उच्च न्यायालय ने यह तीखी टिप्पणी तब की जब सरकार के वकील इस मामले में फैसला सुनाए जाने तक वर्तमान स्थिति बनाए रखने के संबंध में एक हलफनामा देने में नाकाम रहे।
लगातार चौथे दिन सुनवाई जारी रखते हुए अदालत ने केंद्र को यह भी कहा कि वह अपदस्थ मुख्यमंत्री हरीश रावत की राष्ट्रपति शासन लागू किए जाने को चुनौती देने तथा सदन में शक्ति परीक्षण सुनिश्चित करने की मांग कर रही याचिका पर विचार करने की अनुमति दे सकती है। मुख्य न्यायमूर्ति के एम जोसेफ और न्यायमूर्ति वी.के. बिष्ट की एक पीठ ने कहा, क्या हमें स्थगन के लिए सात अप्रैल को दिए गए उनके आवेदन पर विचार करना चाहिए? उम्मीद की जाती है कि फैसला सुनाए जाते तक केंद्र सरकार (अनुच्छेद) 356 को वापस नहीं लेगी। अगर आप 356 को वापस लेते हैं तथा किसी और को सरकार बनाने के लिए कहते हैं तो यह कुछ और नहीं बल्कि न्याय का उपहास होगा।
इससे पहले केंद्र के वकील ने कहा कि केंद्र यह आश्वासन देने की स्थिति में नहीं है कि सरकार राष्ट्रपति शासन लागू करने के अपने फैसले में एक सप्ताह तक फेरबदल नहीं करने पर विचार करेगी। पीठ ने सरकार के वकील को दिशानिर्देश लेने के लिए कुछ समय भी दिया। पीठ ने कहा अन्यथा आप हर राज्य में एेसा कर सकते हैं। 10 से 15 दिन के लिए राष्ट्रपति शासन लागू करेंगे और फिर किसी दूसरे को शपथ लेने के लिए कहेंगे। गुस्से से अधिक हमें इस बात की पीड़ा है कि आप इस तरह का आचरण कर रहे हैं। सर्वोच्च प्राधिकार ... भारत सरकार ... इस तरह का आचरण कर रही है। आप अदालत के साथ खेल करने की सोच भी कैसे सकते हैं?
केंद्र से पीठ ने सवाल किया अगर हम याचिका को विचार की अनुमति दें तो क्या होगा। तब चीजें पहले की तरह हो जाएंगी जैसी की राष्ट्रपति शासन लागू किए जाने के पहले थीं और राज्य सरकार को सदन में शक्ति परीक्षण से केवल बहुमत साबित करना होगा। क्या आप इस पर भी आपत्ति जता सकते हैं।