Advertisement

आईआईटी कानपुर तय करेगा कि फैज की कविता ‘लाजिम है कि हम भी देखेंगे’ हिंदू विरोधी है या नहीं

क्या फैज अहमद फैज की कविता 'हम देखेंगे लाजिम है कि हम भी देखेंगे' हिंदू विरोधी है? अब इस बात की जांच के लिए...
आईआईटी कानपुर तय करेगा कि फैज की कविता ‘लाजिम है कि हम भी देखेंगे’ हिंदू विरोधी है या नहीं

क्या फैज अहमद फैज की कविता 'हम देखेंगे लाजिम है कि हम भी देखेंगे' हिंदू विरोधी है? अब इस बात की जांच के लिए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान-कानपुर (आईआईटी) ने एक समिति गठित की है, जो यह तय करेगी कि फैज की यह कविता हिंदू विरोधी है या नहीं। दरअसल, फैकल्टी सदस्यों की शिकायत पर यह समिति गठित की गई है। फैकल्टी के सदस्यों ने कहा था कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान छात्रों ने यह 'हिंदू विरोधी गीत' गाया था।

समिति इसकी भी जांच करेगा कि क्या छात्रों ने शहर में जुलूस के दिन निषेधाज्ञा का उल्लंघन किया? क्या उन्होंने सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक सामग्री पोस्ट की और क्या फैज की कविता हिंदू विरोधी है?

अंतिम पंक्ति ने खड़ा किया विवाद

कविता इस प्रकार है, 'लाजिम है कि हम भी देखेंगे, जब अर्ज-ए-खुदा के काबे से। सब बुत उठाए जाएंगे, हम अहल-ए-वफा मरदूद-ए-हरम, मसनद पे बिठाए जाएंगे। सब ताज उछाले जाएंगे, सब तख्त गिराए जाएंगे। बस नाम रहेगा अल्लाह का। हम देखेंगे।' जानकारी के मुताबिक, इसकी अंतिम पंक्ति ने विवाद खड़ा कर दिया है।

फैकल्टी सदस्यों ने कहा है कि "आयोजकों और मास्टरमाइंड की पहचान की जानी चाहिए और तुरंत निष्कासित कर दिया जाना चाहिए।" पंद्रह अन्य छात्रों ने भी प्रदर्शनकारी छात्रों के खिलाफ प्रोफेसर द्वारा दायर शिकायत पर हस्ताक्षर किए हैं।

पाकमें जिया-उल-हक के विरोध में लिखी गई थी ये कविता

यह कविता फैज ने 1979 में सैन्य तानाशाह जिया-उल-हक के संदर्भ में लिखी थी और पाकिस्तान में सैन्य शासन के विरोध में लिखी थी। फैज अपने क्रांतिकारी विचारों की वजह से जाने जाते थे और इसी कारण वे कई सालों तक जेल में रहे।

क्या बोले छात्र?

गौरतलब है कि आईआईटी-के के छात्रों ने जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्रों के समर्थन में 17 दिसंबर को परिसर में शांतिमार्च निकाला था और मार्च के दौरान उन्होंने फैज की यह कविता गाई थी। आईआईटी-कानपुर के स्टूडेंट मीडिया पोर्टल पर प्रकाशित एक लेख में, छात्रों ने स्पष्ट किया कि विरोध के दिन वास्तव में क्या हुआ था और उनके नारे को 'सांप्रदायिक और भ्रामक' मोड़ दिया गया। उन्होंने कहा कि उन्होंने जामिया के छात्रों पर पुलिस की कार्रवाई के संदर्भ में फैज कविता की कुछ पंक्तियां पढ़ी हैं।

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोर से
Advertisement
Advertisement
Advertisement
  Close Ad