मद्रास हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति कर्णन ने अपने तबादले के सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर स्वत: संज्ञान लेते हुए उसपर रोक लगा दिया। कर्णन ने अपने आदेश में 1993 की न्यायमूर्ति एस. रत्नावेल पांडियन की अध्यक्षता वाली उच्चतम न्यायालय के नौ न्यायाधीशों की पीठ के फैसले का हवाला दिया और कहा कि इसके अतिरिक्त प्रधान न्यायाधीश का आदेश प्रशासनिक आदेश के रूप में निर्देशात्मक है। उन्होंने आदेश का जिक्र करते हुए कहा कि वह प्रधान न्यायाधीश के 12 फरवरी 2016 के आदेश पर स्थगन लगा रहे हैं जिसमें उनका तबादला कलकत्ता उच्च न्यायालय में किया गया है। न्यायमूर्ति कर्णन ने प्रधान न्यायाधीश से यह भी आग्रह किया है कि वह 29 अप्रैल तक अपने अधीनस्थ के मार्फत मुद्दे पर लिखित बयान दाखिल करें। तब तक यह अंतरिम आदेश लागू होगा। आदेश में उन्होंने प्रधान न्यायाधीश से आग्रह किया कि वह उनके न्यायक्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं करें।
वहीं उच्चतम न्यायालय ने आज मद्रास उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से कहा कि वह विवादास्पद न्यायाधीश न्यायमूर्ति सीएस कर्णन को कोई न्यायिक कार्य न दें जिनका कलकत्ता उच्च न्यायालय में तबादला हुआ है। शीर्ष अदालत ने यह आदेश मद्रास उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार के आवेदन पर दिया जो मुख्य न्यायाधीश के निजी सचिव भी हैं। उन्होंने न्यायमूर्ति कर्णन को कोई न्यायिक कार्य करने से रोकने का आदेश मांगा। उच्चतम न्यायालय ने वरिष्ठ अधिवक्ता केके वेणुगोपाल द्वारा दायर आवेदन का उल्लेख किया जिसमें कहा गया है कि न्यायमूर्ति कर्णन ने तबादला आदेश मिलने पर, स्वत: संज्ञान से अपने तबादले के खिलाफ आदेश पारित करने का फैसला किया और मामले को आज के लिए सूचीबद्ध किया था।
इस अभिवेदन का संज्ञान लेते हुए न्यायमूर्ति जेएस खेहड़ और न्यायमूर्ति आर भानुमति की पीठ ने कहा, हम उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को इस बात की अनुमति देने को न्यायसंगत एवं उचित मानते हैं कि न्यायमूर्ति कर्णन को कोई न्यायिक कार्य न सौंपा जाए। वेणुगोपाल ने उच्चतम न्यायालय को सूचित किया कि न्यायमूर्ति कर्णन ने प्रधान न्यायाधीश से जवाब मांगते हुए पहले ही एक आदेश पारित कर दिया है। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि वह बाद में आज अपने आदेश को अद्यतन करते हुए इसका ख्याल रखेगा। कानून के तहत उच्चतम न्यायालय की बात छोड़ें, कोई निचली अदालत किसी ऊपरी अदालत का आदेश नहीं बदल सकती।