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लॉकडाउन में कोई गुजरात से पैदल चलकर पहुंच गया असम तो मां ने बेटे के लिए चलाई 1,400 किमी. स्कूटी

देश में कोरोनावायरस के बढ़ते संक्रमण के बीच लगाए गए लॉकडाउन के बावजूद कई प्रवासी मजदूर काफी जद्दोजहद...
लॉकडाउन में कोई गुजरात से पैदल चलकर पहुंच गया असम तो मां ने बेटे के लिए चलाई 1,400 किमी. स्कूटी

देश में कोरोनावायरस के बढ़ते संक्रमण के बीच लगाए गए लॉकडाउन के बावजूद कई प्रवासी मजदूर काफी जद्दोजहद करके अपने घर लौट रहे हैं। कोई पैदल तो कोई खुद का रिक्शा खींचता हुआ घर तक का सफर तय कर रहा है। इतना ही नहीं, कई बार लाेग ट्रकों और एंबुलेंस के जरिए अपने गृह राज्य तक पहुंचने की कोशिश करते हुए देखे गए। पुलिस इन मजदूरों पर डंडा भी चलाती है, लेकिन फिर भी ये किसी तरह अपने घर, अपने गांव और अपने परिवारवालों के बीच वापस लौटना चाहते हैं। लॉकडाउन के बीच न सिर्फ मजदूर ही बल्कि कई और ऐसी ही घटनाएं सामने आईं हैं जिसमें सरकार की सख्ती के बीच बुजुर्ग माता-पिता को कार या स्कूटी से हजारों किलोमीटर की दूरी तय करने पर मजबूर कर दिया। 

जानते हैं कुछ ऐसी ही घटनाओं के बारे में जहां काफी जद्दोजहद के बाद मजदूर अपने घर लौट सके, मां हजारों किलोमीटर की दूरी तय कर अपने बेटे को घर ला पाई और बुजुर्ग मां-बाप को सड़क मार्ग से बेंगलूरू जाने पर मजबूर होना पड़ा।

25 दिनों में गुजरात से असम पहुंचा प्रवासी मजदूर

लॉकडाउन के बीच अपने गांव लौटने वाले मजदूर हैं जादव गोगोई, जो गुजरात से असम 25 दिनों में पहुंचे। दरअसल, लॉकडाउन के दौरान कामधंधा ठप होने के बाद जब रोजी-रोटी कमाने का कोई साधन नजर नहीं आया तो जादव गोगोई ने वापस अपने घर लौटने का फैसला किया। न सिर्फ गोगोई ने ही बल्कि उनके कुछ और साथी मजदूरों ने भी अहमदाबाद के पास चंडोला से अपने गांव लौटने का फैसला किया। चंडोला से 25 मार्च को पैदल निकलने के बाद गोगोई सोमवार को यानी 20 अप्रैल को अपने गांव पहुंच गया। कभी पैदल तो कभी बस से.जैसे-तैसे भूखे प्यासे वो अपने घर लौट ही गया। घर पहुंचने के लिए गोगोई ने कभी पैदल, कभी बस तो कभी ट्रक का सहारा लिया।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, गोगोई के एक रिश्तेदार ने बताया, 'उसने यूपी पहुंचकर मुझे फोन किया और कहा कि वो बिहार जाने के लिए बस ले रहा है और फिर वो पैदल अपने गांव पहुंच जाएगा। मैंने कहा ये 1000 किलोमीटर की दूरी है इसके अलावा लॉकडाउन भी है ऐसे में आना खतरनाक होगा।' लेकिन गोगई नहीं माना। इसके बाद 13 अप्रैल को गोगोई ने घर कॉल करके बताया कि वो असम के बारपेटा पहुंच गए हैं। यहां से उनके घर की दूरी करीब 300 किलोमीटर थी। 19 अप्रैल को जब गोगोई अपने गांव से 45 किलोमीटर दूर पहुंचे तो परिवारवालों ने पुलिसवालों को बताया। इसके बाद एक कार भेजकर उन्हें वहां से लाया गया।

