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चाय बेचते-बेचते हिंदी सीखी, इसकी ताकत जानता हूं: मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भोपाल में 10वें विश्व हिन्दी सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए कहा कि भाषा की भक्ति बहिष्कृत करने वाली नहीं होनी चाहिए बल्कि यह सम्मिलित करने वाली होनी चाहिए। हिंदी उनकी मातृभाषा नहीं है लेकिन उन्‍हें हिंदी की ताकत का अहसास है। हिंदी के बिना आज वह यहां तक नहीं पहुंचते।
चाय बेचते-बेचते हिंदी सीखी, इसकी ताकत जानता हूं: मोदी

अपने हिंदी सिखने के अनुभव के बारे में बताते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, मुझे चाय बेचते-बेचते हिंदी सीखने का अवसर मिल गया। क्योंकि मेरे गांव में उत्तर प्रदेश के दूध व्यापारी किसानों से भैंस लेने के लिए आया करते थे। मैं उन्‍हें चाय बेचने जाता था। उनको गुजराती नहीं आती थी, मुझे हिंदी जाने बिना चारा नहीं था, तो चाय ने मुझे हिंदी सिखा दी थी। भाषाओं को बचाने की जरूरत पर जोर देते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि हर पीढ़ी का ये दायित्व बनता है कि उसके पास जो विरासत है, उस विरासत को सुरक्षित रखा जाए, हो सके तो संजोया जाए। 

मोदी ने कहा, उनकी मातृभाषा हिंदी नहीं गुजराती है। लेकिन अगर उन्‍हें हिंदी भाषा बोलना न आता, समझना न आता, तो उनका क्या हुआ होता, वह लोगों तक कैसे पहुंचते। इस भाषा की ताकत का उन्‍हें अंदाज है। हमारे देश में हिंदी भाषा का आंदोलन ज्यादातर उन लोगों ने चलाया है, जिनकी मातृभाषा हिंदी नहीं थी। सुभाषाचंद्र बोस हो, लोकमान्य तिलक हो, महात्मा गांधी हो, काका साहेब कालेलकर हो, राजगोपालाचार्य हो, सबने हिंदी भाषा के लिए जो दीर्घ दृष्टि से काम किया था, वह हमें प्ररेणा देता है। आचार्य विनोबा भावे, दादा धर्माधिकारी जैसे गांधीवादियों ने भाषा और लिपि दोनों की ताकत को पहचाना था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय भाषाओं के बीच समन्‍वय पर जोर देते हुए कहा कि निरंतर प्रयास रहना चाहिए कि हमारी हिंदी भाषा समृद्ध कैसे बने। क्या कभी हम हिंदी और तमिल भाषा की कार्यशाला करें और तमिल भाषा में जो अद्धभुत शब्द हो, उसको हम हिंदी भाषा का हिस्सा बना सकते हैं क्या? हम कभी बांग्ला भाषा और हिंदी भाषा के बीच वर्कशॉप करें और बांग्ला के पास, जो अद्भभुत शब्द-रचना हो, अद्भभुत शब्द हो, जो हिंदी के पास न हो क्या हम उनसे ले सकते हैं? 

हिंदी के प्रसार में सिनेमा के योगदान की चर्चा करते हुए मोदी ने कहा कि फिल्‍म इंडस्‍ट्री ने पूरी दुनिया में हिंदी को पहुंचाने का काम किया है। मध्‍य एशिया में आज भी बच्चे हिंदी फिल्मों के गीत गाते हैं। डिजिटल युग में भाषा के विकास के बारे में उन्‍होंने कहा, विशेषज्ञ बता रहे हैं कि आने वाले दिनों में डिजिटल दुनिया में तीन भाषाओं का दबदबा रहने वाला है – अंग्रेजी, चाइनीज़, हिन्‍दी। जो भी तकनीक से जुड़े हुए लोग हैं उन सबका दायित्‍व बनता है कि हम भारतीय भाषाओं को तकनीक के अनुरूप ढालें। जितना तेजी से इस क्षेत्र में काम करने वाले एक्‍सपर्ट हमारी स्‍थानीय भाषाओं से लेकर हिन्‍दी भाषा के नए सॉफ्टवेयर और एप्‍स लाएंगे, यह अपने आप में भाषा एक बहुत बड़ा बाजार बनने वाला है। उन्होंने कहा कि 21 वीं सदी के अंत तक दुनिया की 6,000 में से 90 प्रतिशत भाषाएं लुप्त हो सकती हैं। एेसे में हमें अपनी भाषाओं के संरक्षण और उन्हें बढ़ावा देने के गंभीर प्रयास करने होंगे।

भारत में 32 साल बाद हो रहे विश्व हिन्दी सम्मेलन में लगभग 40 देशों के प्रतिनिधि हिस्सा ले रहे हैं। तीन दिवसीय सम्मेलन के उद्घाटन समारोह में मोदी के अलावा विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्राी शिवराज सिंह चौहान, पश्चिम बंगाल के राज्यपाल केशरीनाथ त्रिापाठी, गोवा की राज्यपाल मृदुला सिन्हा, केन्द्रीय मंत्रियों में रविशंकर प्रसाद, हर्षवर्धन, वीके सिंह, किरण रिजिजू, और माॅरीशस की शिक्षा मंत्री लीला देवी उपस्थित थीं।

 

 

 

 

 

 

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