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पहली बार कब चर्चा में आया था हिममानव ‘येति’

‘येति’(Yeti) यानी ‘हिममानव ‘ एक बार फिर सुर्खियों में है। इस बार भारतीय सेना ने उनके पैरों के निशान...
पहली बार कब चर्चा में आया  था हिममानव ‘येति’

‘येति’(Yeti) यानी ‘हिममानव ‘ एक बार फिर सुर्खियों में है। इस बार भारतीय सेना ने उनके पैरों के निशान देखने का दावा किया है। इस दावे की पुष्टि के लिए सेना ने तस्वीरें भी साझा की हैं। येति का अस्तित्व हजारों सालों से दुनिया के लिए रहस्य बना हुआ है। कई बार इस प्राणी को देखे जाने की बात की जाती रही है। कई पुस्तकों, फिल्मों और किवदंतियों में इसका उल्लेख किया जाता रहा है।

नेपाल,  चीन,  भारत,  मंगोलिया में येति की चर्चा रही है। माना जाता है कि यह हमेशा घने जंगलों और पहाड़ों में रहता है। जितने लोगों ने भी इसे देखने का दावा किया है वे इसे सामान्य आदमी से लंबा, पूरा शरीर बालों से भरा हुआ, भालू और बंदर जैसे चेहरा वाला बताते हैं।

पहली बार कब आया चर्चा में?

1832 में  जेम्स प्रिन्सेप के जर्नल ऑफ द एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल ने पर्वतारोही बीएच हॉजसन के उत्तरी नेपाल में उनके अनुभव के ब्यौरे को प्रकाशित किया। उनके स्थानीय गाइडों ने एक लम्बे, दो पैरों वाले प्राणी देखा जो लम्बे काले बालों से ढंका था। हॉजसन ने यह निष्कर्ष निकाला कि यह एक ‘वनमानुष’ था।

इस तरह के पदचिह्नों का प्रारंभिक रिकॉर्ड 1889 में लॉरेंस वाडेल के अमंग द हिमालयाज़ में दिखाई दिया। वाडेल ने अपने गाइड द्वारा दी गई निशान छोड़कर जाने वाले एक विशाल वानर जैसे प्राणी की जानकारी दी जिसे वाडेल ने किसी भालू के पैरों का निशान समझा। वाडेल ने दो पैरों वाले वानर जैसे प्राणियों की कहानियां सुनी थी लेकिन उन्होंने लिखा कि पूछताछ किए गए कई गवाहों में से "कभी कोई... एक भी प्रामाणिक विवरण नहीं दे सके।

1950 के दशक में येति को लेकर पश्चिमी लोगो की रुचि में इजाफा हुआ। नतीजतन कई खोजकर्ताओं ने इस दिशा में काम शुरू किया। 1951 में माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने का प्रयास करते समय एरिक शिप्टन ने सागर तल से लगभग 6,000 मी॰ (20,000 फीट) ऊपर बर्फ में अनगिनत बड़े-बड़े निशानों की तस्वीरें ली। ये तस्वीरें गहन जांच और बहस का विषय रही हैं।

1953 में सर एडमंड हिलेरी और तेनज़िंग नोर्गे ने माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने के वक्त बड़े-बड़े पदचिह्नों को देखने की बात कही। तेनजिंग का मानना था कि येति एक विशाल वानर था और हालांकि इसे उन्होंने खुद कभी नहीं देखा था, उनके पिताजी ने दो बार इसे देखा था।

येति के कई नाम

येति के अलावा तिब्बती इसे  मेह-तेह यानी "मानव-भालू" ड्ज़ु-तेह यानी मवेशी-भालू , मिगोई या मी-गो "जंगली मानव" आदि कहते हैं। नेपालियों के पास भी येति के लिए कई नाम हैं, जैसे - बन-मंचे जिसका मतलब "वनमानुष" है और "कांगचेंजुन्गा राचीस" जिसका अर्थ "कंचनजुंगा का दानव" है।

क्या कहते हैं जानकार?

येति को लेकर कई तरह की मान्यताएं रही हैं। कई लोग इसे एक किस्म का बंदर तो कई इसे भालू मानते हैं। कुछ लोगों का मानाना है कि ये कथित प्राणी विलुप्त दैत्याकार वानर जाइगनटोपिथेकस के आधुनिक नमूने हो सकते हैं।

कुछ साल पहले रिसर्चर्स की टीम को हिमालयन येति (हिममानव) के बालों के गुच्छे मिले। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के ब्रायन साइक्स के मुताबिक, बालों का यह गुच्छा 40 हजार साल पुरानी प्रजाति वाले पोलर बियर के हैं।

जबकि यूनिवर्सिटी ऑफ कनसास के एलिसर गुतिरेज की रिसर्च टीम का कहना है कि ये बाल भूरे रंग वाले भालू के हैं, जो आमतौर पर हिमालय में मिलते हैं।

2004 में प्रतिष्ठित जर्नल नेचर के सम्पादक हेनरी गी ने यह लिखते हुए यति का उल्लेख एक किंवदंती के एक उदाहरण के तौर में किया जो और ज्यादा अध्ययन के लायक है।

 

 

 

 

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