ठेला चलाकर दिल्ली से बेगूसराय पहुंच गए तीन दोस्त

कोरोना संकट के बाद हुए लॉकडाउन ने कई मजदूरों के समक्ष रोजी-रोटी की समस्या पैदा कर दी और मजबूरन लोग अपने-अपने साधनों से दिल्ली को छोड़ घरों का रुख करने लगे। कुछ ऐसी ही कहानी है बिहार के तीन मजदूर वर्ग के दोस्तों की, जो ठेला चलाकर दिल्ली से अपने घर बिहार के बेगूसराय पहुंच गए।

दिल्ली से घर वापसी के लिए ये तीनों दोस्त बारी बारी करके 120 किलोमीटर ठेला चलाता रहा ताकि किसी तरह समय रहते घर पहुंचा जा सके। ठेले पर ही कुछ आवश्यक सामान रखकर 12 सौ किलोमीटर की दूरी तय करने की इन दोस्तों ने ठान ली। ठेला चला कर घर वापस पहुंचने वाले मजदूरों ने आपस में बारी बारी से ठेला चलाया। कभी किसी ने ठेले पर ही सोकर आराम किया तो कभी कहीं सड़क किनारे रुक कर।

 

 मीडिया रिपोर्ट्स के मुताहिक, मजदूरों का कहना है कि यदि उन्हें दिल्ली में खाने-पीने का आश्वासन स्थानीय प्रशासन और सरकार देती तो वे कभी इतनी मेहनत कर वापस अपने घर नहीं लौटते। घरवालों से उनकी मोबाइल पर लगातार बात हो रही थी लेकिन 3 दिनों तक काफी दिक्कतों का सामना करने के बाद ठेले से ही वापस घर जाने का निर्णय लेना पड़ा।

नौ दिनों तक ठेला चलाकर घर पहुंचा मजदूर

बिहार की ही एक ऐसी घटना है जब दिल्ली के सदर बाजार में एक कुली के रूप में काम करने वाले 38 वर्षीय मजदूर ने नौ दिनों तक ठेला चलाकर 1,180 किलोमीटर का सफर तय किया और दिल्ली से नेपाल के नजदीक अपने गांव पहंचे।

मीडिया से बातचीत में इस मजदूर ने बताया कि वह दो कंबल, अपना नोकिया फोन और चार्जर, पानी भरने के लिए एक जग और 700 रुपये लेकर निकल पड़ा। उसने बताया कि उसके पास घर जाने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं था। वह 22 मार्च यानी जनता कर्फ्यू वाले दिन निकल गया। मजदूर ने बताया कि एक दिन के लॉकडाउन से सब ठीक था लेकिन जब इसकी अवधि बढ़ाने की बात सामने आई तो लगा कि ऐसे में यहां जीवित नहीं रह पाउंगा। अगर हम कमाएंगे नहीं, तो खाएंगे क्या। 26 मार्च को पता चला कि लॉकडाउन पूरे देश में लागू हो गया है और घर पहुंचने पर भी कोई काम नहीं होगा। लेकिन इस बीच घर पहुंचकर कम से कम दो वक्त का खाना तो नसीब होगा।

कर्नल बेटे के अंतिम संस्कार के लिए सड़क मार्ग से बेंगलूरू पहुंचे माता-पिता

लॉकडाउन के बीच एक साहसी माता-पिता की खबर सामने आई जब वह सड़क मार्ग के सहारे गुरुग्राम से बेंगलूरू जा पहुंचे ताकि वह अपने बेटे का अंतिम संस्कार कर सकें। दरअसल, वर्ष 2002 में सेना में शामिल हुए कर्नल नवजोत सिंह बल कैंसर की वजह से बेंगलूरू में 11 अप्रैल को दुनिया को अलविदा कह दिया। इससे एक दिन पहले उन्होंने एक सेल्फी पोस्ट की थी, जिसमें वह बेंगलूरू के एक अस्पताल के बिस्तर पर मुस्कुराते हुए दिख रहे थे। वह महज 39 साल के थे। लगभग एक साल पहले नवजोत सिंह बल में कैंसर का पता लगा था। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, बेटे की मौत की खबर मिलते ही बुजुर्ग माता-पिता आर्मी अफसर का अंतिम संस्कार करने के लिए तकरीबन दो हजार किलोमीटर की सड़क यात्रा पर निकल पड़े।

