्चतम न्यायालय एडवोकेट आन रिकार्ड एसोसिएशन का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता फली नरिमन ने सुझाव दिया कि इस मामले की सुनवाई प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ कर सकती है।

इसमें दो वरिष्ठतम न्यायाधीशों के साथ प्रधान न्यायाधीश की पसंद के दो न्यायाधीशों को शामिल किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि वह अपनी आपत्ति वापस ले रहे हैं। इसके बाद न्यायालय ने इस मसले पर अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी की राय मांगी। रोहतगी ने कहा कि सबसे उत्तम स्थिति तो यही रहेगी कि न्यायमूर्ति दवे को पीठ में वापस लाया जाये क्योंकि इसमे हितों का टकराव नहीं था। रोहतगी ने कहा, अधिक समय न्यायाधीश एक ही मुद्दों पर प्रशासनिक और न्यायिक पक्ष में फैसला करते हैं। वरिष्ठ अधिवक्ता के के वेणुगोपाल ने भी कहा कि इस मामले की सुनवाई करने से न्यायमूर्ति दवे को हटने का आग्रह करना बहुत ही अनुचित था।

वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने भी किसी मामले विशेष की सुनवाई करने से न्यायाधीश के हटने की बढती प्रवृत्ति का विरोध किया। वह दूसरे वकीलों की इस राय से सहमत थे कि हितों के टकराव और दुराग्रह के आधार पर न्यायाधीशों के हटने के लिए कुछ सिद्धांत और मानदंड बनाए जाने की आवश्यकता है। न्यायाधीशों ने वरिष्ठ अधिवक्ता के पराशरण, राजीव धवन और अन्य वकीलों को धैर्यपूर्वक सुना और कहा, यह मुद्दा (एनजेएसी) बहुत ही महत्वपूर्ण है और इसका समाधान करना होगा। परंतु यदि हम इन तमाम मुद्दों में उलझेंगे तो सब कुछ विलंब से होगा।

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