देश के तीसरे सबसे बड़े वीरता पुरस्कार शौर्य चक्र के विजेता कर्नल एनएस बल एक बेहतरीन लीडर के रूप में जाने जाते थे। कर्नल के निधन के समय उनके माता-पिता गुरुग्राम में थे। कोरोनावायरस के प्रसार को नियंत्रित करने के लिए एक राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के बीच बेटे के अंतिम संस्कार के लिए उनके माता-पिता को सर्विस एयरक्राफ्ट से बेंगलूरू की यात्रा करने की अनुमति नहीं दी गई थी। बता दें कि कोरोनावायरस के खतरे को देखते हुए केंद्र सरकार ने 25 मार्च से 21 दिनों के लिए देशव्यापी लॉक डाउन को बढ़ाकर अब 3 मई कर दिया गया है।

लॉकडाउन में फंसे बेटे को1,400 किमी स्कूटी चलाकर घर वापस लाई मां

लॉकडाउन के बीच एक कहानी साहसी मां की जो करीब 1,400 किलोमीटर स्कूटी चलाकर अपने बेटे को घर वापस ले आई। दरअसल, लॉकडाउन के बीच बच्चा अपने घर से सैकड़ों किलोमीटर दूर फंसा हुआ था जिसे लेने उसकी मां स्कूटी लेकर पहुंच गई। मामला आंध्र प्रदेश का था जहां रहने का वाला बच्चा अपने घर से दूर तेलंगाना के निजामाबाद में फंस गया था। बेटे के घर से इतनी दूर होने के कारण मां परेशान थी।

तेलंगाना के निजामाबाद में स्थित बोधना की रहने वाली 48 साल की प्रधान अध्यापिका रजिया बेगम का 19 साल का बेटा आंध्र प्रदेश के नेल्लोर में लॉकडाउन की वजह से फंस गया था। मोहम्मद निजामुद्दीन जो कि हैदराबाद के नारायण मेडिकल एकेडमी का छात्र है। वो अपने क्लासमेट के साथ 12 मार्च को नैल्लोर के रेहमताबाद गया था। मोहम्मद निजामुद्दीन के दोस्त के पिता बीमार थे और इसलिए वो उसके साथ गया था। उसके अनुसार हमने 23 मार्च को वापसी की टिकट की थी लेकिन लॉकडाउन हो गया।

बेटा जब वहां फंस गया तो मां काफी परेशान हो गई और उसने किसी तरह पुलिस से यात्रा की अनुमति ली और अपनी स्कूटी पर सवार होकर वहां पहुंच गई। रजिया को जाने और आने में 1,400 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ा लेकिन अब वो खुश है उनका बेटा उनके पास है।

रजिया बेगम बोधन मंडल परिषद में स्थित स्कूल में प्रधान अध्यापिका हैं। बेटे को लाने के लिए वो सीधे असिस्टेंट कमिश्नर ऑफ पुलिस वी जयपाल रेड्डी के पास पहुंची और यात्रा की अनुमति मांगी। हालांकि, पुलिस ने उन्हें इंतजार करने के लिए कहा लेकिन लॉकडाउन बढ़ने के बाद आखिरकार वो नहीं मानी। खुद को सुरक्षित रखने के लिए उन्होंने कार के बजाय अपनी स्कूटी से जाना तय किया और अपने बेटे को घर वापस ले आई।

 

 

 


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